सूर्य की महादशा में जातक देश-विदेश की यात्रा करता है तथा इन यात्राओं से धन अर्जित करता है | राज्य कर्मचारी हो तो उसकी पदोन्नति होती है एवं उसे धनार्जन का अवसर मिलता है |जातक को अपने उच्चधिकारियों से सम्मान प्राप्ति होती है तथा प्रभावशाली व्यक्तियों से मेल-मिलाप के अवसर मिलते है | गुप्त विद्याओं के प्रति जातक की रुचि बढती है तथा वाहन सुख में बढ़ोतरी होती है| उपरोक्त सभी फल सूर्य के सुभावस्था में होने पर ही प्राप्त होते हैं|
यदि सूर्य उच्च राशि का हो तो अपनी दशा में जातक को धन, पुत्र,भूमि,स्त्री,शौर्य, कीर्ति एव राज्यस्तर पर सम्मानित कराने में सक्षम होता है । यदि सूर्य मूल त्रिक्रोणी अथवा स्वक्षेत्री होकर केन्द्र, त्रिकोण अथवा लाभ स्थान में हो तो जातक जीवन के सभी सुखों का उपभोग कर लेता है तथा उस पर इश्वर की कृपा बनी रहती है।
यदि सूर्य पंचमेश से युक्त हो तो जातक को सन्तान-लाभ मिलता है, धनेश से युक्ति करता हो तो घन और कूटुम्ब सुख में वृद्धि होती है, तृतीयेश से युक्त हो तो भ्रात सुख से कमी आती है । चतुर्थेश से युक्त हो तो कई वाहनों का सुख प्राप्त होता है । दशम स्थान के स्वामी से युक्त हो तो राज्यकृपा बनी रहती है, घन-मान एव प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है । यदि जातक सेना में नौकरी करता हो तो उसे कमान संभालने का अवसर मिलता है । यदि सूर्य शुभ भावों का अधिपति होकर सप्तम, सप्तमेश व भाग्येश से युति करके केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तथा जातक व्यापारी हो तो सुर्य की महादशा में उसे व्यापारिक कार्यों में…विशेषत: हाथी-दांत, पशुओं की खाले, सोना चांदी एवं मसालों आदि में उत्तम लाभ प्राप्त होता है । सामजिक प्रतिष्ठा तथा धार्मिक कार्यों में रूचि बढती है तथा जातक किसी धर्म स्थल के निर्माण में धन का व्यय करता है | उसमे आत्मविश्वास,पुरुषार्थ,तथा ज्ञान की वृद्धि होती है | ऐसा जातक शत्रुओं पर विजय पा लेता है | यदि सूर्य नीच का हो व त्रिक स्थान में हो तथा राहू, केत् अथवा किसी पापी ग्रह से सम्बन्धित हो तो सिरदर्द, बाहूपीड़ा, उदरशूल, दन्तविकार, नेत्ररोग, कीर्तिनाश,का भय जैसे अशुभ फल मिलते है। यदि सूर्य 'छठे स्थान में हो तो देहपीड़ा, गुल्मरोग, क्षय, अतिसार, उदरशूल, ज्वर आदि से पीडित करता है-एवं धन की हानि होती है। यदि सूर्य आठवे स्थान में हो तो पारी का ज्वर, मलेरिया, काससहिंत ज्वर, संग्रहणी आदि रोग देता है तथा पदावनति का कारण बनता है । यदि सूर्य व्यय स्थानगत हो तो जातक को प्रवास अधिक करने पड़ते हैं,घर में कलह रहती है, विषभय बनता है | मानसिक क्लेश से मन त्रस्त रहता है |, शय्या सुख में कमी आती है तथा सन्तान को कष्ट होता है । पाप प्रभाव में आया सूर्य दशा के प्रारम्भ में पितृकष्टकारक होता है एवं धनहानि कराता है । दशा के मध्य में देहकष्ट एवं रोगादि देता है तथा अन्त में किंचित सुख की प्राप्ति होती है।
यदि सूर्य उच्च राशि का हो तो अपनी दशा में जातक को धन, पुत्र,भूमि,स्त्री,शौर्य, कीर्ति एव राज्यस्तर पर सम्मानित कराने में सक्षम होता है । यदि सूर्य मूल त्रिक्रोणी अथवा स्वक्षेत्री होकर केन्द्र, त्रिकोण अथवा लाभ स्थान में हो तो जातक जीवन के सभी सुखों का उपभोग कर लेता है तथा उस पर इश्वर की कृपा बनी रहती है।
यदि सूर्य पंचमेश से युक्त हो तो जातक को सन्तान-लाभ मिलता है, धनेश से युक्ति करता हो तो घन और कूटुम्ब सुख में वृद्धि होती है, तृतीयेश से युक्त हो तो भ्रात सुख से कमी आती है । चतुर्थेश से युक्त हो तो कई वाहनों का सुख प्राप्त होता है । दशम स्थान के स्वामी से युक्त हो तो राज्यकृपा बनी रहती है, घन-मान एव प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है । यदि जातक सेना में नौकरी करता हो तो उसे कमान संभालने का अवसर मिलता है । यदि सूर्य शुभ भावों का अधिपति होकर सप्तम, सप्तमेश व भाग्येश से युति करके केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तथा जातक व्यापारी हो तो सुर्य की महादशा में उसे व्यापारिक कार्यों में…विशेषत: हाथी-दांत, पशुओं की खाले, सोना चांदी एवं मसालों आदि में उत्तम लाभ प्राप्त होता है । सामजिक प्रतिष्ठा तथा धार्मिक कार्यों में रूचि बढती है तथा जातक किसी धर्म स्थल के निर्माण में धन का व्यय करता है | उसमे आत्मविश्वास,पुरुषार्थ,तथा ज्ञान की वृद्धि होती है | ऐसा जातक शत्रुओं पर विजय पा लेता है | यदि सूर्य नीच का हो व त्रिक स्थान में हो तथा राहू, केत् अथवा किसी पापी ग्रह से सम्बन्धित हो तो सिरदर्द, बाहूपीड़ा, उदरशूल, दन्तविकार, नेत्ररोग, कीर्तिनाश,का भय जैसे अशुभ फल मिलते है। यदि सूर्य 'छठे स्थान में हो तो देहपीड़ा, गुल्मरोग, क्षय, अतिसार, उदरशूल, ज्वर आदि से पीडित करता है-एवं धन की हानि होती है। यदि सूर्य आठवे स्थान में हो तो पारी का ज्वर, मलेरिया, काससहिंत ज्वर, संग्रहणी आदि रोग देता है तथा पदावनति का कारण बनता है । यदि सूर्य व्यय स्थानगत हो तो जातक को प्रवास अधिक करने पड़ते हैं,घर में कलह रहती है, विषभय बनता है | मानसिक क्लेश से मन त्रस्त रहता है |, शय्या सुख में कमी आती है तथा सन्तान को कष्ट होता है । पाप प्रभाव में आया सूर्य दशा के प्रारम्भ में पितृकष्टकारक होता है एवं धनहानि कराता है । दशा के मध्य में देहकष्ट एवं रोगादि देता है तथा अन्त में किंचित सुख की प्राप्ति होती है।
Pt.P.S.Tripathi
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