नारायण नागबलि पूजा विधि, मानव की अपूर्ण इच्छा, कामना पूर्ण करने के उद्देश्य से किया जाता है इसीलिए यह विधि काम्य-कर्म कहलाता है। नारायणबलि और नागबलि ये अलग-अलग विधियां हैं। नारायण बलि का उद्देश्य मुख्यत: पितृदोष निवारण करना है। नागबलि का उद्देश्य सर्प/ सांप/ नाग हत्या का दोष निवारण करना है। चूंकि केवल नारायण बलि या नागबलि कर नहीं सकते, इसलिए ये दोनों विधियां एक साथ ही करनी पड़ती हैं। निम्नलिखित कारणों के लिए भी नारायण नागबलि की जाती है:-
तृदोष निवारण के लिए नारायण नागबलि कर्म करने के लिये शास्त्रों में निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते हैं। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है। ये कर्म जिन जातकों के माता पिता जीवित हैं वे भी ये कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकते हैं। संतान प्राप्ति एवं वंशवृध्दि के लिए ये कर्म सपत्नीक करने चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी ये कर्म किये जा सकते है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवे महीने तक यह कर्म किया जा सकता है।
नारायण बलि कर्म विधि हेतु मुहुर्त-
सामान्यतया नारायण बलि कर्म पौष तथा माघ महिने में तथा गुरु, शुक्र के अस्तंगत होने पर नहीं किये जाने चाहिए। परन्तु 'निर्णय सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायण बलि कर्म के लिए धनिष्ठा, पंचक एवं त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शत्भिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, उत्तरा विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद, ये छ: नक्षत्र 'त्रिपाद नक्षत्र माने गये है।
स्थल निर्णय:
यह विधि किसी खास क्षेत्र में ही की जाती है ऐसी किंवदन्ति खास कारणों से प्रचरित की गई है किन्तु धर्म सिन्धु ग्रंथ के पेज न.- २22 में ''उद्धृत नारायण बली प्रकरण निर्णय में स्पष्ट है कि यह विधि किसी भी देवता के मंदिर में किसी भी नदी के तीर कराई जा सकती है अत: जहां कहीं भी योग्य पात्र तथा योग्य आचार्य विधि के ज्ञाता हों, इस कर्म को कराया जा सकता है वैसे छत्तीसगढ़ की धरा पर अमलेश्वर ग्राम का नामकरण बहुत पूर्व भगवान शंकर के विशेष तीर्थ के कारण रखा गया होगा क्योंकि खारून नदी के दोनों तटों पर भगवान शंकर के मंदिर रहे होंगे जिसमें से एक तट पर हटकेश्वर तीर्थ आज भी है और दूसरे तट पर अमलेश्वर तीर्थ रहा होगा, इसी कारण इस ग्राम का नाम अमलेश्वर पड़ा। अत: खारून नदी के पवित्र पट पर बसे इस महाकाल अमलेश्वर धाम में यह क्रिया शास्त्रोक्त रूप से कराई जाती है।
तृदोष निवारण के लिए नारायण नागबलि कर्म करने के लिये शास्त्रों में निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते हैं। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है। ये कर्म जिन जातकों के माता पिता जीवित हैं वे भी ये कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकते हैं। संतान प्राप्ति एवं वंशवृध्दि के लिए ये कर्म सपत्नीक करने चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी ये कर्म किये जा सकते है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवे महीने तक यह कर्म किया जा सकता है।
नारायण बलि कर्म विधि हेतु मुहुर्त-
सामान्यतया नारायण बलि कर्म पौष तथा माघ महिने में तथा गुरु, शुक्र के अस्तंगत होने पर नहीं किये जाने चाहिए। परन्तु 'निर्णय सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायण बलि कर्म के लिए धनिष्ठा, पंचक एवं त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शत्भिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, उत्तरा विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद, ये छ: नक्षत्र 'त्रिपाद नक्षत्र माने गये है।
स्थल निर्णय:
यह विधि किसी खास क्षेत्र में ही की जाती है ऐसी किंवदन्ति खास कारणों से प्रचरित की गई है किन्तु धर्म सिन्धु ग्रंथ के पेज न.- २22 में ''उद्धृत नारायण बली प्रकरण निर्णय में स्पष्ट है कि यह विधि किसी भी देवता के मंदिर में किसी भी नदी के तीर कराई जा सकती है अत: जहां कहीं भी योग्य पात्र तथा योग्य आचार्य विधि के ज्ञाता हों, इस कर्म को कराया जा सकता है वैसे छत्तीसगढ़ की धरा पर अमलेश्वर ग्राम का नामकरण बहुत पूर्व भगवान शंकर के विशेष तीर्थ के कारण रखा गया होगा क्योंकि खारून नदी के दोनों तटों पर भगवान शंकर के मंदिर रहे होंगे जिसमें से एक तट पर हटकेश्वर तीर्थ आज भी है और दूसरे तट पर अमलेश्वर तीर्थ रहा होगा, इसी कारण इस ग्राम का नाम अमलेश्वर पड़ा। अत: खारून नदी के पवित्र पट पर बसे इस महाकाल अमलेश्वर धाम में यह क्रिया शास्त्रोक्त रूप से कराई जाती है।
उपायों की सार्थकता:
यह विधि विशेष कर संतानहीनता दूर करने के लिए संतति सुख प्राप्ति के लिए की जाती है। इसके लिए पति-पत्नी के शारीरिक दोष भी प्रमुख कारण हैं।
शरीर में दोष बाह्य कारणों से भी हो सकते हैं। बाह्य गर्मी सर्दी विकारों से शरीर में शितोष्ण बाधाएँ उत्पन्न होती है, ऐसा अनुभव है। उसी प्रकार संतानहीनता के भी दो कारण हो सकते हैं। एक इंद्रियजन्य कारण, दूसरा इंद्रियातीत कारण हो सकते हैं। जो बात बुद्धि की समझ में नहीं आती, वहां बुद्धि की गति कुंठित हो जाती है, ऐसे समय मानव वेद शास्त्र का आधार लेता है, कारण हमारा वैदिक तत्वज्ञान अदृश्य कारणों का साध्य साधनों का अविष्कार वेदों में बतलाया गया है। वे वेद जिन ऋषियों ने लिखे हैं, उनहें मंत्रदृष्टा कहते हैं। उन मंत्र दृष्टा ऋषियों ने मानव कल्याण हेतु जो-जो कर्म बतलायें हैं, उनमें यह एक भाग है जिस समय शरीरिक दोष न होते हुए भी संतति प्राप्त नहीं होती है ऐसा अनुभव आता है, उस समय उसे अदृश्य कारण परंपरा का समन्वय कर वेदों ने यह अनुष्ठान बतलाया है।
यह विधि विशेष कर संतानहीनता दूर करने के लिए संतति सुख प्राप्ति के लिए की जाती है। इसके लिए पति-पत्नी के शारीरिक दोष भी प्रमुख कारण हैं।
शरीर में दोष बाह्य कारणों से भी हो सकते हैं। बाह्य गर्मी सर्दी विकारों से शरीर में शितोष्ण बाधाएँ उत्पन्न होती है, ऐसा अनुभव है। उसी प्रकार संतानहीनता के भी दो कारण हो सकते हैं। एक इंद्रियजन्य कारण, दूसरा इंद्रियातीत कारण हो सकते हैं। जो बात बुद्धि की समझ में नहीं आती, वहां बुद्धि की गति कुंठित हो जाती है, ऐसे समय मानव वेद शास्त्र का आधार लेता है, कारण हमारा वैदिक तत्वज्ञान अदृश्य कारणों का साध्य साधनों का अविष्कार वेदों में बतलाया गया है। वे वेद जिन ऋषियों ने लिखे हैं, उनहें मंत्रदृष्टा कहते हैं। उन मंत्र दृष्टा ऋषियों ने मानव कल्याण हेतु जो-जो कर्म बतलायें हैं, उनमें यह एक भाग है जिस समय शरीरिक दोष न होते हुए भी संतति प्राप्त नहीं होती है ऐसा अनुभव आता है, उस समय उसे अदृश्य कारण परंपरा का समन्वय कर वेदों ने यह अनुष्ठान बतलाया है।
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