ग्रहों के स्वभावानुसार उनके बलाबल को निश्चित करने में ग्रहों द्वारा अधिष्ठित राशि बहुत महत्व रखती है। दूसरे शब्दों में ग्रहों की कार्य प्रणाली, ग्रहों द्वारा अधिष्ठित राशि के तत्वों, राशि कार्य की रीति या ढंग तथा राशि की ध्रुवता पर निर्भर होती है। ग्रह तो केवल विशेष प्रकार के ऊर्जा पुंज हैं। इन ऊर्जा पुंजों को गति, अभिव्यक्ति व क्रियाशीलता तो उनके द्वारा अधिष्ठित राशियों के गुण धर्मों के अनुरूप ही होती है। राशि तत्व उस राशि में ग्रह के चेतन तत्व की अभिव्यक्ति को दर्शाता है। अर्थात् वह गुण या जातक भौतिक व सांसारिक रूप से अपने आपको किस प्रकार व्यक्त करना चाहता है, यह बताता है। 1. अंतज्र्ञान प्रकार यह जातक कोई बात, विषय, विचार या समस्या जो सामने है, उनका उद्गम् कहां से है तथा परिणाम क्या होगा, यह सब अंतज्र्ञान द्व ारा जान लेते हैं। इन्हें गहराई से विश्लेषण कर जानने की आवश्यकता नहीं होती चूंकि अंतप्र्रज्ञा सटीक होती है तथा अन्तप्र्रज्ञा से ही बातों व योजनाओं के पीछे छिपे मन्तव्यों को जान लेते हैं। अंतज्र्ञान प्रकार में अग्नि तत्व की गतिशीलता होती है। 2. व्यावहारिक प्रकार यहां व्यक्ति किसी भी बात, विषय व समस्या पर परंपरागत व व्यावहारिक रूप से सोचता है व अपने विचार व्यक्त करता है। यहां इंद्रिय-स्पर्श द्वारा जानना व संतुष्ट होना, जैसे कि कठोरता, तीखापन, सर्दी-गर्मी आदि महत्व रखता है। यहां स्पर्शजन्य ठोस सत्य बोध प्रमुख होता है। जो बात इंद्रिय-स्पर्श व भौतिक यथार्थ की कसौटी पर खरी न उतरती हो जातक उसे नहीं मानता व उस दिशा में कार्यरत होने से बचता है। यहां जातक के प्रत्येक कार्य के पीछे भौतिक व आर्थिक सुरक्षा ही प्रमुख केंद्र बिंदु होती है। जातक केवल वर्तमान में रहता है व तुरंत कार्य फल का अभिलाषी होता है। जातक भविष्य की योजनाओं के विषय में शंकित रहता है। व्यावहारिक प्रकार में पृथ्वी तत्व की गतिशीलता है। 3. चिन्तन-मनन प्रकार यहां जातक जो बात, विचार, विषय या योजना प्रत्यक्ष है, उसके विषय में सत्य अन्वेषी होता है तथा उसे वर्तमान जीवन में आर्थिक व बौद्धिक लाभ-हानि के संदर्भ में जानने व समझने को प्रयासरत होता है। साथ ही यह जातक प्रत्यक्ष विषयों, योजनाओं व समस्याओं को सैद्धांतिक व तार्किक रूप से विश्लेषण कर जानने का प्रयास करता है। अन्य जातक क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं तथा जातक स्वयं भी क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है, सभी को तर्क की कसौटी पर कसता है। इस जातक द्वारा किसी भी बात व कार्य को आदर्श बौद्धिक विश्लेषण के पश्चात् ही क्रियान्वित किया जाता है। चिंतन-मनन प्रकार में वायु तत्व की गतिशीलता है। 4. भावनात्मक प्रकार यहां जातक जो कुछ भावनात्मक रूप से ग्रहण करता है, उसे अपनी कल्पनानुसार विस्तारित कर अनुभव करता है अर्थात् सुख-दुख दोनों को ही अपनी कल्पनानुसार विस्तारित कर ग्रहण करता है या नकारता है। यहां भावनात्मक मूल्य प्रमुख होते हैं। यह जातक चेतन रूप से बिना जाने ही जीवन के सूक्ष्म उतार चढ़ाव व विश्वासों को अवचेतन मन में अवशोषित कर लेता है। इस जातक की चित्तवृति, भाव व इरादा तथा वह प्रत्यक्ष बातों व समस्याओं को किस प्रकार ले रहा है, इसकी भाव-भंगिमा व शारीरिक भाषा से तुरंत जाना जा सकता है। भावना प्रधान प्रकार में जल तत्व की गतिशीलता है। एक ही तत्व प्रधान राशियों में स्थित ग्रह सांसारिक व भौतिक रूप से केवल उसी तत्व की प्रधानता अनुरूप क्रियाशील होकर फल देते हैं तथा उनमें आपसी समझ व तालमेल होता है, चाहे वे दृष्टि के प्रभाव क्षेत्र में हों या न हों। उदाहरणार्थ सिंह राशि स्थित ग्रह सांसारिक रूप से धनु राशि स्थित ग्रह से सहज ही रहता है, चूंकि तत्व एक ही है। सिंह व धनु राशियों की कार्य विधि विभिन्न हैं। यहां कार्य-विधि या रीति का अर्थ है उपरोक्त राशियों स्थित ग्रह समस्याओं के निष्पादन में किस प्रकार क्रियात्मक रूप से क्रियाशील होते हैं। कार्य-विधि के तीन प्रकार हैंः- 1. चार विधि चर राशि स्थित ग्रह स्वयं पहल करते हैं अर्थात् चर राशि प्रधान जातक समस्याओं से निबटने में व कोई नया कार्य प्रारंभ करने में स्वयं पहल करते हैं। उदाहरण के लिए विद्रोह करने व प्रतिस्पर्धा करने के लिए भी तो आपको अन्य लोगों की आवश्यकता होगी। मेष राशि चुनौती देने या व्रिदोह करने में गतिशील होती है। कर्क राशि भावनाओं का आवेग अनुभव करने में गतिशील होती है। तुला राशि समझौता व शांति स्थापित करने में गतिशील होती है। मकर राशि अपनी योजनाओं के व्यावहारिक क्रियान्वयन में गतिशील होती है। 2. स्थिर विधि चर विधि के विपरीत ये जातक स्वहित को ध्यान में रखकर ही सांसारिक व भौतिक विषयों व समस्याओं पर क्रियान्वयन करते हैं। जब तक समस्या निबट न ले या इच्छित ध्येय प्राप्त न हो जाए, बाहरी वातावरण व नातों रिश्तों से अलग रहते हैं। ये असामाजिक तो नहीं होते परंतु किसी विषय पर निर्णय लेने में समय लेते हैं तथा स्थापित मापदंडों व व्यावहारिकता को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं। 3. द्विस्वभाव विधि ये जातक सांसारिक व भौतिक समस्याओं से निबटने के सभी मार्ग अपनाते हैं तथा अन्य व्यक्तियों द्व ारा दिये सुझावों से समझते हैं कि रास्ता मिल गया व समस्या का निदान हो गया समझो। ये समस्याओं की गंभीरता को कम आंकते हुए इधर-उधर की बातों में लगे रहते हैं। फिर भी इनमें सामथ्र्य होता है देर से ही, समस्या की गहराई जानकर उसका निदान कर ही लेते हैं। वे जातक जिनके अनेक ग्रह एक ही कार्य विधि दर्शाती अनेक राशियों में हों तो समस्याओं से एक ही विधि से निबटते हैं। समस्याओं को देखने व उनसे अभिमुख होने का प्रकार राशि तत्व के अधीन है। उदाहरणार्थ मेष व मकर राशियां लें, ये दोनों राशियां सांसारिक समस्याओं व अन्य विषयों को अलग-अलग ढंग से देखते हैं परंतु निबटती एक ही प्रकार से हैं। मेष व मकर राशियों की कार्य रीतियों में एक अलग अंतर है राशि धु्रवता का अलग-अलग होना। मेष राशि धनात्मक व मकर राशि ऋणात्मक धु्रवता की है। 1. धनात्मक राशि प्रधान जातक या इस राशि में स्थित ग्रह अपनी ओर से पहल करते हुए क्रियाशील होते हैं। ये प्रतीक्षा नहीं कर सकते, कुछ करने को उद्यत रहते हैं व पतवार अपने हाथ में रखते हैं। इस ध्रुवता के अधीन अग्नि व वायु तत्व आते हैं। 2. ऋणात्मक राशि प्रधान जातक या इस राशि में स्थित ग्रह पहले विचार करते हैं कि त्रुटि कहां है। फिर समय लेते हुए तथा आसपास के वातावरण से संतुष्ट होकर व आश्वस्त होकर प्रतिक्रिया करते हैं। ये क्रियाशील होने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करते हैं। इस ध्रुवता के अधीन पृथ्वी व जल तत्व राशियां आती हैं। जब व्यक्ति की मनोदशा किसी एक विषय को लेकर क्रियाशील होती है तो अन्य सभी ग्रह जो विषय से संबंधित ग्रह से दृष्टि संबंध बनाते हैं, वे भी उस विषय में योगदान देते हैं या विरोध में कूद पड़ते हैं अर्थात् मनोदशा संबंधित विषय को अपना अच्छा या बुरा रंग प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ -चंद्रमा पर यूरेनस की कठिन दृष्टि हो तो चंद्रमा की स्थिरता डिग जाएगी अर्थात् स्थिर राशि स्थित चंद्रमा की स्थिरता भंग होकर, जलीय चंद्रमा में ज्वार-भाटा होगा व तदनुरूप मानसिकता उतार-चढ़ाव युक्त होगी। कोई ग्रह किसी अन्य ग्रह की दृष्टि में न होने पर भी अपनी राशि स्थिति संबंधित ऊर्जाओं से प्रभावित रहता है अर्थात् स्थित राशि के तत्व, राशि विधि व राशि ध्रुव अनुसार ग्रह के मूल स्वभाव में बदलाव आ जाता है। यह ग्रह जब किसी अन्य ग्रह पर दृष्टि डालता है तो उस ग्रह की दृष्टि में अधिष्ठित राशि का प्रभाव भी सम्मिलित होता है।
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