इन दिनों में विश्व तथा देश की सबसे बड़ी समस्या मुद्रा स्फीति या अन्य अर्थों में मंहगाई है। मैंने इस वक्त के अव्यवस्था पर गंभीरता पूर्वक चिंतन किया तो पाया जब-जब व्यवस्था (सिस्टम) ने, शनि की मर्यादा यानी नैसर्गिक न्याय और गुरू यानी धर्म की मर्यादा का उल्लंघन किया, उसके बहुत भयानक परिणाम हुये। इसे आप विश्व युद्ध के तौर पर देख सकते हैं। इसे आप वैश्विक मंदी के तौर पर भी देख सकते हैं। व्यक्ति समाज या देश मर्यादा का जितनी गंभीरता पूर्वक अतिक्रमण करता है, उतने ही भयानक और दीर्धकालिक परिणाम भुगतने पड़ते हैं। दीर्धकालिक परिणामों के लिए ज्योतिष में बड़े ग्रह यानी गुरू, शनि एवं छायाग्रह राहु, मौटे तौर पर कारक होते हैं और अल्पकालीन अव्यवस्था के लिए सूर्य, मंगल, बुध, शुक्र कारक होते हैं एवं अत्यंत अल्पकालीन परेशानियों की वजह चंद्रमा होता है। हम आज चर्चा दुनिया में छायी मंदी की कर रहे हैं जो सारी दुनिया में चर्चा का विषय है।
१८४७ से लेकर १९२९ और २००८ में हम एक सामान्य बात देखते हैं कि जब पूरा विश्व मंदी से संघर्षरत था, तब गुरू, धनु-मीन राशिगत हो अथवा राहु से आक्रांत हो अथवा शनि, उच्च राशिगत हो या राहु से आक्रांत हो। या उच्चस्थ कर्कगत गुरू हो या गुरु-शुक्र का मेल हो, तभी बाजार में मंदी और उपभोक्ताओं में निराशा दिखती है। मंदी की विभिषिका से बाहर आने के लिए व्यवस्था में भीषण रक्तपात होता है अर्थात इस अव्यवस्था का परिणाम राष्ट्र के अंतर ग्रहयुद्ध अथवा राष्ट्र के बीच में युद्ध की संभावना बढ़ाती है। इस वक्त भी जब मंदी की परेशानियों से लोग जूझ रहे हैं, तब भी उच्चस्थ कर्कगत गुरू तथा उच्चस्थ शनि सारी दुनिया में कठोर माप-दंड के साथ मर्यादाओं के पुनस्र्थापन के लिए अग्रसर हैं। कई बार मर्यादायें भीषण रक्तपात से ही स्थापित होती हैं, ऐसा मैं कहता नहीं, ऐसा इतिहास में पढ़ा है, महाभारत ने दिखाया है, हमने दो विश्व युद्ध भी देखे हैं। इन सब के पीछे कहीं न कहीं अर्थ एवं अतिशय महत्वाकांक्षा बड़ी वजह थी। तो क्या विश्व भयानक मंदी की ओर जा रहा है? अथवा कोई बड़ा युद्ध या बड़ी क्रांति या बड़े वर्गसंघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है? जवाब है- हां। २००८ से २०१४ तक लगातार चल रहे भयानक आर्थिक मंदी ने लोगों के अंदर भयानक निराशा पैदा कर दी है, और कहीं कहीं उन्माद भी। उच्चस्थ गुरू एवं उच्चस्थ शनि ने आईएसआईएस जैसे संगठनों का उदय किया। इस कहानी के प्रमुख पात्र बगदादी २००८ मेें अमेरिका की कैद में था। असल में व्यवस्था के परिवर्तनों को व्यापक दृष्टि से देखें सो समझ में आएगा, सारा संघर्ष असंतोष का है। असंतोष दो ही तरीके से खत्म हो सकता है, या तो असंतोष तुष्ट हो जाए या असंतोष का दमन कर दिया जाए। कुल मिलाकर पूरा विश्व एक भयानक युद्ध की ओर बढ़ रहा है, एक तरफ उन्माद है, तो दूसरी तरफ भयानक लोभ। यदि बहुत जल्दी मर्यादाओं का पुनस्र्थापन नहीं हुआ और बीते दिनों में की गई गल्तियों को सुधारा नहीं गया, चाहे वो ईराक और अफगास्तिान पर अमेरिका का हमला हो, या यूएसएसआर के पतन के लिए अमेरिका द्वारा की गई साजिशें हो, चाहे वो २-जी घोटाला हो या कोल-ब्लॉक घोटाला। यदि देश में या समाज में या व्यवस्था में सत्ता के लोभ में मदान्ध कुछ लोग समाज के बाकी लोगों का शोषण करते हैं और इससे जीवन स्तर में और संतुष्टि के स्तर में बड़ा अंतर आता है तो निश्चित मानिये, वह देश, वह समाज, वह व्यवस्था बीमार हो जाती है। देश के अंदर बीते दिनों में बड़ी-बड़ी राष्ट्रीय नीतियां धनपतियों के हित में बनाई गईं, जिसका परिणाम देश में तीन स्पष्ट वर्ग तैयार हो गए, एक अत्यंत धनपति और एक अत्यंत संघर्षशील मध्यमवर्ग और एक अतिशय गरीब। परिणाम धनपति बाजार पर हावी हो गए और अपनी ईच्छा से मंहगाई बढ़ाई। मध्यम और अत्यंत गरीब की क्रयशक्ति कम होने लगी और बाजार में मांग कम हो गई। उत्पादन कम हो गया, उत्पादन लागत बढ़ गई और देश के अंदर भयानक असंतोष और नैराश्य पैदा हो गया। १४ सितंबर को फ्यूचर फ ॉर यू द्वारा आयोजित मुद्रा स्फ ीति पर केन्द्रित चर्चा में डॉ. अशोक पारख ने इसके भयानक परिणाम की छोटी सी झलक दिखलाई और कहा कि इसके कारण ही देश की पूरी सत्ता बदल गई। और साथ ही नई सरकार भी उपचुनाव में दो वजहों से परास्त हुई। एक- कि मूल आर्थिक वजहों से मुख मोड़ लिया, दूसरा- जनता का ध्यान बंटाने के लिए दूसरी सामाजिक मुद्दे तैयार करने की कोशिश हुई। जिसका परिणाम पुन: सरकार को मिल गया। मतलब बहुत साफ है कि विश्व एवं देश के महत्वपूर्ण लोगों को समझ लेना होगा कि जनता का सरोकार सर्वोपरि होना चाहिए और कठोर आदर्श के मापदण्डों का शुचिता पूर्वक पुनस्र्थापन शीघ्रातिशीघ्र होना चाहिए, ग्रहों की चाल इस वक्त यही दिखाती है। सभी आलोचनाओं से ऊपर आर्थिक सुधारवादी निर्णय दृढ़ता से लेने होंगे, नहीं तो उच्च के शनि के कारण आगे राह कठिन है।
Pt.P.S Tripathi
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