Sunday 12 April 2015

दिल का रोग


हृदय शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। मानवों में यह छाती के मध्य में, थोड़ी सी बाईं ओर स्थित होता है और एक दिन में लगभग एक लाख बार एवं एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है। यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को धकेलता करता है। हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के द्वारा मिलता है जो कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान किया जाता है। यह अंग दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं। दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है और रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है। चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं। दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रूकावट के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम ) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है।
कुंडली में षठा घर रोग का स्थान है, अष्टम घर मृत्यु का और बारहवा घर व्यय का स्थान है। दूसरे घर के मालिक और सप्तम घर को मारक स्थान कहते है। जो ग्रह कुंडली के षठा भाव, अष्टम या बारहवे भाव में हो या षठा, अष्टम या बारहवे घर के स्वामी के साथ हो, तो रोग का कारक बनता है।
सूर्य हृदय का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका भाव पंचम है। जब पंचम भाव, पंचमेश तथा सिंह राशि पाप प्रभाव में हो तो हार्ट अटैक की सम्भावना बढ़ जाती है। सूर्य पर राहु या केतु में से किसी एक ग्रह का पाप प्रभाव होना भी हृदय रोग का कारण होता है। जीवन में घटने वाली घटनाएं अचानक ही घटती हैं जोकि राहु या केतु के प्रभाव से ही घटती हैं। हार्ट अटैक भी अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के आता है, इसीलिए राहु या केतु का प्रभाव आवश्यक है। चौथा भाव और दसवां भाव हृदय कारक अंगों के प्रतीक हैं। चतुर्थ भाव का कारक चन्द्र भी आरोग्यकारक है। दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु व शनि हैं। पाचंवा भाव छाती, पेट, लीवर, किडनी व आंतों का है, ये अंग दूषित हों तो भी हृदय को हानि होती है। यह भाव बुद्धि अर्थात विचार का भी है। यदि षष्ठेश केतु के साथ हो तथा गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र अष्टम भाव में हों, चतुर्थ भाव में केतु हो तो हृदय रोग होता है। चतुर्थेश लग्नेश, दशमेश व व्ययेश के साथ आठवें हो और अष्टमेश वक्री होकर तृतीयेश बनकर तृतीय भाव में हो व एकादश भाव का स्वामी लग्न में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
षष्ठेश की अष्टम भाव में स्थित गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र पर दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीडि़त होता है।
शनि दसवीं दृष्टि से मंगल को पीडि़त करे, बारहवें भाव में राहु तथा छठे भाव में केतु हो, चतुर्थेश व लग्नेश अष्टम भाव में व्ययेश के साथ युत हो तो भी हृदय रोग होता है।
छठे भाव का कारक मंगल व शनि हैं। मंगल रक्त का कारक और शनि वायु का कारक है। ये भी रोग कारक हैं। आठवां भाव रोग और रोगी की आयु का सूचक है। आठवें का कारक शनि है। विचार करते समय भाव व उनके कारकों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
सूर्य, चन्द्र, मंगल, शनि, राहु व केतु ग्रह का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि ये सभी रोग को प्रभावित करते हैं या बढ़ाते हैं। सूर्य-शनि की युति त्रिक भाव में हो या बारहवें भाव में हो तो यह रोग होता है। अशुभ चन्द्र चौथे भाव में हो एवं एक से अधिक पापग्रहों की युति एक भाव में हो।
केतु-मंगल की युति चौथे भाव में हो। अशुभ चन्द्रमा शत्रु राशि में या दो पापग्रहों के साथ चतुर्थ भाव में स्थित हो तो हृदय रोग होता है। सिंह लग्न में सूर्य पापग्रह से पीडि़त हो। मंगल-शनि-गुरु की युति चौथे भाव में हो। सूर्य की राहु या केतु के साथ युति हो या उस पर इनकी दृष्टि पड़ती हो। शनि व गुरु त्रिक भाव अर्थात 6, 8, 12 के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों। राहु-मंगल की युति 1, 4, 7 या दसवें भाव में हो। निर्बल गुरु षष्ठेश या मंगल से दृष्ट हो। बुध पहले भाव में एवं सूर्य व शनि षष्ठेश या पापग्रहों से दृष्ट हों। यदि सूर्य, चन्द्र व मंगल शत्रुक्षेत्री हों तो हृदय रोग होता है। चौथे भाव में राहु या केतु स्थित हो तथा लग्नेश पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय पीड़ा होती है।
शनि या गुरु छठे भाव के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों व पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय कम्पन का रोग होता है। लग्नेश चौथे हो या नीच राशि में हो या मंगल चौथे भाव में पापग्रह से दृष्ट हो या शनि चौथे भाव में पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है। चतुर्थ भाव में मंगल हो और उस पर पापग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो रक्त के थक्कों के कारण हृदय की गति प्रभावित होती है जिस कारण हृदय रोग होता है। पंचमेश षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश से युत हो अथवा पंचमेश छठे, आठवें या बारहवें में स्थित हो तो हृदय रोग होता है। पंचमेश नीच का होकर शत्रुक्षेत्री हो या अस्त हो तो हृदय रोग होता है। पंचमेश छठे भाव में, आठवें भाव में या बारहवें भाव में हो और पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है। सूर्य पाप प्रभाव में हो तथा कर्क व सिंह राशि, चौथा भाव, पंचम भाव एवं उसका स्वामी पाप प्रभाव में हो अथवा एकादश, नवम एवं दशम भाव व इनके स्वामी पाप प्रभाव में हों तो हृदय रोग होता है।
मेष या वृष राशि का लग्न हो, दशम भाव में शनि स्थित हो या दशम व लग्न भाव पर शनि की दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीडि़त होता है। लग्न में शनि स्थित हो एवं दशम भाव का कारक सूर्य शनि से दृष्ट हो तो जातक हृदय रोग से पीडि़त होता है। नीच बुध के साथ निर्बल सूर्य चतुर्थ भाव में युति करे, धनेश शनि लग्न में हो और सातवें भाव में मंगल स्थित हो, अष्टमेश तीसरे भाव में हो तथा लग्नेश गुरु-शुक्र के साथ होकर राहु से पीडि़त हो एवं षष्ठेश राहु के साथ युत हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
चतुर्थेश एकादश भाव में शत्रुक्षेत्री हो, अष्टमेश तृतीय भाव में शत्रुक्षेत्री हो, नवमेश शत्रुक्षेत्री हो, षष्ठेश नवम में हो, चतुर्थ में मंगल एवं सप्तम में शनि हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
लग्नेश निर्बल और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तथा चतुर्थ भाव में राहु स्थित हो तो जातक को हृदय पीड़ा होती है।
लग्नेश शत्रुक्षेत्री या नीच का हो, मंगल चौथे भाव में शनि से दृष्ट हो तो हृदय शूल होता है।
सूर्य-मंगल-चन्द्र की युति छठे भाव में हो और पापग्रहों से पीडि़त हो तो हृदय शूल होता है।
सूर्य चौथे भाव में शयनावस्था में हो तो हृदय में तीव्र पीड़ा होती है।
लग्नेश चौथे भाव में निर्बल हो, भाग्येश, पंचमेश निर्बल हो, षष्ठेश तृतीय भाव में हो, चतुर्थ भाव पर केतु का प्रभाव हो तो जातक हृदय रोग से पीडि़त होता है।
ह्रदय रोग के डाक्टरी (चिकित्सीय) कारण: अनियमित व अनियंत्रित खानपान। नियमित व्यायाम का अभाव। भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देना। भोजन लेने के ठीक बाद सोना। वसायुक्त भोजन का अधिक मात्रा में सेवन करना।
काफी देर तक एक ही स्थिति में बैठने से हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। खासकर महिलाओं के संदर्भ में यह अधिक खतरनाक हो सकता है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, देर तक एक ही स्थिति में बैठी रहने वाली महिलाओं के फेफड़ों में रक्त का थक्का बनने का खतरा सक्रिय रहने वाली महिला की तुलना में दो से तीन गुना अधिक होता है, जो खतरनाक हो सकता है। यह पहला अध्ययन है जिसमें बताया गया है कि देर तक एक ही स्थिति में बैठे रहने से 'पल्मोनरी इम्बोलिज्म का खतरा बढ़ सकता है, जो हृदय रोग का एक सामान्य कारण है। इसके मुताबिक 'पल्मोनरी इम्बोलिज्म तब होता है जब पैरों की नस से फेफड़ों तक होने वाला रक्त का प्रवाह जम जाता है। सांस लेने में कठिनाई, छाती में दर्द और कफ इसके लक्षण हैं। इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने 69,950 महिला नर्सो का 18साल तक अध्ययन किया। हर दो साल पर इनसे इनकी जीवनशैली को लेकर सवाल किए गए। उन्होंने पाया कि देर तक (काम के अतिरिक्त सप्ताह में 41 घंटे) बैठी रहने वाली महिलाओं में 'पल्मोनरी इम्बोलिज् का खतरा उन महिलाओं से दो गुना अधिक होता है, जो कम समय तक (काम के अतिरिक्त सप्ताह में 10 घंटे) बैठती हैं।
ह्रदय रोग का उपचार/इलाज:
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक 'सुपर फूलगोभीÓ विकसित करने का दावा किया है, जो कि लोगों को हृदय रोग और कैंसर से बचा सकता है। नॉरविच स्थित इंस्टिच्यूट ऑफ फूड रिसर्च और जॉन इन्नेस सेंटर के एक दल ने बताया नया स्ट्रेन जिसे बेनफोर्ट नाम दिया गया है, दिखने में सामान्य फूलगोभी की तरह ही है लेकिन पोषक तत्व ग्लुकोराफानिन इसमें तीन गुणा अधिक पाया जाता है। अनुसंधान में पता चला है कि ग्लुकोराफानिन हदय रोगों और कैंसर को रोकने में मदद कर सकता है। इस पोषक तत्व को परिवर्तित करके यौगिक सल्फोराफेन बना लिया गया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह यौगिक दिल का दौरा, कैंसर की शुरूआती अवस्था में अनियंत्रित कोशकीय विभाजन के लिए जिम्मेवार जलन को स्पष्ट तौर पर कम करने और रोगों के खिलाफ लडऩे वाले एंटी-ऑक्सिडेंट की मौजूदगी को बढ़ाता है। आनुवांशिक इंजीनियरिंग के बजाय जनन (ब्रीडिंग) के जरिये सुपर फूलगोभी विकसित करने वाले वैज्ञनिकों का कहना है कि यह सामान्य फूलगोभी के मुकाबले सल्फोराफेन के स्तर को दो से चार गुणा तक बढ़ा देता है।
पका हुआ पीला काशीफल (कद्दू) लेकर उसके बीज निकाल करके किसी भी मन्दिर के प्रांगण में रखकर ईश्वर से स्वस्थ होने की कामना करते हुए रख दें। उपाय सूर्योदय के उपरान्त एवं सूर्यास्त से पूर्व करें। किसी के लिए वही कर सकता है जिसका रोगी से रक्त का संबंध हो। यह उपाए कम से कम तीन दिन करें और अधिक कष्ट हो तो अधिक दिन भी कर सकते हैं। यहां आस्था एवं निरन्तरता महत्वपूर्ण है।
हृदय रोग आज के समय में किसी भी उम्र को अपना शिकार बना सकता है, यह रोग आज भी मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। आधुनिक विज्ञान में हृदय रोगों को कार्डीयकडीजीज के नाम से जाना जाता है। हृदय रोगों में कोरोनरी हार्ट डीजीज, कार्डीयो मायोपैथी, कार्डीयो वास्कुलर डीजीज, इस्चमीक हार्टडीजीज, हार्टफेलियर आदि अनेक रोग आते हैं।
हृदयरोग की जड़ में अनेक कारण हो सकते हैं- धूम्रपान, गलत खान-पान, आराम की जिंदगी, चलने-फिरने और शारीरिक श्रम में कोताही या फिर दौड़-धूप और तनाव की अधिकता।
ह्रदय रोग का ज्योतिषीय उपचार:
छठे भाव का कारक मंगल व शनि हैं। मंगल रक्त का कारक और शनि वायु का कारक है। ये भी हृदयरोग कारक हैं। अत: किसी भी स्थिति में मंगल अथवा शनि विपरीत कारक हो तो मंगल शनि के मंत्रों को जाप, हवन, तर्पन, मार्जन आदि कराया जाकर दान करने से उक्त ग्रहों को प्रबल किया जा सकता है, जिससे ह्दय रोग से बचा जा सकता है। सूर्य हृदय का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका भाव पंचम है। जब पंचम भाव, पंचमेश तथा सिंह राशि पाप प्रभाव में हो तो हार्ट अटैक की सम्भावना बढ़ जाती है। इस स्थिति में सूर्य को प्रबल करने हेतु आदित्यह्दय स्त्रोत का जा कर सूर्य को प्रबल करना चाहिए। सूर्य पर राहु या केतु में से किसी एक ग्रह का पाप प्रभाव होना भी हृदय रोग का कारण होता है। राहु से पापाक्रांत ग्रहों की शांति हेतु राहु की शांति कराना चाहिए। कुंडली में षठा घर रोग का स्थान है, यदि छठेश की दशा चल रही हो और वह लग्न या भाग्य स्थान में हो तो छठे भाव की शांति कराई जानी चाहिए। आठवां भाव रोग और रोगी की आयु का सूचक है। आठवें का कारक शनि है। शनि की शांति कराने से भी इस रोग से बचाव संभव है। यदि यह रोग आ ही जाए तो महामृत्युंजय का सवालाख जाप कराया जा कर हवन आदि करने से रोग से निवृत्ति प्राप्त होती है।

Pt.P.S Tripathi
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