नौकरी करवाना और नौकरी करना दो अलग अलग बातें है। जन्म कुन्डली में अगर शनि नीच का है तो नौकरी करवायेगा और शनि अगर उच्च का है तो नौकरों से काम करवायेगा। तुला का शनि उच्च का होता है और मेष का शनि नीच का होता है। मेष राशि से जैसे जैसे शनि तुला राशि की तरफ़ बढता जाता है उच्चता की ओर अग्रसर होता जाता है,और तुला राशि से शनि जैसे जैसे आगे जाता है नीच की तरफ बढता जाता है, अपनी कुंडली में देख कर पता किया जा सकता है कि शनि की स्थिति कहां पर है और जिस स्थान पर शनि होता है उस स्थान के साथ शनि अपने से तीसरे स्थान पर सातवें स्थान पर और दसवें स्थान पर अपना पूरा असर देता है। इसके साथ ही शनि पर राहु, केतु, मंगल अगर असर दे रहे है तो शनि के अन्दर इन ग्रहों का भी असर शुरु हो जाता है, मतलब जैसे शनि नौकरी का मालिक है और शनि वृष राशि का है वृष राशि धन की राशि है और भौतिक सामान की राशि है वृष राशि से अपनी खुद की पारिवारिक स्थिति का पता किया जाता है। वृष राशि में शनि नीच का होगा लेकिन उच्चता की तरफ बढता हुआ होगा। इसके प्रभाव से जातक धन और भौतिक सामान के संस्थान के प्रति काम करने के लिये उत्सुक रहेगा इसके साथ ही शनि की तीसरी निगाह कर्क राशि पर होगी। कर्क राशि चन्द्रमा की राशि है और कर्क राशि के लिये माता मन मकान पानी वाली वस्तुयें चांदी चावल जनता और वाहन आदि के बारे में जाना जाता है तो जातक का ध्यान काम करने के प्रति भौतिक साधनों तथा धन के लिये इन क्षेत्रों में सबसे पहले ध्यान जायेगा। उसके बाद शनि की सातवीं निगाह वृश्चिक राशि पर होगी यह भी जल की राशि है और मंगल इसका स्वामी है। यह मृत्यु के बाद प्राप्त धन की राशि है, जो सम्पत्ति मौत के बाद प्राप्त होती है उसके बारे में इसी राशि से जाना जाता है। किसी की सम्पत्ति को बेचकर उसके बीच से प्राप्त किये जाने वाले कमीशन की राशि है, तो जातक जब नौकरी करेगा तो उसका ध्यान इन कामों की तरफ भी जायेगा। इसके बाद शनि का असर दसवें स्थान में जायेगा। वृष राशि से दसवीं राशि कुम्भ राशि है, इसका मालिक शनि ही है और अधिकतर मामलों में इसे यूरेनस की राशि भी कहा जाता है। कुम्भ राशि को मित्रों की राशि और बडे भाई की राशि कहा जाता है,जातक का ध्यान उपरोक्त कामों के लिये अपने मित्रों और बडे भाई की तरफ भी जाता है अथवा वह इन सबके सहयोग के बिना नौकरी नही प्राप्त कर सकता है, यह राशि संचार के साधनों की राशि भी कही जाती है, जातक अपने कार्यों और जीविकोपार्जन के लिये संचार के अच्छे से अच्छे साधनों का प्रयोग भी करेगा। अगर इसी शनि पर मंगल अपना असर देता है तो जातक के अन्दर तकनीकी भाव पैदा हो जायेगा वह चन्द्रमा की कर्क राशि का प्रयोग मंगल के असर के कारण भवन बनाने और भवनों के लिये सामान बेचने का काम करेगा। वह चन्द्रमा से खेती और मंगल से दवाइयों वाली फ़सलें पैदा करने का काम करेगा, वह खेती से सम्बन्धित औजारों के प्रति नौकरी करेगा।
इसी तरह से अन्य भावों का विवेचन किया जाता है। शनि के द्वारा नौकरी नही दी जाती है तो शनि पर किसी अन्य ग्रह का प्रभाव माना जाता है। अन्य ग्रहों के द्वारा दिये जाने वाले प्रभावों से और शनि की कमजोरी से अगर नौकरी मिलती है तो शनि को मजबूत किया जा सकता है। वैदिक ज्योतिष में तथा अन्य प्रकार के ग्रंथों में शनि को बली बनाने के लिये उपाय बताये गये हैं।
इसी तरह से अन्य भावों का विवेचन किया जाता है। शनि के द्वारा नौकरी नही दी जाती है तो शनि पर किसी अन्य ग्रह का प्रभाव माना जाता है। अन्य ग्रहों के द्वारा दिये जाने वाले प्रभावों से और शनि की कमजोरी से अगर नौकरी मिलती है तो शनि को मजबूत किया जा सकता है। वैदिक ज्योतिष में तथा अन्य प्रकार के ग्रंथों में शनि को बली बनाने के लिये उपाय बताये गये हैं।
नौकरी के लिये शनि के उपाय: नौकरी का मालिक शनि है लेकिन शनि की युति अगर छठे भाव के मालिक से है और दोनो मिलकर छठे भाव से अपना सम्बन्ध स्थापित किये है तो नौकरी के लिये फ़लदायी योग होगा, अगर किसी प्रकार से छठे भाव का मालिक अगर क्रूर ग्रह से युति किये है अथवा राहु केतु या अन्य प्रकार से खराब जगह पर स्थापित है अथवा नौकरी के भाव का मालिक धन स्थान या लाभ स्थान से सम्बन्ध नही रखता है तो नौकरी के लिये फ़लदायी समय नहीं होगा।
नौकरी से मिलने वाले लाभ का घर चौथा भाव है। चौथे भाव में अगर कोई खराब ग्रह है और नौकरी के भाव के मालिक का दुश्मन ग्रह है तो वह चाह कर भी नौकरी नहीं करने देगा, इसके लिये उसे चौथे भाव की ग्रह शांति करनी चाहिये। जैसे अगर मंगल चौथे भाव मे है और नौकरी के भाव का मालिक बुध है तो मंगल की शांति करनी है और अगर शनि चौथे भाव में है और नौकरी के भाव का मालिक सूर्य है तो सूर्य की शांति करनी है। इसी प्रकार से अन्य ग्रहों का उपाय किया जाता है।
शनि कर्म का दाता है और केतु कर्म को करवाने के लिये आदेश देता है। लेकिन बिना गुरु के केतु आदेश भी नही दे सकता है। गुरु भी तभी आदेश दे सकता है जब उसके पास सूर्य का बल है और सूर्य का बल भी तभी काम करता है जब मंगल की शक्ति और उसके द्वारा की जाने वाली सुरक्षा उसके पास है। सुरक्षा को भी दिमाग से किया जाता है अगर सही रूप से किसी सुरक्षा को नियोजित नही किया गया है तो कहीं से भी नुकसान हो सकता है। इसके लिये बुध का सहारा लेना पडता है। बुध भी तभी काम करता है जब शुक्र का दिखावा उसके पास होता है।
नौकरी से मिलने वाले लाभ का घर चौथा भाव है। चौथे भाव में अगर कोई खराब ग्रह है और नौकरी के भाव के मालिक का दुश्मन ग्रह है तो वह चाह कर भी नौकरी नहीं करने देगा, इसके लिये उसे चौथे भाव की ग्रह शांति करनी चाहिये। जैसे अगर मंगल चौथे भाव मे है और नौकरी के भाव का मालिक बुध है तो मंगल की शांति करनी है और अगर शनि चौथे भाव में है और नौकरी के भाव का मालिक सूर्य है तो सूर्य की शांति करनी है। इसी प्रकार से अन्य ग्रहों का उपाय किया जाता है।
शनि कर्म का दाता है और केतु कर्म को करवाने के लिये आदेश देता है। लेकिन बिना गुरु के केतु आदेश भी नही दे सकता है। गुरु भी तभी आदेश दे सकता है जब उसके पास सूर्य का बल है और सूर्य का बल भी तभी काम करता है जब मंगल की शक्ति और उसके द्वारा की जाने वाली सुरक्षा उसके पास है। सुरक्षा को भी दिमाग से किया जाता है अगर सही रूप से किसी सुरक्षा को नियोजित नही किया गया है तो कहीं से भी नुकसान हो सकता है। इसके लिये बुध का सहारा लेना पडता है। बुध भी तभी काम करता है जब शुक्र का दिखावा उसके पास होता है।
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