Thursday, 4 June 2015

करें ज्योतिषीय उपाय से नेतृत्व क्षमता का विकास-

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किसी व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता यानी व्यक्ति किसी टीम का नेतृत्व कर सकता है या नहीं और व्यक्ति की तर्क क्षमता तथा वाक्यपटुता उसके नेतृत्व के गुण को बढ़ाती है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली पर विचार करने पर उसके ये सारे गुण पता चलते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरू उच्च या मित्र स्थान पर हो तो ऐसे व्यक्ति में नेतृत्व के गुण जन्मजात मौजूद होते हैं वहीं यदि गुरू के साथ बुध का अच्छा संबंध बने तो ऐसे लोग नेतृत्व क्षमता के बल पर ही सफलता के सोपान प्राप्त करते हैं। अतः यदि किसी को नेतृत्व क्षमता का विकास करना और ऐसे क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना हो तो अपनी कुंडली में गुरू की स्थिति तथा गुरू से संबंधित उपाय अपनाकर अपने गुणों को बढ़ाया जा सकता हैं।




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कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली-


कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली-
अगर आपका कोई भी रिश्ता चाहे वैवाहिक हो या दोस्ती का, टूटने की कगार पर आ गया है और आप इस उलझन में हैं कि अपने साथी या दोस्त या हमदर्द से अलग हों या नहीं और यह भी जानते हैं कि ऐसा करना आपके लिए आसान नहीं होगा और ना ही आपके साथी के लिए क्योंकि आपको जिंदगी को फिर से नए सिरे से शुरू करना होगा। जिसका मतलब होता है, हर चीज में बदलाव। इसलिए अपने रिश्ते को तोड़ने से बेहतर है कि उसे कम से कम एक मौका दें। व्यवहारिक रूप से अपने आपसी मतभेदों को प्यार और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें। रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं इन्हें प्यार, सामंजस्य और समझदारी से निभाने की जरुरत होती है। इसके निभाने हेतु जहाॅ आपसी समझदारी की आवश्यकता होती है वहीं कुंडली के ग्रहों की आपस में मेलापक ज्ञात कर जिन ग्रहों के कारण आपसी तनाव की स्थिति निर्मित हो रही हो, उन ग्रहों की शांति कराना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अगर सप्तम भाव या भावेश अपने स्थान से षड़ाषटक या द्वि-द्वादश बनाये तो ऐसे में आपस में मतभेद उभरने के कारण बनते हैं। ऐसी ग्रह स्थिति में विशेषकर इस प्रकार की ग्रह दशाओ के समय आपसी मतभेद उभरकर आते हैं अतः अगर रिश्तों में कटुआ आ जाए तो ग्रह दशाओं का आकलन कराया जाकर शांति कराने से आपसी मतभेद मिटाकर समझ और साथ को बेहतर किया जा सकता है।


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ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म- संतप्त दाम्पत्य जीवन -



किसी षिषु के जन्म के उपरांत सर्वप्रथम विचारणीय तथ्य होता है कि उसका जन्म कहीं मूल के नक्षत्रों में तो नहीं हुआ है। आजकल आधुनिक मत रखने वाले लोग भी सबसे पहले यह ज्ञात करते हैं कि कोई मूल का नक्षत्र तो नहीं है, उसके उपरांत अपने बच्चे का जन्म समय तथा दिनांक तय करते हैं। मूल नक्षत्र का जन्म जहाॅ जीवन में कष्ट तथा बाधा देता है उसी प्रकार से यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में भी बाधा विलंब तथा वैवाहिक सुख में कमी का कारण बनता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म का अषुभ असर स्त्री तथा पुरूषों दोनों पर अषुभ फलकारी होता है। इस नक्षत्र में जन्म होने पर जातक के विवाह होने में कठिनाई होती है या विवाह के बाद पार्थक्य दोष लगता है, इस पर यदि सप्तम भाव या सप्तमेष किसी प्रकार पीडि़त हो तो कष्ट दोगुना हो जाता है। किसी व्यक्ति का ज्येष्ठा नक्षत्र हो तो उसका विवाह कभी भी घर के बड़े संतान से नहीं करना चाहिए और ना ही ज्येष्ठ मास में करना चाहिए। इस नक्षत्र में जन्में जातक को विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करते समय वर तथा वधु दोनों के नक्षत्रों की जानकारी करनी चाहिए तथा समाधान हेतु विवाह से पहले नक्षत्र के मंत्र का कम से कम 28000 जाप संपन्न कराना चाहिए तथा नक्षत्र के मंत्रों का दषांष हवन कराने के उपरांत विवाह संपन्न कराना चाहिए जिससे वैवाहिक जीवन के अनिष्टकारी प्रभाव दूर हो सके।

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जानिये आज के सवाल जवाब 1 04/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज के सवाल जवाब 04/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज का राशिफल 04/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से





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जानिये आज 04/06/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "ज्योतिषीय से जाने कैसे बने मुकद्दर का सिकंदर -"




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जानिये आज का पंचांग 04/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से




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Wednesday, 3 June 2015

पति-पत्नी के बीच अहंकार और प्रतियोगिता-ज्योतिषीय उपाय से पायें प्रेम और साहचर्य -

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पति-पत्नी के बीच अहंकार और प्रतियोगिता-ज्योतिषीय उपाय से पायें प्रेम और साहचर्य -

आज के भौतिक संसार में मनुष्य भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है, अच्छी आय, मकान, अच्छी गाड़ी जैसे भौतिक साधन जुटाने के उद्देष्य से जब विवाह करता है तो साथी भी समकक्ष अथवा योग्य पाना चाहता है। किंतु इन भौतिक साधन को जुटाने के प्रयास में आपसी रिष्तों को निभाने के लिए समय के अभाव में उन रिश्तों के प्रति उदासीन हो जाता है। मानव मन अपने घर में संसार के सारे सुखों को पा लेना चाहता है। किंतु भौतिक संसाधनों का संग्रह करते और आज के युग के पति-पत्नी के बराबर के भागीदार होने के कारण कई बार उनके अंहकार तथा सामथ्र्य उनके रिष्तों के बीच भी दिखाई देने लगते हैं। पति-पत्नी का नाजुक प्यार भरा रिष्ता एक दूसरे के अंहकार के कारण प्रेम विहीन हो जाता है तब यहीं सुख-साधन बेमानी हो जाते हैं। अतः रिष्तों में सभी कुछ होने के साथ अपनापन, एक दूसरे के लिए आदर और प्रेम हो ना कि अंहकार। ऐसा क्या करना चाहिए कि पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम, प्रतियोगिता के स्थान पर सानिध्य मिले। सबसे पहले जाने के पति-पत्नी के बीच इस प्रकार के अंहकार का ज्योतिषय कारण और उसका ज्योतिषीय निदान क्या होगा। जब भी पति-पत्नी की कुंडली में दोनों का तीसरा, सप्तम व द्वादष स्थान एक दूसरे से षडाषटक, या द्वि-द्वादष हो तो ऐसे लोग एक दूसरे से अंहकार का भाव रखते हैं और यदि इनकी कुंडली में इस प्रकार के ग्रह योगो में कहीं भी सूर्य, मंगल अथवा शनि जैसे क्रूर ग्रहों का असर हो तो इनके रिष्तों में दूरी सिर्फ अंहकार के कारण ही आती है। इसी प्रकार यदि लग्न, पंचम, सप्तम या द्वादष स्थान पर शनि अथवा लग्न, चतुर्थ या द्वादष स्थान पर मंगल अथवा लग्न, छठवे या द्वादष स्थान पर सूर्य हो तो ऐसे पति-पत्नी के रिष्तों में भी एक दूसरे से प्रतियोगिता के कारण अंहकार का भाव आता है और इनके रिष्तों में प्रेम तथा आदर के स्थान पर अंहकार तथा प्रतियोगिता होती है। अतः यदि किसी के जीवन में इस प्रकार पति-पत्नी एक दूसरे से अहंकार अथवा प्रतियोगिता के कारण दूर हो रहे हों तो अपनी जन्मपत्रिका का विष्लेषण कराकर आवष्यक ग्रहों की शांति कराना चाहिए साथ ही मंगलागौरी का व्रत तथा गाय की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपस में प्रेम बढ़ेगा तथा जीवन में सुख साधन के साथ प्यार और अपनापन भी होगा।





क्या करें कि डिग्री प्राप्ति के बाद जाॅब मिल जाये -

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सभी लोगों की कामना होती है कि उसकी पढ़ाई पूरी होते ही या उसके बच्चे की डिग्री आते ही उसे एक अच्छी जाॅब मिल जायें किंतु इसमें कोई सफल होता है तो कई बार लोगों को असफलता भी हाथ लगती है। पढ़ाई समाप्त करते ही किसी जातक के पास आय का साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली तथा उस समय के ग्रह गोचर से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से धन की स्थिति, तीसरे स्थान से मन की स्थिति, दसम स्थान से कर्म की स्थिति तथा एकादष स्थान से आय की स्थिति एवं नवम स्थान से भाग्य के संबंध में जानकारी मिलती है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो षिक्षा, धन जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है। अतः जीवन में इन भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। जाॅब प्राप्ति हेतु किसी भी जातक की कुंडली में ग्रह दषाओं का आकलन करें, यदि शनि या बुध की शुक्र की दषाओं में जाॅब मिलने में बाधा आती है अतः अपने ग्रह दषाओं का आकलन करया जाकर ग्रह शांति कराना चाहिए। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए। कैरियर को बेहतर बनाने के लिए शनिवार का व्रत करें।

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बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-


बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-
नामी संस्थानों में पढ़ने का सपना आमतौर पर हर स्टूडेंट का होता है। पैरेंट्स भी इसके लिए खासे परेशान रहते हैं। अच्छी पढ़ाई, बेहतरीन सुविधाएं और सबसे बड़ी बात बेस्ट प्लेसमेंट इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है। पर क्या सभी के अरमान पूरे हो पाते हैं? जाने-माने संस्थान में एडमिशन न मिलने पर भी सिर्फ बाहर पढ़ने के नाम पर किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेना कितना उचित है? बाहर पढ़ने की जिद आपकी जरूरत की बजाय कहीं महज दिखावा तो नहीं? अगर ऐसा है, तो सोचने की बात यह है कि आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।

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बच्चों को घर से दूर भेजने से पूर्व करें उसकी कुंडली का विष्लेषण और पाएं पूर्ण सफलता-



नामी संस्थानों में पढ़ने का सपना आमतौर पर हर स्टूडेंट का होता है। पैरेंट्स भी इसके लिए खासे परेशान रहते हैं। अच्छी पढ़ाई, बेहतरीन सुविधाएं और सबसे बड़ी बात बेस्ट प्लेसमेंट इसकी सबसे बड़ी वजह हो सकती है। पर क्या सभी के अरमान पूरे हो पाते हैं? जाने-माने संस्थान में एडमिशन न मिलने पर भी सिर्फ बाहर पढ़ने के नाम पर किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेना कितना उचित है? बाहर पढ़ने की जिद आपकी जरूरत की बजाय कहीं महज दिखावा तो नहीं? अगर ऐसा है, तो सोचने की बात यह है कि आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।

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विवाह मिलापक की कमियां - करें पूरी कुंडली का विष्लेषण

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सभी अभिभावक की यह हार्दिक कामना होती है कि उसकी संतान का विवाह समय से हो किंतु उससे प्रमुख कामना होती है कि वह विवाह के उपरांत सुख तथा खुष रहे। इस हेतु भारतीय समाज में कुंडली मिलान का प्रमुख स्थान है। अत्यंत आधुनिक माता भी अपनी संतान के विवाह से पूर्व कुंडली मिलान तथा सभी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं। विवाह- निर्णय के लिए वर-वधू मेलापक ज्ञात करने की विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज में ऐसी मान्यता है कि जीवनसाथी का श्रेष्ठ मिलान नहीं होता है तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। अतः इस हेतु हिंदु संस्कार में विवाह हेतु कुंडली मिलान का विशेष महत्व है।
साधारणतया अष्टकूट अर्थात् तारा, गुण, वश्य, वर्ण, नाड़ी, योनी, ग्रह गुण आदि के आधार पर वर-वधु मेलापक सारिणी के आधार पर गुणों की संख्या के साथ दोषों के संकेत होते हैं। सर्वश्रेष्ठ मिलान में 36 गुणों का होना श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक माना जाता है। उससे आधे अर्थात् 18 गुण से अधिक होना ही कुंडली-मिलान का धर्म कांटा मान लिया जाता है। इससे अधिक जितने भी गुण मिले, वह वैवाहिक जीवन में सफलता का प्रतीक मान लिया जाता है। जहाॅ दोषों का संकेत होता है, उनमें भी शुभ नव पंचम, अशुभ नवपंचम अथवा सामान्य नव पंचम या श्रेष्ठ द्विद्र्वादश, प्रीति षडाष्टक, केंद्र के शुभ-अशुभ का आकलन करके सभी ज्योतिविर्द कुंडली का मिलान कर लेते हैं। किसी प्रकार का दोष होने पर उसका परिहार भी मिल जाता है। कहा जाता है की ‘‘ नाड़ी दोषःअस्ति विप्राणां, वर्ण दोषःअस्ति भूभुजाम्। वैश्यानां गणदोषाः स्यात् शूद्राणां योनि दूषणम् ’’ ब्राम्हणों में नाड़ी दोष मानना आवश्यक है, क्षत्रियों में वर्ण दोष की उपेक्षा नहीं की जा सकती, वैश्यों में गण दोष को प्रधान माना जाता है तथा शूद्रों के लिए योनि दोष की उपेक्षा शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता है। आज के युग में जब कि सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से बदल चुकी है तब हम ब्राम्हण किसे माने किसे क्षत्रिय की संज्ञा दे, किसको वैष्य कहा जाए और किसे शूद्र का दर्जा दिया जाए। इसके अलावा कुंडली मिलापक पूरी तरह चंद्रमा पर आधारित है जिसमें शेष सभी ग्रहों को अनुपयोगी माना गया है। जबकि देखा गया है कि चंद्रमा की तुलना में बाकी के ग्रह भी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं अतः कुंडली मेलापक की वर्तमान विद्या से इतर सभी ग्रहों के अनुसार उनके ग्रहों की मैत्री का निधारण कर विवाह हेतु निर्णय लेना चाहिए। गुण मेलापक के स्थान पर ग्रह मेलापक पर ज्यादा जोर देने से सही रिष्तों का चयन कर जीवन सुखमय बनाया जा सकता है।


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शनि जयंति के व्रत तथा पूजन से पायें जीवन में खुषहाली-

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शास्त्रों के अनुसार शनि देव जी का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रात के समय हुआ था। इस बार सोमवती अमावस्या होने के कारण इसका महत्व और भी बढ गया है। सोमवती अमावस्या पितर दोष दुर करने के लिये अति उत्तम है। आज के दिन किसी को शनि-राहु का दोष हो तो सोमवती अमावस्या को शनिदेव की पूजा से बहुत जल्दी यह दोष समाप्त हो जाता है। आज के दिन परिवार के साथ पीपल के पेड के पास जाइये, उस ही पीपल देवता को एक जनेऊ दीजिये साथ ही दुसरा जनेऊ भगवान विष्णु जी के नाम से उसी पीपल के पेड को दीजिये, पीपल के पेड और भगवान विष्णु को नमस्कार कर प्रार्थना कीजिये, अब एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की करें दुध की बनी मिठाई अथवा बताशा को हर परिक्रमा के साथ पीपल को अर्पित करते जाईए। फिर प्रार्थना करे कि जाने अन्जाने में हुये अपराधो के लिए उनसे क्षमा मांगिये। और अपने पितरो के कल्याण के लिए प्रार्थना करें। इस वर्ष शनि जयंती का पर्व दिनांक सोमवार 18.05.15 को अमावस्या तिथि को रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में उदय होने पर मनाया जाएगा। सोमवार के दिन आमवस्या तिथि व रोहिणी नक्षत्र के मेल से बना यह अत्यंत दुर्लभ योग है, राहु से पापाक्रांत शनि के दोषो को दूर कर आपके जीवन में व्यवसायिक समृद्धि दाता होगा।

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आपके जीवन का अनुषासन और रोग जाने ज्योतिषीय गणना से-

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संसार में प्रत्येक कण नियमबद्ध होकर इस सृष्टि को चलायमान रख रहे हैं। यदि सूर्य इत्यादि ग्रह पूर्ण अनुशासन, व्यवस्था एवं नियमितता का पालन करते हैं तो ब्रम्हाण्ड में दैवयोग या आकस्मिक घटना नाम की कोई चीज नहीं है। महर्षियों का मानना है कि ब्रम्हाण्ड में घटने वाली प्रत्येक घटना एक निश्चित नियम द्वारा बंधी है वहीं मनुष्य कर्म के नियमों द्वारा निश्चित तथा सुनियोजित है। इसलिए कुंडली में ग्रहों का विवेचन कर आप निरोगी रह सकते हैं। वैदिक दर्शनों में ‘‘यथा पिण्डे तथा ब्रहाण्डे’’ का सिद्धांत प्रचलित है, जिसके अनुसार सौर जगत में सूर्य और चंद्रमा आदि ग्रहों की विभिन्न गतिविधियों एवं क्रिया कलापों में जोे नियम है वही नियम मानव शरीर पर है। जिस प्रकार परमाणुओं के समूह से ग्रह बनें हैं उसी प्रकार से अनन्त परमाणुओं जिन्हें शरीर विज्ञान की भाषा में कोशिकाएॅ कहते हैं हमारा शरीर निर्मित हुआ है। ज्योतिष में ग्रहों का दूषित प्रभाव दूर करने के अनेक उपाय हैं। जिस प्रकार सूर्य या चंद्रमा अपने मार्ग पर सीधे और समय पर चलते हैं या जिस प्रकार ऋतुयें अपना प्रभाव समय पर दिखाती हैं तो जीवन सुचारू होता है उसी प्रकार का अनुषासन यदि व्यक्ति अपने जीवन में रखें तो रोग या शारीरिक व्याधि किसी शरीर को कभी परेषान नहीं करेगी।



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क्या आपका बच्चा गलत दोस्ती में पड़ गया है??? -



बढ़ते बच्चों की चिंता का एक कारण उनके गलत संगत में पड़कर कैरियर बर्बाद करने के साथ व्यसन या गलत आदतों का विकास होना भी है। दिखावें या शौक से शुरू हुई यह आदत व्यसन या लत की सीमा तक चला जाता है। इसका ज्योतिष कारण व्यक्ति के कुंडली से जाना जाता है। किसी व्यक्ति का तृतीयेष अगर छठवे, आठवें या द्वादष स्थान पर होने से व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है, जिसके कारण उसका अकेलापन उसे दोस्ती की ओर अग्रेषित करता है। कई बार यह दोस्ती गलत संगत में पड़कर गलत आदतों का षिकार बनता है उसके अलावा लक्ष्य हेतु प्रयास में कमी या असफलता से डिप्रेषन आने की संभावना बनती है। अगर यह डिपे्रषन ज्यादा हो जाये तथा उसके अष्टम या द्वादष भाव में सौम्य ग्रह राहु से पापाक्रांत हो तो उस ग्रह दषाओं के अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा में शुरू हुई व्यसन की आदत लत बन जाती है। लगातार व्यसन मनःस्थिति को और कमजोर करता है अतः यह व्यसन समाप्त होने की संभावना कम होती है। अतः व्यसन से बाहर आने के लिए मनोबल बढ़ाने के साथ राहु की शांति तथा मंगल का व्रत मंगल स्तोत्र का पाठ करना जीवन में व्यसन मुक्ति के साथ सफलता का कारक होता है।


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सूर्य का उच्च राषि मेष में प्रवेष देगा जीवन में स्वास्थ्य एवं समृद्धि-


      समस्त ग्रहों की अपनी उच्च एवं निम्न स्थिति होती हैं जब कोई ग्रह अपने उच्च स्थान पर होता है तो वह अपना अच्छा असर प्राणी पर डालता है। ग्रहों के राजा सूर्य 14 अप्रेल को दोपहर 3.25 बजे मीन राशि को छोड़कर उच्च राशि मेष में प्रवेश करेंगे। ये यहां 15 मई तक रहेंगे। प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में प्रवेश होते ही श्रेष्ठ एवं उच्च का होता है। मेष राशि चक्र की प्रथम राशि है। इस समय सूर्य नक्षत्र समूह के प्रथम नक्षत्र अश्विनी में भी प्रवेश करता है। कई स्थानों पर इस दिन नववर्ष वैशाखी पर्व मनाते हैं। सूर्य एक राशि में एक माह रहता है। सूर्य का उच्च राशि में प्रवेश उन्नतिदायक व खुशहाली देने वाला रहेगा। मेष के सूर्य में तेजी रहती है इसलिए वह सबसे ज्यादा तपता है। यह सूर्य अर्यमा के नाम से भी जाना जाता है। अर्यमा सूर्य 10 हजार किरणों के साथ तपते हुए पीले वर्ण के होते हैं। यह सूर्य प्राणियों में स्वास्थ्य एवं जीवन देते हैं। मेष राशि में सूर्य के प्रवेश के बाद फिर से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। जिस भी जातक की कुंडली में सूर्य प्रतिकूलकारी हो अथवा सूर्य राहु से पापाक्रांत हो जाए अथवा सूर्य अपने स्थान से छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए उन जातकों के लिए सूर्य की मेष संक्रांति विषेष रूप से फलदायी होती है अतः इस समय अपने सूर्य को मजबूत बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, उसके लिए सूर्य को अध्र्य देना, मंत्रो का जाप करना तथा सूर्य से संबंधित वस्तुओं जैसे गेंहू, गुड तथा माणिक का दान करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य से संबंधित कष्ट का निवारण होता हैं जिन भी जातक को आर्थराइटिस से संबंधित कष्ट हो उनके लिए मेष का सूर्य विषेष फलदायी होता है इस समय सूर्य स्नान से इस रोग से राहत प्राप्त होता है।




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क्या आपमें सेल्फ मोटिवेषन है:-


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क्यों समझते हैं बच्चें अपने पिता को दुष्मन जाने क्या है इसका ज्योतिषीय कारण और निदान करें-

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वाल्मिकी ने कहा है कि
न तो धर्मचरणं किंचिदस्ति महत्तरम्।
यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिपा॥
(पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढकर कोई धर्माचरण नहीं है।)
किंतु आज एक पिता अपने ही बच्चों का दुष्मन समझा जाता है इसका ज्योतिषीय कारण क्या है??? कालपुरूष की कुंडली में दसम स्थान को पिता का स्थान माना जाता है जिसका स्वामी शनि है, जोकि न्यायकर्ता, पालनकर्ता होता है वहीं संतान को पंचम भाव से देखा जाता है जोकि सूर्य होता है सूर्य अर्थात् राजा मतलब उसे सभी सुख-साधन चाहिए। अतः यदि किसी भी कुंडली में सूर्य-षनि की युति बने या किसी भी प्रकार से पंचम एवं दसम स्थान के ग्रहों के आपमें संबंध विपरीतकारक हो जाएं या राहु मंगल, शनि तथा सूर्य जैसे ग्रहों से दृष्ट हों तो ऐसे पिता अपने बच्चों के जीवन सुधारने के लिए अपना सब कुछ करने के बाद भी बच्चों का भला नहीं कर पाते और बुरे ही बने रहते हैं। इसी प्रकार यदि किसी की कुंडली में पंचमेष या पंचम भाव छठवे, आठवे या बारहरवे स्थान पर हो तो ऐसे जातक अपने संतान को लेकर जीवनभर परेषान होते रहते हैं।
एक पिता अपने सुख-दुख, अपनी खुषी को निछावर कर अपने बच्चों को सुविधा संपन्न बनाने, एक अच्छा कैरियर देने के लिए प्रयास रत रहता है। अपनी संतान को योग्य बनाने के लिए जी-जान से कोषिष करने और अनुषाासन के लिए प्रेरित करने के कारण बच्चे पिता की अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता को क्रूर समझते हैं किंतु उनके प्रयास को नजरअंदाज कर देते हैं। किशोर बच्चों को सँभालना माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। माता के प्यार तथा पिता से छिपाकर बहुत सहयोग करने के कारण बच्चे माता के तो करीब रहते हैं किंतु एक पिता के योगदान को भुला देते हैं। जब बच्चे युवा उम्र की कठिनाईयों से जुझते हैं जिसमें अपने राह से भटक जाते हैं। वे नियमों का पालन करने में असमर्थ हैं। उन्हें मेहनत करने की भी आदत नहीं होती है, सब कुछ आसानी से चाहिए। उनमें यह प्रवृत्ति माता-पिताओं की अतिशय उदारता (बल्कि दरियादिली) से आती है, जहाॅ अपनी सन्तान को अधिकाधिक सुविधाएँ सुलभ कराने की कोषिष करते हैं जिससे बच्चे अपने जीवन में सफल हो सकें वहीं बच्चों के जीवन में अनुशासन का घोर अभाव देखा जा रहा है। बात-बात में उत्तेजित होना, अपषब्द का प्रयोग करना, कई बार मादक पदार्थों का सेवन करना, फ्लर्ट करना, कई बार चोरी की आदत होना, आर्थिक समृध्दि के झूठे प्रदर्शन के लिए चोरियां करना और शिक्षकों से दुर्व्यवहार करना आदि आज के बच्चों में पाये जाने वाले आम दुर्गुण हैं। पिता जब बच्चों की इन आदतों से वाकिफ होकर सुधारने का प्रयास करता है तो बच्चें अपने पिता को ही अपना दुष्मन समझने लगते हैं। उपाय हेतु शनि की शांति, मंत्रजाप तथा बच्चों को प्रारंभ से ही अनुषासन एवं आवष्यक सुविधा संपन्न बनाना तथा समय रहते दंडाधिकारी की तरह नियमों का पालन कराना चाहिए।


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क्या है अष्टकूट की धारणा-क्यू महत्वपूर्ण हैं नाड़ी और भकुट दोष-


भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाएॅ जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किये जाते हैं। नाड़ी को 8 और भकूट को 7 गुण प्रदान किय जाते हैं। मिलान की विधि में यदि नाड़ी और भकूट के गुण मिलते हैं तो गुणों को पूरे अंक और ना मिलने की स्थिति में शून्य अंक दिया जाता है। इस प्रकार से अष्टकूटों के मिलान में प्रदान किये जाने वाले 36 गुणों में 15 गुण केवल इन दो कूटों के मिलान से ही आ जाते हैं। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है। इन गुणों के ना मिलने की स्थिति में माना जाता है कि वैवाहिक जीवन में कठिनाई, संतान सुख में कमी तथा वर या वधु की मृत्यु का कारण बनता है। इन दोनों कूटों के मान का इतना महत्व माना जाता है जिसके लिए किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा की किसी नक्षत्र विषेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विषेष नक्षत्रों में चंद्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। इसी प्रकार यदि वर-वधु की कुंडलियों में चंद्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राषियों में स्थित हो तो भकूट मिलान के 0 अंक और इन स्थानों पर ना होने पर पूरे 7 अंक प्राप्त होती है। किंतु व्यवहारिक स्वरूप में देखा जाए तो कुंडली मिलान की यह विधि अपूर्ण होने के साथ अनुचित भी है। सिर्फ चंद्रमा का महत्व यदि व्यक्ति के जीवन में आधा मान लिया जाए जैसा कि 36 में से 15 गुण प्रदान करना है तो बाकि के आठ ग्रहों का व्यक्ति की कुंडली में महत्व ही नहीं माना जायेगा। हालांकि भारतीय मत के अनुसार विवाह दो मनों का पारस्पिरिक मिलन होता है तथा चंद्रमा व्यक्ति के मन पर सीधे प्रभाव डालता है इस दृष्टि से चंद्रमा की स्थिति का महत्व माना जा सकता है किंतु किसी व्यक्ति की कुंडली में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्षण, सुख, संतान पक्ष, आर्थिक सुदृढ़ता, अच्छे स्वास्थ्य एवं आपस में मित्रवत् व्यवहार तथा सामंजस्य को देखा जाना ज्यादा आवष्यक है ना कि सिर्फ नाड़ी और भकूट दोष के आधार पर कुंडली के मिलान ना स्वीकारना या नाकारना। इस प्रकार कुंडली मिलान की प्रचलित रीति सुखी वैवाहिक जीवन बताने में न तो पूर्ण है और ना ही सक्षम। इस प्रकार से कुंडली मिलान को मिलान की एक विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक संपूर्ण विधि। सिर्फ चंद्रमा के अनुसार मिलान की प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य ग्रहों की स्थिति तथा मिलान के अनुसार ग्रह दोषों के अनुसार मिलान ज्यादा सुखी तथा वैवाहिक रिष्तों की नींव होगी जिससे आज के युग में चल रही अलगाव या तलाक की स्थिति को कम कर आपसी सद्भावना तथा तनाव को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।


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बच्चों में मोटापा कहीं कुंडली की गड़बड़ तो नहीं????


किसी भी बच्चें में यदि लग्न में राहु या गुरू अथवा शुक्र राहु के साथ लग्न में हों या इसी प्रकार के योग दूसरे, तीसरे अथवा एकादष स्थान में बन जाए साथ ही लग्नेष शुक्र छठवे, आठवे या बारहवें स्थान में आ जाए तो ऐसे लोग ओवरइटर के षिकार होते हैं अथवा राहु के कारण कम्प्यूटर, मोबाईल जैसे इलेक्टानिक गैजेट के शौकिन होते हैं, जिससे शारीरिक कार्य नहीं होती और कई बार डिप्रेषन के कारण लोगो से कम मिलना अथवा घर में रहकर खाते रहने के आदी हो जाते हैं जिससे मोटापा बढ़ सकता है इसके आलावा कई बार यह जैनिटिकल बीमारी भी होती है इसे भी कुंडली के अष्टम भाव या अष्टमेष के लग्न में होने अथवा राहु से पापक्रांत होने से देखा जा सकता है। मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यह होती है कि वे आमतौर पर भावुक होते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त होते हैं। बच्चों में मोटापा जीवन भर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, निद्रा रोग और अन्य समस्याएं। कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, यौवन का जल्दी आना, या लड़कियों में मासिक धर्म का जल्दी शुरू होना, आहार विकार, त्वचा में संक्रमण और अस्थमा और श्वसन से सम्बंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं। अधिक वजन वाले बच्चों को अक्सर उनके साथी चिढ़ाते हैं ऐसे कुछ बच्चों के साथ तो खुद उनके परिवार के लोगों के द्वारा भेदभाव किया जाता है, इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आती है और वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से भी ग्रस्त हो सकते हैं। अगर आपके परिवार में किसी बच्चे में ऐसी स्थिति दिखाई दे तो उसकी कुंडली का विष्लेषण कराया जाकर ग्रहों की स्थिति के अनुसार उचित ग्रहषांति, बच्चें के व्यवहार एवं खानपान, रहनसहन में परिवर्तन कर इस समस्या से बचा जा सकता है।

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कैसे रोके बच्चों के भटकाव को-


आज के आधुनिक युग में जहाॅ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएॅ जुटाने का प्रयास हर जातक करता है, वहीं पर उन सुविधाओं के उपयोग से आज की युवा पीढ़ी भटकाव की दिषा में अग्रसर होती जा रही है। पैंरेंटस् जिन वस्तुओं की सुविधाएॅ अपने बच्चों को उपयेाग हेतु मुहैया कराते हैं, वहीं वस्तुएॅ बच्चों को गलत दिषा में ले जाती है। कई बार देखने में आता है कि जो बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्षन करते रहे हैं वे भी ठीक अपनी दिषा, अपने अध्ययन तथा लक्ष्य से भटकर अपना पूरा कैरियर खराब कर देते हैं। कई बार माता-पिता इन सभी बातों से पूर्णतः अंज्ञान रहते हैं और कई बार जानते हुए भी कोई हल निकालने में असमर्थ होते हैं। स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या कुंडली में राहु या शुक्र प्रभावकारी है। यदि कुंडली में राहु या शुक्र दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही इनकी दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। पहली उम्र का असर उस के साथ ही राहु शुक्र का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो शांति के लिए भृगुरा पूजन साथ कुंडली के अनुरूप आवष्यक उपाय आजमाने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।




आत्महत्या - एक पलायनवादी सोच:

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आत्महत्या जानबूझ कर मौत को गले लगाने के कार्य को कहते हैं। आत्महत्या अक्सर निराशा के कारण की जाती है। युवावस्था में कॅरियर, रिश्ते, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, असफल विवाह, पढ़ाई उसके उपरांत बेरोजगारी और भविष्य के प्रति अनिश्चितता जिससे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है। इन सब परिस्थितियों से वह जैसे तैसे निकलता है तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाता है। फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक स्थिति को बनाये रखना, परिवार का टूटना, अकेलापन धीर धीरे आत्महत्या की तरफ प्रेरित करता है। जब कोई आत्महत्या के बारे में ज्यादा बात करने लगे या कई बार आत्महत्या करने की कोशिश करे और ऐसा व्यक्ति बहुत ज्यादा दुखी रहने लगे तथा अनिद्रा का शिकार हो जाए तो ये अवस्थाएं आत्महत्या के खतरों को दर्षाती हैं। कोई व्यक्ति आत्महत्या जैसी गंभीर मानसिक स्थिति तक पहुंच गया हो ऐसी मानसिकता को आम तौर पर आसानी से नहीं जाना जा सकता किंतु उस व्यक्ति की कुंडली का विष्लेषण कर उसकी मानसिकता और पलायन वादी सोच को समझा जा सकता है। जैसे कि किसी व्यक्ति की कुंडली में अगर उसका तृतीयेष छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो या ये ग्रह राहु जैसे ग्रहों से पापाक्रांत हो तो ऐसे ग्रहों की स्थिति बेहद निराषा पैदा कर सकती है साथ ही अगर मारकेष मारक हो जाए और ऐसे ग्रहों की दषाओं में व्यक्ति आत्महत्या हेतु प्रेरित हो सकता है। अतः इन दषाओं में अगर किसी व्यक्ति को डिप्रेषन दिखाई दे तो उनके ग्रह दषाओं की जानकारी प्राप्त कर ग्रह शांति कराना, अकेलापन दूर करने के प्रयास करना तथा मनःस्थिति को समझते हुए उस व्यक्ति की प्रतिकूल परिस्थिति का मूल्यांकन करते हुए उसे आवष्यक सहयोग प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए।


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मंगल के दोषों को दूर करें रक्तदान द्वारा -

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अनेक रोगों से पीडित व्यक्तियों के शरीर को बार-बार रक्त की आवश्यकता रहती है जिसके कारण उनको खून चढाना अनिवार्य हो जाता है। समय पर खून ना प्राप्त होने की स्थिति में उनका जीवन खतरे में रहता है। ऐसे लोगों को जिन्हें समय पर रक्त मिल जाए और उनका जीवन सुरक्षित हो तो उनके तथा उनके अपनो द्वारा जो दुआ दी जाती है वह दानकर्ता के जीवन में सुख का संचार कर सकती है। अतः कलयुग का सबसे पुण्यदायी कार्य रक्तदान करना माना जा सकता है क्योंकि इस समय घटनाएॅ दुर्घटनाएॅ तथा सर्जरी के निरंतर बढ़ते काल में रक्तदान सबसे प्रभावी और प्रासंगिक दान कहा जा सकता है। रक्तदान करना ना सिर्फ दान के लिए अपितु अपने ग्रहों की शांति के लिए भी आवश्यक है। अगर हम रक्तदान और ज्योतिषीय गणना को देखें तो किसी भी जातक की कुंडली में अगर मंगल या केतु लग्र, द्वितीय, तृतीय, एकादश अथवा द्वादश स्थान में हों या इन स्थानों के स्वामी होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर बैठ जाए तो ऐसे लोगों तो चोट-मोच तथा दुर्घटना की आशंका रहती है। अगर ऐसे लोग रक्तदान कर अपना रक्त पहले ही निकाल दें तो आकस्मिक चोट से रक्त बहने की स्थिति नहीं निर्मित होगी अर्थात रक्तदान द्वारा मंगल के दोषों की निवृत्ति होती है। साथ ही अगर किसी की कुंडली में शनि तथा केतु का योग किसी भी स्थान में हो अथवा मंगल और शनि की युति बने तो ऐसे लोगों को अचानक सर्जरी की आवश्यकता आ पड़ती है अतः ऐसे लोगों की कुंडली का विश्लेषण कराया जा कर इनकी दशाओं और अंतरदशाओं के पूर्व रक्तदान करने से सर्जरी से बचा जा सकता है। किसी गर्भवती महिला की कुंडली में यदि मंगल तृतीय, चतुर्थ, पंचम भाव या इन भाव का स्वामी होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए तो ऐसी स्थिति में अगर संतान के जन्म के समय ज्यादा रक्त बहने या रक्तबहाव ना रूकने की स्थिति बन जाती है ऐसी स्थिति में मंगल की शांति करने से भी रक्त बहना रूकता है अतः मंगल और रक्त का संबंध है। रक्त का सीधा संबंध पृथ्वी व जल तत्व से है तथा ग्रहों में इसका रिश्ता मंगल से है जो कि लाल रंग का प्रतिनिधि कहा जाता है। बार-बार दुर्घटनाओं में रक्त बहने जैसी समस्याएं सामने हों, उनके लिए मंगल के सभी दोषों का परिहार रक्तदान से हो जाता है। व्यक्ति के जीवन में जितना रुधिर शरीर से निकलना लिखा होगा, उतना निकलेगा ही। चाहे वह दुर्घटना से निकलकर बह जाए या और किसी कारण से। ऐसे में रक्तदान कर लिए जाने मात्र से इस होनी को टाला जा सकता है और जीवन में दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।
जिन लोगों को मांगलिक दोष है और इस वजह से दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा है, घर में कलह है, शादी नहीं हो पा रही है, उनके लिए मंगल को प्रसन्न करने के लिए रक्तदान से बड़ा कोई पुण्य है ही नहीं। रक्तदान कर लिए जाने से भी मंगल दोष का परिहार हो सकता है। शेष सभी प्रकार के दान उपयोग के बाद नष्ट हो जाते हैं, सिर्फ रक्तदान ही एकमात्र ऐसा दान है जो किसी के जीवन को बचा सकता है अतः यह दान महादान कहा जाता है।

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प्रेम विवाह और वैवाहिक सुख दोनों का कारण ज्योतिषीय गुणाभाग

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किसी भी व्यक्ति में प्रेम विवाह का कारण हेाता है उसका स्वतः निर्णय लेने की क्षमता अथवा आत्मनिर्भरता। इसका आकलन कुंडली के द्वारा आसानी से किया जा सकता है। जिस भी जातक की कुंडली में लग्न, तीसरे, पांचवे, सप्तम, दसम स्थान में यदि शनि स्थित होता है तो ऐसा जातक स्वनिर्णय का आदि होता है अतः ऐसे लोग अपने विवाह का निर्णय भी स्वयं करते हैं इसी प्रकार यदि कोई भी सौम्य ग्रह शनि से प्रभावित हो तो ऐसे में ये स्वभाव का एक हिस्सा होता है। ऐसी स्थिति में कई बार जातक के विवाह में विलंब व बाधा का संकेत माना जाता है। यदि इन भाव में षनि हो तो या सप्तमेष से युक्त शनि हो तो जातक का वैवाहिक जीवन पारिवारिक सदस्यों के कारण बाधित होता है। इस प्रकार सप्तम भाव व सप्तमेष का शनि से युत होने पर वैवाहिक जीवन अपनी पसंद के अनुसार ही होता है परंतु यहीं पसंद बाद में वैवाहिक जीवन में बाधा भी देता है। यदि किसी जातक की कुंडली में वैवाहिक विलंब तथा कष्ट का कारण शनि हो तो बाधा को दूर करने हेतु लडके का अर्क विवाह एवं लडकी का कुंभ विवाह करना चाहिए तथा सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ किसी विद्वान आचार्य के द्वारा कराया जाकर हवन, तर्पण, मार्जन आदि कराने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।


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मैं सभी का करता हूं पर मेरे समय में कोई साथ नहीं देता-ज्योतिषीय कारण-



कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्होंने हमेशा दुसरो का भला किया, परिवार वालों के लिए खून-पसीना एक किया पर जब उन्हें जरूरत पड़ी तो उनके अपनो ने उनका साथ नहीं दिया। कई बार ऐसा देखने में आता है कि सब कुछ करने के बाद कई बार माता-पिता स्वयं उस बेटे को ज्यादा तवजो देते हैं जो किसी का साथ नहीं देता और उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते जो परिवार के सभी सदस्यों का मान रखता हो। कई लोगों के साथ ऐसा होता तो अक्सर है पर क्यों होता है? आखिर लोग इतने कृतघ्न क्यों हो जाते हैं? आखिर इसके पीछे कैसी मानसिकता काम करती है? क्या वे समझते हैं, उनका हक सिर्फ लेना है, और दुसरे का कर्तव्य उन्हें  देने का है? आईये जाने इसका ज्योतिषीय कारण क्या है? तीसरा यानि परिवार का स्थान तथा भाग्य स्थान का स्वामी अगर छठवें, आठवे या बारहवें स्थान पर हो तो ऐसा जातक मोह तथा असुरक्षा के कारण परिवार को साथ रखने तथा सुखी एवं खुष रखने के फेर में उनके लिए अपना सर्वस्व दे देता है किंतु इसी ग्रह दोषों के कारण उसके हिस्से में कुछ नहीं आता। यदि छठवे, आठवें या बारहवे भाव का स्वामी तीसरे या भाग्य स्थान में आ जाए तो ऐसे व्यक्ति के अपने लोग ही उससे शत्रुता या कानूनी विवाद करते रहते हैं। अतः ऐसी स्थिति किसी के भी जीवन हो तो ऐसे जातक को अपनी कुंडली का विष्लेषण कराकर अपने ग्रह दषाओं को अनुकूल करने का प्रयास करना चाहिए साथ ही रिष्तों में मधुरता तथा महत्व दूसरों की तरफ से भी उतना ही प्राप्त करना जितना आप दूसरों को प्रदान कर रहे हैं, उसके लिए उपयुक्त ग्रहों की शांति, मंत्रजाप तथा दान करना चाहिए। जिसमें विषेषकर तीसरे स्थान अर्थात बुध तथा भाग्य स्थान यानि गुरू के मंत्रों का जाप, पीली वस्तुओं का दान तथा जगद्गुरू श्रीकृष्ण की पूजा करने से दुख के स्थान पर सुख की प्राप्ति होगी।


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कुंडली से जाने समय का सदुपयोग कैसे करें और जीवन में पायी इच्छित सफलता-

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समय की शक्ति अद्भुत है। खोया हुआ मान, स्वास्थ्य, भूली हुई विद्या, छिना हुआ धन फिर आ सकता है, परंतु बीता हुआ समय कदापि नहीं लौट सकता। धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा। इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए। जो वर्तमान काल का लाभ उठाता है, वह अपने भविष्य का निर्माण करता है। ईश्वर ने समय रूपी धन में कोई पक्षपात नहीं किया है, यह धन सबके लिए समान है। प्रकृति हमें समय पालन का उपदेश देती है। सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी की गति, ऋतुओं का परिवर्तन, ये सभी हमें समय पालन और नियमबद्धता सिखाते हैं। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं। साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए।


जानिये आज के सवाल जवाब 1 03/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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मांगलिक दोष एवं उसका आध्यात्मिक निदान-

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विवाह के अवसर पर वर एवं वधू की कुण्डली मिलान करते समय अष्टकूट के साथ-साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है। इसे शास्त्रों में कुज दोष या भौम दोष का नाम भी दिया गया है। इस दोष को गहराई से समझना आवश्यक है, ताकि इसका भय दूर हो सके। भारतीय ज्योतिष के अनुसार यदि मंगल प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो मंगल दोष माना जाता है। विद्वानों ने राशि से भी उक्त स्थानों पर मंगल के होने पर यह दोष बताया है। किसी भी पत्रिका में यह योग हो तो उस कुण्डली को मंगली कहा जाता है। वर-वधू में से किसी एक की कुण्डली के इन भावों में मंगल हो तथा दूसरे की पत्रिका में नहीं तो ऐसी परिस्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है तथा ज्योतिषी उन दोनों का विवाह न करने की सलाह दे देते हैं। यदि वर-वधू दोनों की कुण्डली में उक्त दोष हो तो दोष समाप्त समझा जाता है। यह दोष तब और प्रबल हो जाता है जब जन्म कुण्डली में इन पांचों भावों में मंगल के साथ अन्य क्रूर ग्रह (शनि, राहू, केतु) बैठे हों। बृहत् पाराशर के अनुसार विकलरू पाप संयुतरू अर्थात पापी ग्रह से युक्त ग्रह विकल अवस्था का होगा तथा दोष कारक होगा। अतः शनि या राहु की युति से मांगलिक दोष में अभिवृद्धि हो जाती है।
मांगलिक दोष की निवृत्ति हेतु मंगल तथा अन्य ग्रहों की शांति एवं सफल वैवाहिक जीवन हेतु लडको का अर्क विवाह एवं कन्याओं हेतु कुंभ विवाह कराना चाहिए। साथ ही पावर्ती-मंगल स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। वैवाहिक जीवन के कष्ट को दूर करने के लिए मंगल का व्रत करने से मंगल दोष की निवृत्ति होती है।


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जानिये आज के सवाल जवाब 03/06/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से




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