किसी व्यक्ति के सिर के सिर्फ बड़े छोटे होने से ही उसके गुणों का अनुमान नहीं लगाना चाहिए क्योंकि किसी वस्तु का ‘‘परिमाण’’ ही सब कुछ है ऐसा समझना गलत है। परिमाण से अधिक महत्व है गुण का। क्योंकि सिर बड़े होने से ही व्यक्ति महान नहीं होता। तीन गुण का महत्व इस प्रकार है: 1. बड़ा परिमाण - लंबाई, चैड़ाई, ऊंचाई अधिक। 2. विशेष वजन - उत्तम प्रकार के मस्तिष्क वो कहलाते हैं जिनका वजन सामान्य व्यक्तियों के मस्तिष्क से विशेष होते हैं। 3. विशिष्टता - महान व्यक्तियों के ज्ञान व प्रवृत्ति कोण साधारण व्यक्तियों की तुलना में अधिक गुणयुक्त होते हैं। प्रथम गुण के अनुसार बुद्धिमान व विद्वान पुरुषों के सिर का नाप 21’’ (इक्कीस इंच) और स्त्री के सिर का नाप 20’’ होना चाहिए। यह नाप कान से ऊपर वाले भाग का लेना चाहिए। 21’’ इंच से कम नाप के सिर वाले लोग चतुर, परिश्रमी, दूसरों की बात को समझने वाले कलाकार एवं संगीतज्ञ तो हो सकते हैं किंतु बुद्धि की प्रखरता शक्ति, नवीन आविष्कार की क्षमता एवं प्रकांड पांडित्य ऐसे व्यक्तियों में नहीं मिलेगा। सिर की गवेषणा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए- सिर के आगे का भाग ललाट कहलाता है। यह भाग चैड़ा व ऊंचा नहीं होना चाहिए। सिर के मुख्य दो भाग होते हैं। 1. कानों के आगे का भाग और 2. कानों के पीछे का भाग। कानों के आगे का भाग विशेषकर बड़ा व उन्नत होना चाहिए। 3. सिर का नाप कानों के ऊपर से ही लेना चाहिए। 21’’ नाप के बाद आधा या पौन इंच अधिक हो तो व्यक्ति व्यापार कुशल एवं परिश्रमी होगा। यदि सिर का नाप 23’’ या अधिक हो तो व्यक्ति वैज्ञानिक होगा। कान के ऊपर सिर को दो भागों में बांटा गया है। यदि दूसरी लंबाई पहली से 1’’ अधिक हो तो ऐसा व्यक्ति विचारशील तो होता है किंतु क्रियाशील नहीं होता। यदि प्रथम की अपेक्षा द्वितीय लंबाई आधा इंच अधिक हो तो ऐसे व्यक्ति में बौद्धिक विकास और आदर्शवादिता, महत्वाकांक्षा आदि विशेष गुण होते हैं, प्रबंधन योग्यता तथा स्वार्थवृत्ति अपेक्षाकृत कम होती है। यदि प्रथम की अपेक्षा द्वितीय भाग 2 इंच अधिक हो तो व्यक्ति में इतनी आदर्शवादिता आ जाती है कि उसे किसी के काम से संतोष नहीं होता। इसी प्रकार सिर का प्रथम भाग अधिक बड़ा हो तो व्यक्ति में गुप्त रखने की प्रवृत्ति, लालच, संग्रहशीलता, दूसरों को नष्ट करने की बुद्धि तथा राजसिक, तामसिक गुण होते हैं। आत्मिक या नैतिक उन्नति की अपेक्षा ऐसे व्यक्ति सावधानी तथा चतुराई को विशेष महत्व देते हैं। यदि भीतरी विकास अच्छा न हो तो उपयुक्त राजसिक व तामसिक गुण चोरी, अनाचार आदि की प्रवृत्ति होती है। मनुष्य के सिर के आकार का भी उतना ही महत्व है जितना परिमाण का। सिर के आकार का बुद्धि तथा मानसिक शक्ति से बहुत अधिक संबंध है। आकार से स्वभाव व चरित्र दोनों का पता चलता है। यहां चित्र में छः सिर दिखाये गये हैं। इन छः सिरों में प्रथम सिर वाला बुद्धिमान उसके बाद क्रम से बुद्धिमत्ता घटती जायेगी। इसके साथ-साथ ललाट की ऊंचाई तथा सिर का ऊपर की ओर जो चढ़ाव है उसकी ओर विशेष ध्यान दें। जिनका सिर मंडलाकार होता है वे संपत्तिवान होते हैं। यदि सिर टेढ़ा, ऊंचा-नीचा हो तो मनुष्य दुखी होता है। हाथी के कुंभ की तरह सिर परस्पर अच्छी तरह जुड़ा हुआ, चारांे ओर क्रमिक ढाल वाले सिर धनी व भोगी व्यक्ति के होते हैं। जिसका सिर चपटा हो उन्हें माता-पिता का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता।
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