- उत्तर दिशा जल तत्व की प्रतीक है। इसके स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा स्त्रियों के लिए अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में घर की स्त्रियों के लिए रहने की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।
- उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र अर्थात् ईशान कोण जल का प्रतीक है। इसके अधिपति यम देवता हैं। भवन का यह भाग ब्राह्मणों, बालकों तथा अतिथियों के लिए शुभ होता है।
- पूर्वी दिशा अग्नि तत्व का प्रतीक है। इसके अधिपति इंद्रदेव हैं। यह दिशा पुरुषों के शयन तथा अध्ययन आदि के लिए श्रेष्ठ है।
- दक्षिणी-पूर्वी दिशा यानी आग्नेय कोण अग्नि तत्व की प्रतीक है। इसका अधिपति अग्नि देव को माना गया है। यह दिशा रसोईघर, व्यायामशाला या ईंधन के संग्रह करने के स्थान के लिए अत्यंत शुभ होती है।
- दक्षिणी दिशा पृथ्वी का प्रतीक है। इसके अधिपति यमदेव हैं। यह दिशा स्त्रियों के लिए अत्यंत अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है।
- दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र यानी नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। यह क्षेत्र अनंत देव या मेरूत देव के अधीन होता है। यहाँ शस्त्रागार तथा गोपनीय वस्तुओं के संग्रह के लिए व्यवस्था करनी चाहिए।
- पश्चिमी दिशा वायु तत्व की प्रतीक है। इसके अधिपति देव वरुण हैं। यह दिशा पुरुषों के लिए बहुत ही अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में पुरुषों को वास नहीं करना चाहिए।
- उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र यानी वायव्य कोण वायु तत्व प्रधान है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। यह सर्वेंट हाउस के लिए तथा स्थायी तौर पर निवास करने वालों के लिए उपयुक्त स्थान है।
- आग्नेय, दक्षिणी-पूर्वी कोण में नालियों की व्यवस्था करने से भू-स्वामी को अनेक कष्टों को झेलना पड़ता है। गृहस्वामी की धन-सम्पत्ति का नाश होता है तथा उसे मृत्युभय बना रहता है।
नै कोण में जल-प्रवाह की नालियां भू-स्वामी पर अशुभ प्रभाव डालती हैं। इस कोण में जल-प्रवाह, नालियों का निर्माण करने से भू-स्वामी पर अनेक विपत्तियाँ आती हैं।
- दक्षिण दिशा में निकास नालियाँ भूस्वामी के लिए अशुभ तथा अनिष्टकारी होती हैं। गृहस्वामी को निर्धनता, राजभय तथा रोगों आदि समस्याओं से जूझना पड़ता है।
- उत्तर दिशा में निकास नालियाँ हों तो यह स्थिति भूस्वामी के लिए बहुत ही शुभ तथा राज्य लाभ देने वाली होती है।
- ईशान, उत्तर-पूर्व कोण में जल प्रवाह की नालियाँ भूस्वामी के लिए श्रेष्ठ तथा कल्याणकारी होती हैं। गृहस्वामी को धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है तथा आरोग्य लाभ होता है।
- शयनकक्ष में पलंग को दक्षिणी दीवार से लगाकर रखें। सोते समय सिरहाना उत्तर में या पूर्व में कदापि न रखें। सिरहाना उत्तर में या पूर्व में होने पर गृहस्वामी को शांति तथा समृद्धि की प्राप्ति नहीं होती है।
वास्तुशास्त्र घर को व्यवस्थित रखने की कला का नाम है। इसके सिद्धांत, नियम और फार्मूले किसी मंत्र से कम शक्तिशाली नहीं हैं। आप वास्तु के अनमोल मंत्र अपनाइए और सदा सुखी रहिए।
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