Sunday 12 April 2015

सूर्य


भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह राशिचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, स्वर्ण आभूषण, तांबा आदि का कारक है। मन्दिर, सुन्दर महल, जंगल, किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। शरीर में पेट, आंख, ह्रदय, चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है और इस ग्रह से आंख, सिर, रक्तचाप, गंजापन एवं बुखार संबंधी बीमारी होती है। सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनावट सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन 6माह का होता है, 6माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है और 6माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केशरिया माना जाता है। धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है। यह पुरुष ग्रह है इससे आयु की गणना 50 साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम दृष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है।
सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनि और शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा 6साल की होती है। सूर्य गेंहू, घी, पत्थर, दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है और वनस्पति जगत में लम्बे पेड़ का कारक सूर्य है। मेष के 10 अंश पर उच्च और तुला के 10 अंश पर नीच माना जाता है सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर 0 अंश से लेकर 10 अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है। सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका है और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम अ ई उ अक्षरों से चालू होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है।
सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध: चन्द्र के साथ इसकी मित्रता है। मंगल भी सूर्य का मित्र है। बुध भी सूर्य का मित्र है तथा हमेशा सूर्य के आसपास घूमा करता है। गुरु यह सूर्य का परम मित्र है, दोनो के संयोग से जीवात्मा का संयोग माना जाता है। गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा। शनि सूर्य का पुत्र है लेकिन दोनो की आपसी दुश्मनी है,जहां से सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा चालू हो जाती है। छाया मर्तण्ड सम्भूतं के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से शनि की उत्पत्ति मानी जाती है। सूर्य और शनि के मिलन से जातक कार्यहीन हो जाता है, सूर्य आत्मा है तो शनि कार्य आत्मा कोई काम नही करती है इस युति से ही कर्म हीन विरोध देखने को मिलता है।
शुक्र रज है और सूर्य का शत्रु है। सूर्य गर्मी स्त्री जातक और पुरुष जातक के आमने सामने होने पर रज जल जाता है। राहु सूर्य और चन्द्र दोनो का दुश्मन है। एक साथ होने पर जातक के पिता को विभिन्न समस्याओं से ग्रसित कर देता है। केतु यह सूर्य से सम है।
वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है।
ऋग्वेद के देवताओं में सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने ''चक्षो सूर्यो जायतÓÓ कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं अत: कोई आश्चर्य नही कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का निर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। वैदिक साहित्य में ही नही आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
जन्मकुंडली में विभिन्न भावों में बैठे सूर्य की दृष्टि का फल:
सूर्य यदि लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक रजोगुणी, नेत्ररोगी, सामान्य धनी, पितृभक्त, एवं राजमान्य होता है।
दूसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो धन तथा कुटुंब से सामान्य सुखी, संचित धननाशक एवं परिश्रम से थोड़े धन का लाभ करने वाला होता है।
तीसरे भाव को देखता हो तो कुलीन, राजमान्य, बड़े भाई के सुख स वंचित, उद्यमी एवं नेता होता है।
चौथे भाव को देखता हो तो 22 वर्ष पर्यंत सुखहानि लेकिन वाहन सुख प्राप्ति एवं सामान्यत: मातृसुखी होता है।
पांचवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो प्रथम संताननाशक, पुत्र के लिए चिंतित, 21 वर्ष की आयु में संतान प्राप्त करने वाला एवं विद्वान होता है।
छठे भाव को देखता हो तो जीवनभर ऋणी, 22 वर्ष की आयु में स्त्री के लिए कष्टकारक होता है।
सातवें भाव में सूर्य की दृष्टि व्यापारी बनाती है, ऐसा जातक जीवन के अंतिम दिनों में सुखी होता है।
आठवें भाव को देखता हो तो रोगी, व्यभिचारी, पाखंडी एवं निंदित कार्य करने वाला होता है।
नौवें भाव को देखता हो तो धर्मभीरू, बड़े भाई और साले के सुख से वंचित होता है।
दसवें भाव को देखता हो तो राजमान्य, धनी, मातृनाशक तथा उच्च राशि का सूर्य हो तो माता, वाहन और धन का पूर्ण सुख प्राप्त करने वाला होता है।
ग्यारहवें भाव को देखता हो तो धन लाभ करने वाला, प्रसिद्ध व्यापारी, बुद्धिमान, कुलीन एवं धर्मात्मा होता है।
बारहवें भाव को देखता हो तो प्रवासी, शुभ कार्यों में व्यय करने वाला, मामा को कष्टकारक एवं वाहन का शौकीन होता है।

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