नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर कार्य शुरू करते ही अपनी कूटनीतिक योजना पूरी तरह तैयार करली थी कि किस तरह दक्षिण ऐशियाई देशों का एक बड़ा संगठन तैयार करना है, ब्रिक्स देशों में किस तरह अपनी पैठ बनानी है और यूरोप के देशों के साथ विशेषकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के साथ किस तरह बारगेन करना है। असल मे मोदी एक विचार का पर्याय है, महात्मा गांधी के बाद देश में निश्चित धारणाओं के साथ राजनीति करने वाले ये दूसरे राजनेता होंगे जो इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बनायेंगे और भारत को विश्व मेें सम्मान दिला पाने में कामयाब रहेंगे।
उन्होंने अपने पहले १०० दिनों में ही जितनी देशों की यात्राएं की और समझौते किये, ये अपने आप में कीर्तिमान है। आजकल राजनीति का मोडीफिकेशन हो रहा है। सभी राजनेता प्रशासन के आठ मूल धारणाओं के आधीन ही प्रयास कर रहे हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है जवाबदेही, शुचिता, तत्परता, दूरदृष्टि, पारदर्शिता, समयवद्ध कार्यक्रम, मितव्ययीता, कठोर अनुशासन एवं कठोर परिश्रम। इन धारणाओं के साथ गाँधी के बाद दूसरा कोई नेता राजनीति में नहीं हुआ, मोदी को छोड़कर। ऐसा मोदी के अब तक के प्रयासों से दृष्टिगत होता है। यह संभव है कि कुछ मुद्दों में आलोचना की जा सकती है, जैसे चाईना के व्यवहार एवं पाकिस्तान के व्यवहार के पश्चात प्रतिक्रिया। शायद यह देश की परिस्थितियों की विवशता भी हो सकती है। पर उनके द्वारा अब तक लिये गये निर्णयों के दूरगामी परिणाम होंगे। उन्होंने अपने अब तक के प्रयासों से यह साबित किया है कि एक सामान्य व्यक्ति अपनी दूरदृष्टि और लगन के साथ बहुत उंचाईयों तक जा सकता है। देश की आर्थिक ढंाचे के लिए देश में मोदीनोमिक्स है, जिसे आप गुजरात मॉडल कहते हंै। इसमें पूंजीवाद और समाजवाद का तड़का जरूर दिखाई पड़ेगा। जहां एक ओर वे उद्योगपतियों को उद्योग प्रारंभ करने के लिए तत्परता से हर तरह की सहायता दे रहें हैं वहीं उद्योगों के विकास के रोड-ट्रांसपोर्ट पर तेजी से काम करने का आदेश दिया। वहीं रेल को गतिमान बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझोते किये। साथ ही देश के कुछ क्षेत्रों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों में विकसित करने के भी समझौते किये। उन्होंने तत्संबंध में बहुत से देशों की यात्राएं कीं। उनकी यह यात्रा सामरिक और वैश्विक सहयोगों को नए स्तर पर ले जाए जाने की आकांक्षाओं से भरी हुई हैं। वे यात्राएं तो जरूर कर रहे हैं, देशों से मधुर संबध बनाने के प्रयास कर रहे हैं, पर देखने लायक बात तो यह होगी कि वे किस तरह सभी देशों के साथ निर्विवाद परस्पर संबंध कायम कर सकेंगे? साथ ही वे धनाड्य और हाईली डेव्लप्ड् देशों को भारत के हित में बातचीत के टेबल पर कैसे लायेंगे। इन सभी से कैसे अधिकतम सहयोग सम्मानपूर्वक ले सकेंगे। यही होगी इनकी असली कूटनीति की परीक्षा।
जापान, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अमेरिका के साथ एक के बाद एक, चार उच्चस्तरीय वार्ताओं को अंजाम देते हुए प्रधानमंत्री मोदी भारत की विदेश नीति की वरीयताओं को फिर से गढऩे की राह पर हैं। उनकी जापान यात्रा के दौरान जैसी निजी केमेस्ट्री और विश्वास बहाली देखने को मिली, वह पहले कभी नहीं दिखी। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि उनके नेपाल की यात्रा में उनका कुछ इस तरह का स्वागत हुआ कि ऐसा अबतक के ईतिहास में कभी भी किसी भी विदेशी मंत्री का किसी देश में ऐसा भग्व स्वागत हुआ हो। नेपाल में मोदी को एक नजर देखने के लिए एक ऐसा जनसमूह उमड़ा, जो अभूतवूर्व था। इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी विदेश राजनायिक को कम ही देखना पंसद करते हैं।
अगर मोदी की अब तक वैश्विक यात्राओं की बात की जाए तो जापान यात्रा सबसे कामयाब कहलाएगी परंतु सबसे अधिक प्रतिष्ठा देने वाली यात्रा तो नेपाल की ही थी। सवाल! मोदी ने सबसे पहले नेपाल को ही क्यूं चुना। क्योंकि मोदी एक सच्चे हिंदु हैं और हिंदु के सम्मान को फिर से कायम करने के लिए अन्य राष्ट्रों में फैले हिंदुओं को संगठित करना होगा, जिससे हिंदुत्व की जड़ें और मजबूत हो सकेंगी। साथ ही भारत के ही समान सांसकृतिक मूल्यों वाले देश नेपाल में ही मोदी के हिंदु विचारों को सही प्रतिसाद मिल सकता था।
इन सब में कई खास तत्व हैं, जो ध्यान में रहने चाहिए। पहला, पड़ोसियों ने नई सरकार के लिए अपनी विदेश नीति में प्राथमिकता अपनाई है। लेकिन उनकी आर्थिक कूटनीति पर प्रमुखता अतीत से एकदम अलग है। दूसरा, मोदी ने आर्थिक कूटनीति व पुरानी सुर्खियों की जगह को पश्चिम से एशिया में केंद्रित किया। तीसरा, मोदी ने वर्तमान सच्चाइयों पर अतीत के कूटनीतिक पूर्वाग्रहों की छाया नहीं पडऩे दी। चीन, पाकिस्तान व अमेरिका के साथ संबंध के उनके प्रयास बताते हैं कि भारत के प्रबुद्ध राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए वह कुछ अतिरिक्त कदम उठाने को तत्पर हैं। और अंत में, मोदी की विदेश नीति घरेलू प्राथमिकताओं के साथ-साथ और आपस में जुड़ी हुई आगे बढ़ रही है। विदेशी निवेश व सहयोग पर उनका जोर 'मेक इन इंडिया के जरिये विनिर्माण क्रांति के आह्वान, आधारभूत संरचनाओं के सुधार से बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके मुहैया कराने, स्मार्ट शहरों के विकास, हाई स्पीड रेलवे नेटवर्क बनाने और नदी-तंत्रों के कायाकल्प पर है। यह सब करते हुए मोदी वह 'लाल रेखाÓ खींचने से परहेज नहीं करते, जो भारत की खाद्य सुरक्षा को पर्याप्त संरक्षण न देने वाली कारोबारी व्यवस्था को दरकिनार करती है और बताती है कि अपने हितों की रक्षा में यह देश कहां तक जा सकता है। हालांकि, विदेश नीति के ये प्रारूप तभी सचमुच में प्रासंगिक होंगे, जब यह देश विकास की अपनी कहानी को फिर से दोहराने में सफल होगा। मोदी का अपना नेतृत्व आर्थिक मोर्चे पर सफलता से जुड़ा हुआ है। यही वह मोर्चा है, जहां भारत की विदेश नीति को अनुकूल बनाने की दूर-दृष्टि मोदी अपना रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी का जन्म लग्र वृश्चिक और राशि भी वृश्चिक है। शुक्र की महादशा और शनि के अंतर में उनके राजनैतिक जीवन की शुरूआत २००१ से २०१३ अनवरत प्रसिद्धि, ताकत और गरिमा प्राप्त करते रहे। लग्रस्थ: मंगल के कारण एक आक्रामक एवं कठोर हिन्दुवादी नेता की छवि रखते हैं जिनके कुछ भी बोलने पर विवाद हो जाता है मगर ये विवाद इन्हें जनता के बीच बहुत प्रसिद्धी दिलाते हैं। मार्च २०१३ से राहु का अंतर शुरू हुआ, पंचमस्थ राहु इन्हें सत्ता के शीर्ष पर ले आया। आने वाले समय में अक्टूबर २०१४ से जब गुरू की अंतर्दशा प्रारंभ होगी तब चुंकि गुरू इनकी कुंडली में द्वितीयेश एवं पंचमेश होकर चतुर्थ भाव में बैठा है अत: गुरू की अंतर्दशा में घरेलू स्तर पर अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में मोदीजी के फैसले अहम होंगे जो इन्हें एक दूरदृष्टा एवं भविष्यकर्ता के रूप में स्थापित करेंगे। गुरू पर लग्रस्थ मंगल की दृष्टि इन्हें अपने व्यवहार एवं फैसलों पर कठोरता से अमल करने एवें अमलीजामा पहनाने में सफलता दिलाता है। जिससे इनके ये फ ैसले इन्हें भारतीय जमीन एवं अनेक देशों मे फैले भारतियों को गर्विता का एहसास करा पाने में सफलता दिलाऐंगे। गुरू की अंतर्दशा के चलते ही मोदी आने वाले समय में वैश्विक राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बनकर सामने आयेंगे। आने वाले दिनों में मोदी न सिर्फ एशिया के सिरमौर होंगे बल्कि पूरे विश्व में अपनी ताकत और कूटनीति की धार दिखा पाएंगे।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in
No comments:
Post a Comment