Monday, 13 April 2015

क्रोध क्यूं आता है


आज की भागदौड़ की जिंदगी में तनाव से मुक्ति हासिल करना न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है बल्कि इससे अनेक सामाजिक समस्याओं, हिंसा व अन्य नकारात्मक प्रवृतियों का निदान भी होता है। तनाव गुस्से का मूल कारण है और गुस्से में आदमी विवेक को भूलकर गलत काम कर बैठता है। क्रोध एक स्वाभाविक आवेग है। यह जिसे आता है उसके लिए कभी-कभी ऊर्जा का काम करता है। वह प्राय: दो बार सोचता है, अगली बार उस आचरण को अपनाने के पूर्व जिसके कारण क्रोध आता है। क्रोध कभी-कभी मन का गुबार निकालने में सहायता करता है।
मन की बातों या भावनाओं को दबाए रखने की बजाय उन्हें प्रकट करना श्रेयस्कर होता है। ऐसा करने में यदि क्रोध आए तो वह सकारात्मक होता है। किंतु, क्रोध सामान्यत: एक नुकसानदेह आवेग है। यह नुकसानदेह इसलिए है कि इससे वे शारीरिक अनुक्रियाएं उत्पन्न होती हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकर होती हंै। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को जब क्रोध आता है तो उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है और खून का वेग तेज हो जाता है। इन अनुक्रियाओं के कारण उसके दिल पर दबाव बढ़ता है। एक तरफ जहां क्रोध और विद्वेष के बीच सीधा संबंध होता है, वहीं दूसरी तरफ दिल की बीमारी में वृद्धि भी होती है। क्रोध परिवार के लिए भी नुकसानदेह होता है। क्रोध करने के बाद व्यक्ति स्वयं पछताता है क्योंकि क्रोध के समय बुद्धि कार्य करना बंद कर देती है। इससे परिवार में तनावपूर्ण तथा अप्रीतिकर वातावरण उत्पन्न होता है। बच्चों के प्रति हमारा बार-बार क्रोध करना उन्हें अति संवेदनशील बनाता है, वे चिड़चिड़े हो जाते हैं तथा उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। परिस्थितिवश क्रोध यदि स्वाभाविक अनुक्रिया हो ही, तो भी स्वयं से पूछें कि क्या आपके क्रोध करने से आपको बेहतर परिणाम मिलेंगे? और क्या आपके क्रोध करने से आपको आपकी मनचाही चीज मिल जाएगी? स्वयं से पूछें कि परिस्थिति उपयुक्त है या नहीं। मसलन, यदि आप जोर से बोलें या चिल्लाएं तो क्या आपकी प्रतिष्ठा धूमिल होगी? क्या आप कहीं बेवजह किसी का ध्यान तो आकर्षित नहीं कर रहे? आपकी इस प्रतिक्रिया से आपकी कंपनी को कोई परेशानी तो नहीं होगी? आपने जो कुछ कहा या किया उस पर आप परेशान तो नहीं होंगे? या क्या आपको जब क्रोध आया था तब आप परेशान थे? इससे आप तथा अन्य लोग भी ईष्र्या से बचेंगे। इससे दूसरों के दिलों में आपके प्रति अच्छी भावना भी पनपेगी। जिनके कारण आपके अंदर क्रोध उपजा हो उन हालात को समझें। उन्हें नजरअंदाज करने या उनकी उपेक्षा के उपाय ढूंढें।
इस पृथ्वी पर शायद ही कोई प्राणी होगा जिसे गुस्सा नहीं आता, जब भी कुछ हमारे मन मुताबिक नहीं होता, तब प्रतिकार स्वरूप जो प्रतिक्रिया हमारा मन करता है, वही गुस्सा है। मानों यह बहुत ही स्वाभाविक प्रक्रिया है, पर सच यह नहीं है। गुस्सा एक सुनामी जैसा है, जो जाने के बाद बर्बादी के निशान छोड़ जाता है। गुस्से में सबसे पहले जबान आपा खोती है, वह सब कहती है, जो नहीं कहना चाहिए और रिश्तों में क डवाहट घोलती है। गुस्सा आए और जल्दी शांत हो जाए तब भी किसी हद तक ठीक है परन्तु चिंता का विषय तब होता है। जब गुस्सा आए परंतु जल्दी शांत न हो। यही गुस्सा जब ज्यादा देर हमारे दिमाग में रह जाता है तो बदले की भावना में बदलने लगता है। बहुत से अपराधों की जड में यही गुस्सा और बदले की भावना होती है। इसी सिक्के का दूसरा पहलू है कि गुस्से में हम किसी का अपमान करते हैं, यही गुस्सा उसके मन में बदले की भावना में बदलता है और हम अपने लिए शत्रुओं की कतार खडी कर लेते हैं। मानसिक तनाव बढ़ता है, जिसका विपरीत प्रभाव स्वास्थ्य पर, सामाजिक प्रतिष्ठा पर और हमारे रिश्तों पर पडता है।
क्रोध और अवसाद: यदि किसी दिन हम मानसिक रूप से परेशान होते हैं, उस दिन हमें गुस्सा अधिक आता है। छोटी-छोटी बातों पर अधिक तीखी प्रतिक्रिया देते हैं। क्रोध और तनाव का सीधा संबंध है। इस तरह भी समझा जा सकता है कि जो व्यक्ति जीवन में किसी चीज या स्थिति से असंतुष्ट है, वह अधिक क्रोध करता है। सपने पूरे न हो पाएँ, यह हम सब के साथ कभी न कभी होता है परन्तु जब हम इस सच्चाई को दिल से स्वीकार नहीं कर पाते तो टूटे सपनों की टीस हमें मानसिक रूप से बेचैन करती है और हम क्रोध करते हैं। ऐसे ही किसी दिन जब हमारी तबियत ठीक नहीं होती है, तब भी हम गुस्सा करते हैं। किसी भी तरह की लाचारी के कारण भी हम अधिक चिडचिडे हो जाते हैं, अधिक गुस्सा करते हैं। स्पष्ट है किसी भी तरह की कमजोरी शारीरिक या मानसिक हमें अधिक क्रोधी बना देती है।
क्रोध का एक कारण बीमारी है, धैर्य की कमी है। स्पष्ट है क्रोध को कम करने के लिए कमजोरी को कम करना होगा और शक्ति को बढ़ाना होगा। समस्या की जड क्रोध नहीं है बल्कि क्रोध में कमजोरी को छुपाने का प्रयास है इसलिए क्रोध के मामलों को हर दृष्टिकोण से जाँचा जाना चाहिए। इसी संदर्भ में तुलसीदास जी ने लिखा - भय बिन होत न प्रीति। यदि हम चाहें तो क्रोध को अपने व्यक्तित्व का एक गुण बना सकते हैं। आपका क्रोध पे्रेशर कुकर की सीटी जैसा न हो बल्कि लावे जैसा हो। लोग यह विश्वास करें कि आप बिना बात गुस्सा नहीं होते। किसी ठोस कारण से ही आपको गुस्सा आता है और जब आता है तो वह बहुत खतरनाक होता है। आप हमेशा शांत कर रहे हैं, और शायद ही कभी गुस्सा आता है। लेकिन आप खुशी भी महसूस नहीं करते। कई बार आप दूसरों के प्रति पूर्वानुमान लगाकर व्यवहार करते हैं और पहले से नकारात्मक सोच रखते हैं। आपसे अतीत में दुव्र्यवहार किया गया है, लेकिन पूरी बात याद नहीं कर पाते हैं। परंतु परिस्थितियों में स्वयं वैसा ही व्यवहार औरों से करते हैं। अकसर आप अपने मनोभावों को व्यक्त नहीं करते क्योंकि आपको दुख होता है मन को चोट आदि लगती है, लेकिन किसी को नाराज नहीं कर सकते। हिंसक कल्पनाओं से संतुष्ट होते हैं.
क्रोध का मौलिक उद्देश्य अपने जीवन की रक्षा की है। एक बच्चे को पहले पोषण और अपनी जरूरत को पूरा करना होता है जब मनचाही जरूरत पूरी नहीं होती तब क्रोध व्यक्त करना शुरू होता है -पहले स्तर पर क्रोध, शारीरिक और भावनात्मक अस्तित्व के लिए रोना एक तरीका होता है। बाद के जीवन में, अहंकार भी महसूस करते हैं और अपनी पहचान की रक्षा के क्रम में क्रोध व्यक्त करना शुरू होता है। किशोर अपराध अनुपात भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। किशोरों द्वारा किये गए अपराधों की सबसे बडी वजह क्रोध या लालच के लिए भी हैं. कभी कभी, हम इसे अपने जीवन में किसी भी गंभीर समस्या का कारण नहीं मानते है।
हालाँकि तुलनात्मक रूप से देखें तो सफलताओं की दर बढ़ी है, लेकिन इच्छाओं को क्या कहिए, जो तमाम बढ़ी हुई सफलताओं को भी बौना साबित कर देती हैं? छोटी-छोटी वजहों से लोग भड़क उठते हैं। अगर गुस्से को विज्ञान की नजर से देखें तो किसी व्यक्ति के खुश रहने या नाराज होने की स्थिति के लिए उसके दिमाग में मौजूद सेरोटोनिन का स्तर जिम्मेदार होता है। लंबे समय तक अगर कोई तनाव में रहता है, खुश रहने की उसे वजह ढूँढे नहीं मिलतीं तो ऐसे लोगों के दिमाग में सेरोटोनिन का स्तर 50 फीसद तक घट जाता है यानी कुदरती तौर पर एक सामान्य इंसान के दिमाग में सेरोटोनिन का जो स्तर मौजूद रहना चाहिए, उससे यह 50 फीसदी कम हो जाता है। जैसे-जैसे शरीर में सेरोटोनिन की मात्रा कम होती है, गुस्से की मात्रा बढ़ती जाती है। यही कारण है कि जब सेरोटोनिन की मात्रा घटकर 10 फीसदी के आसपास पहुँच जाती है तो ऐसे लोग जरा-सी बात पर ही उखड़ जाते हैं और जान लेने-देने पर उतारू हो जाते हैं। दरअसल जो लोग ज्यादा समय तक तनाव में रहते हैं या जिन लोगों की जिंदगी में खुश रहने के अवसर कम होते हैं, ऐसे लोगों की मस्तिष्क की कोशिकाएँ गुस्से के लिए अनुकूल स्थिति में ढली होती हैं।

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