यदि चन्द्रमा पूर्ण वली हो, उच्च राशिगत हो, स्वगृही हो, केन्द्र अथवा त्रिक्रोण में स्थित हो तथा किसी भी अशुभ ग्रह से न तो दृष्ट हो, न ही उससे युति करता हो तो चन्द्रमा की महादशा में जातक की पदोन्नति होती है, व्यवसाय में वृद्धि होती है, विदेश यात्रा के अवसर मिलते है । विंशेषत: जलमार्ग से यात्रा करने पर लाभ रहता है। यदि चन्द्रमा लाभ्स्थान से युति करता हो तो जातक के लिए चन्द्रमा की महादशा अत्यन्त सौभाग्यदायक रहती है । जातक को भोग-सामग्री की प्राप्ति होती है, वह अनेक तीर्थों की यात्रा करता है तथा धार्मिक कार्यों में धन का सदूव्यय कर कीर्ति अर्जित करता है। यह मन्दिर, प्याऊ, बगीचा आदि बनवाने से रुचि लेता है । जातक के घर में भी मंगल कार्य होते हैं । यदि चन्द्रमा कर्मेश से युक्त हो तो जातक को राज्य की ओर से सम्मान मिलता है तथा समाज से भी उसका यश चहु ओर फैलता है । जातक चुनाव लड़कर सूख भोगता है । यदि भाग्येश और कर्मेश दोनो से युक्त होकर चन्द्रमा भाग्य अथवा कर्म स्थान में ही स्थित हो तो जातक मंत्री पद भी प्राप्त कर लेता है। यदि परीक्षा में उतीर्ण होता है तो वजीफा मिलने का योग बनता है, उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने का अक्सर मिलता है। उसे सभी कार्यों में सहज ही सफलता प्राप्त हो जाती है। यदि जातक का कोई केस न्यायालय में विचाराधीन हो तो इस दशा में उसकी जीत सुनिश्चित हो जाती है । प्राय ऐसा अनुभव में आया है कि चन्द्रमा की महादशा का पूर्व भाव्जन्य फल और बाद का समय राशिजन्य फल देता है। जातक को सन्तति लाभ, स्त्री सुख में वृद्धि, धन, वाहन एवं अच्छे निवास की प्राप्ति होती है। विशेषत: सुगन्धित द्रव्यों की प्राप्ति एवं उनके व्यापार से धन की प्राप्ति होती है। कन्या सन्तान, धन एव मान-सम्मान मिलता है, साथ ही उसे भ्रमणशील भी होना पड़ता । यदि चन्द्रमा धन भाव में उच्च राशि में हो तो जातक को निश्चित रूप से पुत्र प्राप्ति होती है। यहा पुत्र प्राप्ति तभी संभव है जब ऐसी आयु हो, अन्यथा पुत्र जैसा कोई अन्य व्यक्ति सहयोगी होता है, पशु-धन में वृद्धि, स्वर्ण, रजत एवं रत्नों के आभूषणों की प्राप्ति, भाग्य में वृद्धि, राज्य में सम्मान, परिवार में वृद्धि, उच्च शिक्षा की प्राप्ति आदि फल प्राप्त होते हैं । यदि चन्द्रमा अशुभ प्रभाव में हो, क्षीणबली हो, अस्त हो, पापी ग्रहों से दृष्ट हो अथवा उनसे युक्त हो, शत्रुक्षेत्री हो तथा अशुभ भावों में स्थित हो तो जातक को चन्द्रमा की दशा का फल घोर दुःखदायक है । जातक के घर-परिवार में कलह का वातावरण बना रहता है, शिरोवेदना एवं शीत ज्वर आदि से पीडा मिलती है तथा अप्रत्याशित व्यय से उसकी आर्थिक स्थिति डावांडोल हो जाती है । वाहन-दुर्घटना से कष्ट होता है । यदि' केतु भी साथ में हो तो दुर्घटना में अंग-भंग का भय बढ़ जाता है । परिजनों से मनोमलिनीय बना रहता है व्यर्थ के अपवाद से मन में खिन्नता बनती है, सन्तान का जन्म हो, तो धनहानि एवं अपमानित होने की आशंका रहती है। जातक की धर्म की अपेक्षा अधर्म में रुचि बढ़ती है, अधिकारी वर्ग की अप्रसन्नता एव मातुल पक्ष से विरोध के कारण उसके चित्त में उद्वेग एव उदासीनता बढ़ती है, यकृत रोग के कारण भोजन में अरुचि होने लगती है । बुद्धि का हास हो जाता है, माता की मृत्यु का भय होता है, व्यापार में हानि होती है तथा वात रोगों से देह पीडित रहती है |यदि अशुभक्षेत्री चन्द्रमा किसी शुभ भावपति से सम्बन्थ करता हो तो उपरोक्त बुरे फलों में किंचित कमी हो जाती है तथा कभी-कभी सुख एव लाभ भी मिल जाता है। यदि चन्द्रमा छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में से किसी एक में क्षीणा होकर पाप प्रभाव में हो तो जातक को अपनी दशा में अत्यधिक बुरे फल देता है । शत्रुभाव में होने से जातक को विभिन्न प्रकार के रोग घेर लेते है |स्त्री से वियोग होता है ,घर में कलह का वातावरण बनता है | यदि चद्रमा अष्टम भाव में हो तो पद में अवनति,व्यवसाय में हानि,जैसे कुफल मिलते है |
Pt.P.S.Tripathi
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