पितृपक्ष में कालसर्प दोष की निवृत्ति -
विभिन्न शास्त्रों में कालसर्प योग के बारे में विभिन्न धारणाएॅ प्रस्तुत हैं, जिसमें सभी में एक मत है कि राहु एवं केतु के बीच यदि सभी ग्रह फॅसे हुए हों तो कालसर्प योग निर्मित होता है। यदि राहु आगे तो तथा केतु पीछे और सूर्यादि सातों ग्रह राहु एवं केतु के एक ओर फॅसे हुए हों तो कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग को दुर्भाग्य और अवरोध को उत्पन्न करने वाला माना जाना अनुचित नहीं है। यदि किसी जन्मांग में कालसर्प योग की संरचना हो रही हो तो व्यक्ति को अनेक प्रकार के अवरोध, विसंगतियों और दुर्भाग्य से जीवनपर्यंत संघर्ष करना पड़ता है। किस प्रकार की विसंगति तथा अवरोध उस व्यक्ति के जीवन को आक्रांत करेगी, यह तथ्य ग्रहों की जन्मांग में संस्थिति पर निर्भर करती है। जिसमें संतानहीनता, पारिवारिक विसंगतियाॅ, कलहपूर्ण दांपत्य जीवन, आर्थिक विषमता, आकस्मिक धनहानि, स्वास्थ्य, निरंतर अथवा असाध्य व्याधि से पीड़ा, व्यवसाय तथा व्यापार में अवनति या हानि या प्रगति में अवरोध, सभी प्रकार के कार्यो में विलंब, जिसमें षिक्षा, संतान प्राप्ति, उन्नति, विवाह आदि में विलंब का कारण भी कालसर्प योग के कारण संभव है। कालसर्प की शमन विधान हेतु किसी विद्धान आचार्य द्वारा कालसर्प से होने वाली हानि का क्षेत्र जानकर उस से संबंधित विधान विधिपूर्वक किया जाना जिसमें विषेषकर रूद्राभिषेक, नागबलि-नारायण बलि आदि का विधान एवं राहु से संबंधित दान एवं मंत्रों के उपचार द्वारा दोष को निर्मूल किया जा सकता है। कालसर्प दोष पितरदोष के कारण माना जाता है अतः पितृपक्ष में इसका निवारण करना विषेष फलदायी होता है।
Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in
No comments:
Post a Comment