मृत्यु क्या है? मृत्यु के समय क्या होता है? मृत्यु के पश्चात क्या होता है? मृत्यु के अनुभव के बारे में कोई किस प्रकार बता सकता है? मृत व्यक्ति अपना अनुभव नहीं बता सकता, जिनका जन्म हुआ है उन्हें अपने पिछले जन्म के बारे में कुछ याद नहीं, कोई नहीं जानता कि जन्म से पहले और मृत्यु के बाद में क्या होता है। क्या पुनर्जन्म एक सच्चाई है? ड़ारविन के उत्पत्ति के नियम के अनुसार जीवन एक कोशीय जीव से शुरू होकर मनुष्य में पहुँचने तक विकसित होता है। इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि उसके बाद में क्या होता है।
ात्मा के अस्तित्व में विश्वास के बिना पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है? जब आत्मा का स्वरूप समझ में आ जाएगा तो सभी पहेलियाँ सुलझ जाएँगी। पहले आत्मज्ञान प्राप्त कर लें और उसके बाद सभी पहेलियाँ सुलझ जाएँगी। आत्मा कभी भी मरता नहीं है, लेकिन जब तक आप आत्मभाव में नहीं आ जाते, आपको मृत्यु का डर बना रहेगा। जब मृत्यु के बारे में सभी तथ्य पता चल जाएँगे, तो मृत्यु का डर गायब हो जाएगा।
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की बात याद आ जाना ऐसी घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं। विज्ञान इस तरह की बातों को पूरी तरह स्वीकार नहीं करता है। लेकिन वेदों पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि आत्माओं का सफर निरंतर चलता रहता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरा शरीर धारण कर लेता है। यानी जिसकी भी मृत्यु हुई है फिर से लौटकर किसी दूसरे रुप में आएगा।
महाभारत में एक कथा का उल्लेख है कि, भीष्म श्रीकृष्ण से पूछते हैं, आज मैं वाणों की शय्या पर लेटा हुआ हूं, आखिर मैंने कौन सा ऐसा पाप किया था जिसकी यह सजा है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आपको अपने छ: जन्मों की बातें याद हैं। लेकिन सातवें जन्म की बात याद नहीं है जिसमें आपने एक नाग को नागफनी के कांटों पर फेंक दिया था। यानी भीष्म के रुप में जन्म लेने से पहले उनके कई और जन्म हो चुके थे। इन्हें अपने पूर्व जन्मों की बातें भी याद थी। महाभारत का एक प्रमुख पात्र है शिखंडी। कथा है कि शिखंडी को भी अपने पूर्व जन्म की बातें याद थी। वह पूर्व जन्म में काशी की राजकुमारी था। उस जन्म में हुए अपमान का बदला लेने के लिए ही उसने शिखंडी के रुप में जन्म लिया था।
महर्षि वामदेव को माता के गर्भ में ही आत्मज्ञान हो गया था। जिससे उन्होंने अनेक जन्मों की बातें जान ली थी। वेदों और पुराणों में ऐसी अनेकों कथाएं हैं जो बताती हैं कि मौत और पुनर्जन्म निश्चित सत्य है। मनुष्य में सोचने जैसी अद्भुत क्षमता है। यही कारण है की आज मनुष्य चराचर जगत में सर्वोच्च है। यदा कदा ये सोच भी आती ही है की मौत के बाद क्या होता है। अगर हम जीव हैं तो शरीर त्याग करने के बाद जीव कहां जाता है? भिन्न-भिन्न मतमतांतर हैं, कोई कहता है ब्रह्म में लीन हो जाता है, कोई कहता है पशु पक्षी या अपने कर्मों के आधार पर दूसरा शरीर प्राप्त करता है, किसी भी योनी में। जीव की गुह्य गतियों को समझने के लिए पहले जीवात्मा की जानकारी आवश्यक है -
जीवात्मा के तीन शरीर बताये गए हैं:
(1) स्थूल शरीर (पंचभूतात्मक)
(2) कारण शरीर (आत्मा)
(3) सूक्ष्म शरीर (जीव- मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार)
1.स्थूल शरीर पंचभूतात्मक होता है, जो कर्म का माध्यम होता है।
2.कारण शरीर, जिसे हम परमात्मा का अंश आत्मा कहते हैं। जो शरीर का वास्तविक कारण स्वरूप है।
3. सूक्ष्म शरीर- जीव/प्रेत- इसके चार अंग हैं मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार। जो इंद्रियों से संस्कारित होते हैं और जो कर्मबंध की मूल वजह होते हैं। जो देह में जीव कहलाता है और देहगत होने पर प्रेत कहलाता है। जिससे आत्मा संसर्ग करके पंचभूतात्मक देह को धारण कर जीवात्मा का कारण होती है और जो आत्मा के देह से गत होने पर स्थूल शरीर को शव और जीव को प्रेत की संज्ञा प्रदान करती है।
तब मौत के बाद क्या होता है ?
एक आदमी जिसका एक्सीडेंट किसी गाड़ी से हो रहा है घबराया हुआ वो आदमी भागने की कोशिश करता है पर गाड़ी के चक्कों ने उसे कुचल दिया फिर भी वो भागता है और दूर चला जाता है उसकी समझ से परे की आखिर वो कैसे बच गया दूर जाकर देखता है कि किसी का एक्सीडेंट हो गया और भीड़ जमा है वो भी देखने के लिए उत्सुकता वश जाता है तो भीड़ के अंदर हवा की तरह घुसता है उसे अजीब लगता है पर समझ से परे की बात होती है घटना स्थल पर अपना ही शरीर देखने पर उसकी हैरत का अंदाजा नहीं रहता वो जोर से चिल्लाता है की मैं यहाँ हूँ पर स्थूल कोई भी अंग नहीं है आवाज़ निकले कहाँ से?
सूक्ष्म शरीर में विद्यमान आत्मा ही सूक्ष्म शरीर को देख पाती है उस वक्त उस आत्मा को पता चलता है की वो कभी मरती नहीं मौत के बाद आत्मा सूक्ष्म शरीर में रहती है कुछ भी नहीं बदलता सिर्फ वो गायब रहती है पर अंग सूक्ष्म होने की वजह से किसी को भी कुछ भान कराने में असमर्थ होती है अपने प्रियजनों के आस पास भटकती रहती हैं तब तक भटकती है जब तक उसका निर्धारित गर्भ में समय नहीं आता।
ात्मा के अस्तित्व में विश्वास के बिना पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है? जब आत्मा का स्वरूप समझ में आ जाएगा तो सभी पहेलियाँ सुलझ जाएँगी। पहले आत्मज्ञान प्राप्त कर लें और उसके बाद सभी पहेलियाँ सुलझ जाएँगी। आत्मा कभी भी मरता नहीं है, लेकिन जब तक आप आत्मभाव में नहीं आ जाते, आपको मृत्यु का डर बना रहेगा। जब मृत्यु के बारे में सभी तथ्य पता चल जाएँगे, तो मृत्यु का डर गायब हो जाएगा।
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की बात याद आ जाना ऐसी घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं। विज्ञान इस तरह की बातों को पूरी तरह स्वीकार नहीं करता है। लेकिन वेदों पुराणों में यह स्पष्ट लिखा गया है कि आत्माओं का सफर निरंतर चलता रहता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरा शरीर धारण कर लेता है। यानी जिसकी भी मृत्यु हुई है फिर से लौटकर किसी दूसरे रुप में आएगा।
महाभारत में एक कथा का उल्लेख है कि, भीष्म श्रीकृष्ण से पूछते हैं, आज मैं वाणों की शय्या पर लेटा हुआ हूं, आखिर मैंने कौन सा ऐसा पाप किया था जिसकी यह सजा है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं आपको अपने छ: जन्मों की बातें याद हैं। लेकिन सातवें जन्म की बात याद नहीं है जिसमें आपने एक नाग को नागफनी के कांटों पर फेंक दिया था। यानी भीष्म के रुप में जन्म लेने से पहले उनके कई और जन्म हो चुके थे। इन्हें अपने पूर्व जन्मों की बातें भी याद थी। महाभारत का एक प्रमुख पात्र है शिखंडी। कथा है कि शिखंडी को भी अपने पूर्व जन्म की बातें याद थी। वह पूर्व जन्म में काशी की राजकुमारी था। उस जन्म में हुए अपमान का बदला लेने के लिए ही उसने शिखंडी के रुप में जन्म लिया था।
महर्षि वामदेव को माता के गर्भ में ही आत्मज्ञान हो गया था। जिससे उन्होंने अनेक जन्मों की बातें जान ली थी। वेदों और पुराणों में ऐसी अनेकों कथाएं हैं जो बताती हैं कि मौत और पुनर्जन्म निश्चित सत्य है। मनुष्य में सोचने जैसी अद्भुत क्षमता है। यही कारण है की आज मनुष्य चराचर जगत में सर्वोच्च है। यदा कदा ये सोच भी आती ही है की मौत के बाद क्या होता है। अगर हम जीव हैं तो शरीर त्याग करने के बाद जीव कहां जाता है? भिन्न-भिन्न मतमतांतर हैं, कोई कहता है ब्रह्म में लीन हो जाता है, कोई कहता है पशु पक्षी या अपने कर्मों के आधार पर दूसरा शरीर प्राप्त करता है, किसी भी योनी में। जीव की गुह्य गतियों को समझने के लिए पहले जीवात्मा की जानकारी आवश्यक है -
जीवात्मा के तीन शरीर बताये गए हैं:
(1) स्थूल शरीर (पंचभूतात्मक)
(2) कारण शरीर (आत्मा)
(3) सूक्ष्म शरीर (जीव- मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार)
1.स्थूल शरीर पंचभूतात्मक होता है, जो कर्म का माध्यम होता है।
2.कारण शरीर, जिसे हम परमात्मा का अंश आत्मा कहते हैं। जो शरीर का वास्तविक कारण स्वरूप है।
3. सूक्ष्म शरीर- जीव/प्रेत- इसके चार अंग हैं मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार। जो इंद्रियों से संस्कारित होते हैं और जो कर्मबंध की मूल वजह होते हैं। जो देह में जीव कहलाता है और देहगत होने पर प्रेत कहलाता है। जिससे आत्मा संसर्ग करके पंचभूतात्मक देह को धारण कर जीवात्मा का कारण होती है और जो आत्मा के देह से गत होने पर स्थूल शरीर को शव और जीव को प्रेत की संज्ञा प्रदान करती है।
तब मौत के बाद क्या होता है ?
एक आदमी जिसका एक्सीडेंट किसी गाड़ी से हो रहा है घबराया हुआ वो आदमी भागने की कोशिश करता है पर गाड़ी के चक्कों ने उसे कुचल दिया फिर भी वो भागता है और दूर चला जाता है उसकी समझ से परे की आखिर वो कैसे बच गया दूर जाकर देखता है कि किसी का एक्सीडेंट हो गया और भीड़ जमा है वो भी देखने के लिए उत्सुकता वश जाता है तो भीड़ के अंदर हवा की तरह घुसता है उसे अजीब लगता है पर समझ से परे की बात होती है घटना स्थल पर अपना ही शरीर देखने पर उसकी हैरत का अंदाजा नहीं रहता वो जोर से चिल्लाता है की मैं यहाँ हूँ पर स्थूल कोई भी अंग नहीं है आवाज़ निकले कहाँ से?
सूक्ष्म शरीर में विद्यमान आत्मा ही सूक्ष्म शरीर को देख पाती है उस वक्त उस आत्मा को पता चलता है की वो कभी मरती नहीं मौत के बाद आत्मा सूक्ष्म शरीर में रहती है कुछ भी नहीं बदलता सिर्फ वो गायब रहती है पर अंग सूक्ष्म होने की वजह से किसी को भी कुछ भान कराने में असमर्थ होती है अपने प्रियजनों के आस पास भटकती रहती हैं तब तक भटकती है जब तक उसका निर्धारित गर्भ में समय नहीं आता।
Pt.P.S Tripathi
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