किसी भी व्यक्ति के लिए उसके किसी कीमती सामान की चोरी होना या गुम जाना अथवा अपने किसी अपनो का गायब हो जाना अथवा किसी भी प्रकार की हानि व्यक्ति को बेहद तकलीफ दायी होती है। किंतु इस तकलीफको ज्योतिष के रमल प्रश्र-कुंडली के द्वारा कुछ हद तक कम किया जा सकता है। रमल प्रश्र में गुम हुई वस्तु अथवा इंसान के बारे में प्रश्र किया जाए तो उसका जवाब बहुत हद तक सच साबित होता है। फलित ज्योतिष की शाखा प्रश्र जीवाध्याय में प्रश्र-प्रकरण, चोरी अथवा खोई हुई वस्तु की प्राप्ति के संबंध में है। ऐसे पीडित जातक की स्थिति जानते हुए प्रश्र कुंडली का निर्माण कर उस जातक की गुम या खोई वस्तु के संबंध में फल कहा जा सकता है। चोरी, लापता व्यक्त्-िपशु अथवा मनुष्य के बारे में होराशास्त्र के अनुसार काफी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। चोरी का संबंध कई प्रकार की अवस्थाओं से हो सकता है। अत: प्रश्र कुंडली का बारीकी से विश£ेषण कराना सार्थक हो सकता है।
प्रश्र कुंडली में चंद्रमा बीज स्वरूप है। लग्र फूल स्वरूप है, जबकि नवांश लग्र फल स्वरूप है। खोई हुई वस्तु्, संपत्ति, नौकरी, वाहन अथवा अन्य वस्तुओं आदि से संबंधित भावेश के अनुसार अच्छा या बुरा फल का नवांश कुंडली में लग्र एवं ग्रहों की स्थिति के कारण मिलेगा। सर्वप्रथम देखना होगा कि चंद्रमा पर दूषित ग्रहों का प्रभाव योग प्रतियोग की स्थिति तो नहीं निर्मित हो रही है। यदि प्रश्र कुंडली में चंद्रमा पाप अथवा शत्रुग्रहों से दूषित होगा तो जो परिणाम मिलेगा वह कटु होगा अर्थात् खोयी वस्तु या अन्य सामग्री की प्राप्ति आसानी से नहीं होगी। यदि लग्र, लग्रेश अथवा प्रश्रकृत वस्तु का भाव भावेश या कारक ग्रह भी पापग्रहों से दूषित हो तो भी यही स्थिति निर्मित होती है। शुभ ग्रहों में से कोई भी ग्रह केंद्र या त्रिकोण भाव में हो तो वस्तु के प्राप्त होने के अवसर आशाजनक रहते हैं।
प्रश्र कुंडली में पापग्रह यदि उपचय भावों अर्थात् 3, 6, 11 भाव में या दसम भाव में हों तो खोई वस्तु मिल सकती है। प्रश्र कुंडली में यदि लग्र पर शुभ ग्रह हो तो शुभ परिणाम निकलता है। यदि प्रश्र कुंडली में शाीर्षोदय राशि अर्थात् 3, 5, 6,8, 11, 12 हो तो उद्देश्य शुभ निकलता है वहीं पर यदि पृष्ठोदय राशि अर्थात् 1, 2, 4, 9, 10 हो तो खोई हुई वस्तु मिलना कठिन होता है। प्रश्र कुंडली में यदि पूर्ण चंद्र लग्र में हों और गुरू अथवा शुक्र की उस पर पूर्ण दृष्टि हो तो कार्य की सफलता निश्चित होती है। इस प्रकार ग्याहरवे भाव में गया कोई भी शुभग्रह यदि षडग्रह में बलवान हो तो भी कार्य सफलता निर्धारित समय में संभव है। लग्रेश और कार्येश एक दूसरे की राशि में अथवा भाव में स्थित हो तो भी कार्य की सिद्धि होती है।
लग्र में उदित राशि का द्रेष्काण बताता है कि चोर का हुलिया कैसा होगा और गत दे्रष्काम की संख्या से स्थिति पता चलती है कि यदि पहला दे्रष्काम हो तो वस्तु घर के भीतर या घर के बाहर है? दूसरे में वस्तु घर के अंदर ही है तीसरे से ज्ञात होता है कि वस्तु घर के पिछवाडे से कहीं दूर जा चुकी है। इसके साथ ही सप्तम स्थान चोर के लिए देखा जाता है अत: प्रश्र कुंडली में सप्तम भावेश चोर ग्रह होता है सप्तम स्थान में पडी राशि के नाम पर ही चोर के नाम के अक्षर होते हैं। कोई वस्तु चोरी चली ही गई है यह तब माना जाता है जब सप्तेश का किसी भी तहर लग्र राशि अथवा इसके स्वामी से शुभ संबंध हो या योगप्रतियोग हो। यदि प्रश्र लग्र में स्थिर राशि अर्थात् 2, 5, 8, 11 हो तो जातक का सगा संबंधी ही चोर होता है। वर्गाोत्तम नवांश हो तो भी चोर अपना आदमी होता है।
Pt.P.S Tripathi
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