Sunday, 12 April 2015

गुरु पूर्णिमा


गुरु पूर्णिमा

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:। अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.
उक्त वाक्य उस गुरु की महिमा का बखान करते हैं जो हमारे जीवन को सही राह पर ले जाते हैं. गुरु के बिना यह जीवन बहुत अधूरा है. यूं तो हम इस समाज का हिस्सा हैं ही लेकिन हमें इस समाज के लायक बनाता है गुरु. शिक्षक दिवस के रूप में हम अपने शिक्षक को तो एक दिन देते हैं लेकिन गुरु जो ना सिर्फ शिक्षक होता है बल्कि हमें जीवन के हर मोड़ पर राह दिखाने वाला शख्स होता है उसको समर्पित है गुरु पूर्णिमा.
वेद व्यास की जयंती: गुरु पूर्णिमा गुरु माने जाने वाले वेद व्यास को समर्पित है. माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था. वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी. वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था. उन्होंने ही महाभारत, 18पुराणों व 18उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है. ऐसे जगत गुरु के जन्म दिवस पर गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा है.
बुद्ध ने दिया था प्रथम उपदेश: बौद्ध ग्रंथों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के पांच सप्ताह बाद भगवान बुद्ध ने सारनाथ पहुंच आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था. इसे बौद्ध ग्रंथों में 'धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है. बौद्ध धर्मावलंबी इसी गुरु-शिष्य परंपरा के तहत गुरु पूर्णिमा मनाते हैं.
गुरुपूर्णिमा का महत्व: गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा. गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर और कोई तिथि नहीं हो सकती. जो स्वयं में पूर्ण है, वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरों को करा सकता है. पूर्णिमा के चंद्रमा की भांति जिसके जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंत:करण में ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है. इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में अपनी समस्त श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए. यह पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा भी कहलाती है. गुरु कृपा असंभव को संभव बनाती है. गुरु कृपा शिष्य के हृदय में अगाध ज्ञान का संचार करती है.
गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व अपने आराध्य गुरु को श्रद्धा अर्पित करने का महापर्व है। योगेश्वर भगवान कृष्ण श्रीमद्भगवतगीता (8-12) मेंं कहते हैं, हे अर्जुन! तू मुझमेंं शिष्यभाव से पूरी तरह अपने मन और बुद्धि को लगा ले। ऐसा करने से तू मुझमेंं ही निवास करेगा, इसमेंं कोई संशय नहीं. यह पुण्य दिवस उस महान ज्ञान के प्रति कृतज्ञ होने का दिन है, जो हमेंं गुरुओं से प्राप्त हुआ है। गुरु की महत्ता के बारे मेंं संत कबीर ने गुरु को ईश्वर से ऊंचा स्थान देते हुए कहा है- गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागहुं पायं, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय। गुरु केवल ज्ञान ही नहीं देता बल्कि अपनी कृपा से शिष्य को सब पापों से मुक्त भी कर देता है। गुरु तत्व का सिद्धांत और बुद्धिमत्ता है, आपके भीतर की गुणवत्ता, यह एक शरीर या आकार तक सीमित नहीं है।
छत्तीसगढ़ में कबीरपंथियों के द्वारा अपने गुरू की पूजा की जाती है। इस पावन पर्व में कबीर के अनुयायियों की मान्यता होती है कि उनके सद्गुरू ही इस जीवन-मरण के पाप-लीला से मुक्त करायेंगे। देश भर में अलग-अलग पंथों में अपने गुरूओं की इस दिन पूजा की जाती है।
शास्त्रों मेंं कहा गया है कि गुरु से मंत्र लेकर वेदों का पठन करने वाला शिष्य ही साधना की योग्यता पाता है। व्यावहारिक जीवन मेंं भी देखने को मिलता है कि बिना गुरु के मार्गदर्शन या सहायता के किसी कार्य या परीक्षा मेंं सफलता कठिन हो जाती है। लेकिन गुरु मिलते ही लक्ष्य आसान हो जाता है। गुरु ऐसी युक्ति बता देते हैं, जिससे सभी काम आसान हो जाते हैं। गुरु का मार्गदर्शन किसी ताले की चाभी की तरह है। इस प्रकार गुरु शक्ति का ही रूप है। वह किसी भी व्यक्ति के लिए एक अवधारणा और राह बन जाते हैं, जिस पर चलकर व्यक्ति मनोवांछित परिणाम पा लेता है।
पुराणों मेंं एक प्रसंग मिलता है कि जिसके अनुसार संतों, ऋषियों और देवताओं ने महर्षि व्यास से अनुरोध किया था कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं की पूजा के लिए कोई न कोई दिन निर्धारित है उसी तरह गुरुओं और महापुरुषों की अर्चना के लिए भी एक दिन निश्चित होना चाहिए। इससे सभी शिष्य और साधक अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता दर्शा सकेंगे। इस अनुरोध पर वेद व्यास ने आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन से ब्रह्मासूत्र की रचना शुरू की और तभी से इस दिन को व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के रूप मेंं मनाया जाने लगा। गुरु वह है, जिसमेंं आकर्षण हो, जिसके आभा मंडल मेंं हम स्वयं को खिंचते हुए महसूस करते हैं। जितना ज्यादा हम गुरु की ओर आकर्षित होते हैं, उतनी ही ज्यादा स्वाधीनता हमेंं मिलती जाती है। कबीर, नानक, बुद्ध का स्मरण ऐसी ही विचित्र अनुभूति का अहसास दिलाता है। गुरु के प्रति समर्पण भाव का मतलब दासता से नहीं, बल्कि इससे मुक्ति का भाव जागृत होता है। गुरु के मध्यस्थ बनते ही हम आत्मज्ञान पाने लायक बनते हैं।
गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान देने के साथ-साथ जीवन मेंं अनुशासन मेंं जीने की कला भी सिखाते हैं। वह व्यक्ति मेंं सत्कर्म और सद्विचार भर देते हैं। इसलिए गुरु पूणिर्मा को अनुशासन पर्व के रूप मेंं भी मनाया जाता है। गुरु हमारे अंदर संस्कार का सृजन, गुणों का संवर्धन और वासनाओं एवं हीन ग्रंथियों का विनाश करते हैं।
पुराणों मेंं दिए प्रसंग यह संदेश भी देते हैं कि अगर मन मेंं लगन हो तो कोई भी व्यक्ति गुरु को कहीं भी पा सकता है। एकलव्य ने मिट्टी की मूर्ति मेंं गुरु को ढूंढ लिया और महान धनुर्धर बन गया। जगत गुरु दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए थे। उन्होंने दुनिया मेंं मौजूद हर उस वनस्पति, प्राणी और ग्रह-नक्षत्र को अपना गुरु माना, जिसकी प्रकृति और गुणों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने पृथ्वी से क्षमा और निस्स्वार्थ भाव, वायु से दूसरे के प्राणों की रक्षा, आकाश से सीमित मेंं असीमित दिखना, समुद से किसी भी परिस्थिति मेंं एक जैसा रहना, जल से पालन-पोषण की भावना और अग्नि से शुद्धता का भाव सीखा। नक्षत्रों मेंं उन्होंने चंद्रमा से घटने-बढऩे के बावजूद एक ही स्वभाव रखना और सूर्य से सर्वव्यापी व अहंकार मुक्त होना सीखा। इसी तरह कबूतरों से परिवार मेंं बहुत अधिक लिप्तता से बचना, अजगर से जो भी मिला वही भोजन कर लिया, जुगनू से इच्छाओं के वशीभूत न होना, मधुमक्खी से बिना किसी का नुकसान किए कार्यसिद्धि करना सीखा। इंद्रिय संयम करना उन्होंने हाथी से सीखा, जबकि हिरन से पथभ्रष्ट होने से बचने की युक्ति और मछली से लालची प्रवृत्ति से दूर रहने की प्रवृत्ति सीखी। गौरैया से उन्होंने यह सीखा कि ताकतवर दुश्मन से बचना ही श्रेयस्कर है। सांप से भीड़भाड़ मेंं न फंसना, मकड़ी से अपनी सुरक्षा स्वयं निर्धारित करने और भ्रमर से एकनिष्ठता अपनाना सीखा।
भारतीय संस्कृति में सदा से ही गुरू को सर्वोच्च माना गया है और गुरूपूर्णिमा के दिन अपने गुरू अर्थात जिस किसी से भी आपने सीखा है, का अभिनंदन करना चाहिए, पूजा करना चाहिए। वह गुरू ही है, जिससे जो हमें इस भवसागर से पार लगाता है।

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