Monday, 13 April 2015

शक्ति और ज्ञान का मद


एक बार यह गुरुकुल से चार युवक विद्या पूरी करने के उपरान्त अपने घर वापिस जा रहे थे। मार्ग में एक जंगल था, जिसको होकर वो गुजर रहे थे। उन चारों में तीन मेद्यावी छात्र थे व लौकिक विद्याओं में पांरगत थे। चैथा आध्यात्मिक रुचि का था व प्रज्ञा चलु सम्पन्न था। जंगल में एक स्थान पर उन्होंने देखा अस्थि पंजर, रक्त मांस बिखरा पड़ा था। तीन मेधावी छात्रों के मस्तिष्क में विचार आया क्यों न हम अपनी योग्यता का परीक्षण कर लें व जो जानवर मरा पड़ा है इसको संजीवनी विद्या से जीवित करके देंखे। तीनों इस कार्य में जुट गए।
चौथे छात्र चिल्लाया, अरे यह क्या करने जा रहे हो। सम्भवत: किसी ने शेर को मारा हो, यदि ऐसा हुआ तो शेर जीवित हो जाएगा। तीनो अपनी प्रतिभा के मद में चूर थे उन्होंने कुछ नहीं सुना व अपने कार्य में जुटे रहे। चौथा व्यक्ति ने देखा कि वो तीनों उसकी बात नहीं सुन रहे है तो वह आस पास सुरक्षित जगह देखने लगा। तभी उसे एक ऊँचा वृक्षा दिखायी दिया वह उस पर चढ़कर छुप गया। उसने देखा कि तीनों के परिश्रम से जो जानवर जीवित हुआ वह शेर ही था। शेर जिन्दा होते ही तीनों को खा गया।
यह घटना हम सभी पर लागू होती है हम भौतिकवाद की विद्या में इतने चूर हो चुके हैं कि इसके गलत परिमाण की हमें सुध ही नहीं है। भोगवाद रूपी दानव पल बढ़ रहा है एक दिन कहीं वो बड़ा होकर हम सबको न खा जाए। इसके लिए दिव्यद्रष्टा, दार्शनिक, आध्यात्मवादी व प्रज्ञावान लोग शोर मचा रहे है परन्तु अपनी शक्ति के मद में चूर आज के आधुनिक लोगों को कुछ भी सुनायी नहीं दे रहा है। हम सोचते हैं कि हमने बहुत प्रगति की परन्तु क्या आने वाली पीढ़ी हमें मूर्ख नहीं कहेगी कि हम जानते हुए भी वो सब करे जा रहें है जो भारी विनाश को आमन्त्रित कर सकता है। आखिर हम क्यों यह भूल बैंठे हैं कि हमारी आज की सभी समस्याओं का समाधान कहीं न कहीं आध्यात्म में ही छुपी हुई है, न कि भौतिकवाद में।

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