Monday, 18 May 2015

कुंडली में शनि ग्रह क्या है जानें

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अक्सर लोग शनि ग्रह का नाम सुनते ही डर जाते हैं, या फिर अगर किसी को कह दिया जाए कि उसकी कुंडली में शनि की साढे साती या ढैय्या चल रही है... तो उसकी हालत खराब दिखाई देती है.... ऐसे में शनि ग्रह से प्रभावित लोगों को डरने की जरुरत नहीं.... अगर आपकी कुंडली में सम्सया है तो उसका समाधान भी साथ ही मौजूद हैं... जरुरत है तो किसी विद्वान ज्योतिषी से सही सलाह लेकर उसके उपाय करने की.... यूं तो शनि ग्रह अच्छे बुरे कर्मों का फल देने वाला देवता है... और इसके प्रभाव से देवता तक नही बचे.... लेकिन जब शनि प्रस्न्न हो तो रंक को राजा बना देता है, इसी के विपरीत अगर शनिदेव रुष्ट हो जाएं तो राजा भी रंक हो जाते हैं.... कुंडली में शुभ स्थिति में बैठा शनि बडे बडे कारखानो या वाहनों का मालिक बना देता है.... शनिदेव जितना जल्दी नाराज होने वाले देवता हैं तो उनकी पूजा अर्चना करने वाले पर शनिदेव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं...

नवग्रहों के मध्य शनि पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूरी पर स्थित है... शनि एक राशि पर ढाई साल तक भ्रमण करता है... परंतु शनि का संपूर्ण राशि चक्र का भ्रमण 29 साल 5 महीने 17 दिन और पांच घंटे में तय होता है.. गोचर वश शनि जब किसी राशि में प्रवेश करता है तो अपने से बारहवी राशि में ढाई साल कष्टकारी होता है... दूसरी एवं बारहवीं राशि पर लगभग साढे सात सालों तक शनि के कारण प्रभावित चक्र प्रक्रिया को शनि की साढे साती कहते हैं... शनि की साढे साती के प्रभाव से जातक को शारिरिक कष्ट, मानसिक तनाव, ग्रह क्लेश, धन संबंधी हानि और बनते कामों में बाधा आना शुरु हो जाता है... गोचरवश शनि जब चंद्र राशि से चौथे या आठवें स्थान पर बैठा होता है तो यह स्थिति शनि की ढैय्या कहलाती है... शनि की ढैय्या के फलस्वरुप जातक को रोग, भारी धन की हानि, भाई बंधुओं से मनमुटाव, विदेश में परेशानी और अपमान का सामना करना पडता है...

कुंडली में शनि का असर है तो भी डरने की जरुरत नहीं

पूजा अर्चना से जल्द ही प्रसन्न होते हैं शनिदेव

ज्योतिषी की सलाह से नीलम पहनने से हो सकता है फायदा

शनिवार को सूर्यास्त के बाद की जाती है शनि की पूजा

तेल का दीपक जलाना और भगवान शिव की पूजा करना फायदेमंद

पीपल के पेड पर कच्ची लस्सी में काले तिल डालकर चढाना चाहिए

कुंडली में शनि ग्रह की खराब स्थिति के अनुसार ज्योतिषी नीलम नाम का रत्न धारण करने की सलाह देते हैं.... लेकिन सभी को नीलम माफिक आ जाए, ये भी संभव नहीं है... किसी को भी नीलम धारण करवाने की बाकायदा एक पूरी विधी होती है.... क्योंकि नीलम का असर तीन चार घंटों में ही दिखाई देना शुरु हो जाता है... चाहे अच्छा असर हो या बुरा.... इसलिए नीलम धारण करने से पहले किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह जरुर लें....

शनि सदैव अनिष्टकारी ही हो, एसा भी नही है... यदि किसी जातक के नवमांश कुंडली में शनि वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर या कुंभ में शुभ स्थिति में हो तो शनि की दशा व्यवसाय एवं कैरियर की दृष्टि से विशेष शुभदायी रहती है... शनि प्राय दुख कष्ट देकर दुष्ट कर्मों का भुगतान करवाता है... इस स्थिति में जातक को अपने भी पराए हो जाते हैं... यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में शनि कष्टकरार फल प्रदान कर रहा है तो शनि पूजन विधि पूर्वक करने से लाभ मिलता है... शनि पूजन की विधिवत पूजा सायं सूर्यास्त के बाद करनी चाहिए... हर शनिवार को शनि मंत्र का संकल्प पूर्वक शुद्द मन से पाठ करें और शनिवासरी अमावस्या हो तो उस दिन शाम सूर्यास्त के बाद शनि पूजन मंत्र जाप और स्त्रोत पाठ करना विशेष लाभकारी साबित होता है... शनि की साढे साती और ढेय्या से कष्ट भोग रहे जातकों के लिए रोजाना सुबह के समय भगवान शिव की पूजा, पीपल के पेड के समीप कच्ची लस्सी में काले तिल डालकर वृक्ष के मूल में चढाना तथा शाम के समय तेल का दीपक जलाकर श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करने से शनि अरिष्ठ की शांति होती है...

-शनि का बीज मंत्र...

ऊं प्रां प्रीं प्रौं सं शनये नमः

-शनि का नमस्कार मंत्र

नीलांजन समाभासं रवि पुत्र यमाग्रजम,

छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्......

-शनि का वैदिक मंत्र ऊं शन्नो देवी रभिष्टाय आपो भवंतू पीतये शं योरभिस्त्रवंतु ना शं नमै...


शनिदेव पर तेल चढ़ाने के पीछे हैं कई कथाएं…-----------
शनिदेव के नाम आते ही अक्सर लोग डर जाते हैं... क्योंकि शनिदेव न्याय के देवता हैं और हमारे अच्छे बुरे कर्मों का फल भी तुरंत देते हैं... उनके गुस्से से बचने के लिए उनकी पूजा अर्चना करना ही सबसे बेहतर उपाय है...और पूजा अचर्ना की सबसे अच्छी विधि है शनिदेव पर तेल चढ़ाना... पुराणों में शनिवार के दिन शनि पर तेल चढ़ाने के पीछे कई भिन्न-भिन्न कथाएं हैं... जिन का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है। शनिदेव से जुड़ी सभी कथाएं रामायण काल और विशेष रूप से भगवान हनुमान से जुड़ी हैं। अलग-अलग कथाओं में शनि को तेल चढ़ाने की चर्चा है लेकिन सार सभी का यही है।

एक कथा ये भी है कि शनि नीले रंग का क्रूर माना जाने वाला ग्रह है, जिसका स्वभाव कुछ उद्दण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उसने श्री हनुमानजी को तंग करना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना तब हनुमानजी ने उसको सबक सिखाया। हनुमान की मार से पीड़ित शनि ने उनसे क्षमा याचना की तो करुणावश हनुमानजी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिया जो हनुमान का पूजन करेगा तथा शनिवार को मुझपर तेल चढ़ाएगा उसका मैं कल्याण करुंगा।धार्मिक महत्व के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि शनिवार को तेल लगाने या मालिश करने से सुख प्राप्त होता है। उक्त वाक्य और शनि को तेल चढ़ाने का सीधा संबंध है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को त्वचा, दांत, कान, हड्डियों और घुटनों में स्थान दिया गया है। उस दिन त्वचा रुखी, दांत, कान कमजोर तथा हड्डियों और घुटनों में विकार उत्पन्न होता है। तेल की मालिश से इन सभी अंगों को आराम मिलता है। अत: शनि को तेल अर्पण का मतलब यही है कि अपने इन उपरोक्त अंगों की तेल मालिश द्वारा रक्षा करो।दांतों पर सरसो का तेल और नमक की मालिश। कानों में सरसो तेल की बूंद डालें। त्वचा, हड्डी, घुटनों पर सरसो के तेल की मालिश करनी चाहिए। शनि का इन सभी अंगों में वास माना गया है, इसलिए तेल चढ़ाने से वे हमारे इन अंगों की रक्षा करते हैं और उनमें शक्ति का संचार भी करते हैं

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