Wednesday, 3 June 2015

प्रेम विवाह और वैवाहिक सुख दोनों का कारण ज्योतिषीय गुणाभाग

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किसी भी व्यक्ति में प्रेम विवाह का कारण हेाता है उसका स्वतः निर्णय लेने की क्षमता अथवा आत्मनिर्भरता। इसका आकलन कुंडली के द्वारा आसानी से किया जा सकता है। जिस भी जातक की कुंडली में लग्न, तीसरे, पांचवे, सप्तम, दसम स्थान में यदि शनि स्थित होता है तो ऐसा जातक स्वनिर्णय का आदि होता है अतः ऐसे लोग अपने विवाह का निर्णय भी स्वयं करते हैं इसी प्रकार यदि कोई भी सौम्य ग्रह शनि से प्रभावित हो तो ऐसे में ये स्वभाव का एक हिस्सा होता है। ऐसी स्थिति में कई बार जातक के विवाह में विलंब व बाधा का संकेत माना जाता है। यदि इन भाव में षनि हो तो या सप्तमेष से युक्त शनि हो तो जातक का वैवाहिक जीवन पारिवारिक सदस्यों के कारण बाधित होता है। इस प्रकार सप्तम भाव व सप्तमेष का शनि से युत होने पर वैवाहिक जीवन अपनी पसंद के अनुसार ही होता है परंतु यहीं पसंद बाद में वैवाहिक जीवन में बाधा भी देता है। यदि किसी जातक की कुंडली में वैवाहिक विलंब तथा कष्ट का कारण शनि हो तो बाधा को दूर करने हेतु लडके का अर्क विवाह एवं लडकी का कुंभ विवाह करना चाहिए तथा सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ किसी विद्वान आचार्य के द्वारा कराया जाकर हवन, तर्पण, मार्जन आदि कराने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।


Pt.P.S Tripathi
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