Monday, 9 November 2015

अध्यात्मिक तरंगों से परिपूर्ण शरद पूर्णिमा

कुछ रात्रियों का बहुत महत्व होता है जैसे नवरात्री, शिवरात्रि, पूनम की रात्रि आदि शारदीय नवरात्र के बादे आने वाले शरद पूर्णिमा का अपना अलग ही धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन अमृत की वर्षा होती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं। इनमे चंद्रमा के नीचे बैठ कर जप व् त्राटक करने को महत्व दिया गया है। ग्रह नक्षत्र के हिसाब से शरद पूर्णिमा की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होती है इस दिन वातावरण में एक अध्यात्मिक तरंगे प्रवाहित होती हैं, जिस से सकारात्मक विचार व मन प्रफुलित होता है। ज्योतिष की मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है इसलिए रासोत्सव का यह दिन भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है क्योंकि इस दिन श्री कृष्ण को कार्तिक स्नान करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। तथा इस दिन खीर बनाकर अमृत वर्षा के उपरांत दूसरे दिन प्रातःकाल उसे ग्रहण करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने का विधान है।
कैसे मनाएँ
इस दिन प्रातः काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।
पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें। ऐसा करने से मानसिक शांति तथा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
Pt.P.S.Tripathi
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