पति-पत्नी के बीच अहंकार और प्रतियोगिता-ज्योतिषीय उपाय से पायें प्रेम और साहचर्य -
आज के भौतिक संसार में मनुष्य भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है, अच्छी आय, मकान, अच्छी गाड़ी जैसे भौतिक साधन जुटाने के उद्देष्य से जब विवाह करता है तो साथी भी समकक्ष अथवा योग्य पाना चाहता है। किंतु इन भौतिक साधन को जुटाने के प्रयास में आपसी रिष्तों को निभाने के लिए समय के अभाव में उन रिश्तों के प्रति उदासीन हो जाता है। मानव मन अपने घर में संसार के सारे सुखों को पा लेना चाहता है। किंतु भौतिक संसाधनों का संग्रह करते और आज के युग के पति-पत्नी के बराबर के भागीदार होने के कारण कई बार उनके अंहकार तथा सामथ्र्य उनके रिष्तों के बीच भी दिखाई देने लगते हैं। पति-पत्नी का नाजुक प्यार भरा रिष्ता एक दूसरे के अंहकार के कारण प्रेम विहीन हो जाता है तब यहीं सुख-साधन बेमानी हो जाते हैं। अतः रिष्तों में सभी कुछ होने के साथ अपनापन, एक दूसरे के लिए आदर और प्रेम हो ना कि अंहकार। ऐसा क्या करना चाहिए कि पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम, प्रतियोगिता के स्थान पर सानिध्य मिले। सबसे पहले जाने के पति-पत्नी के बीच इस प्रकार के अंहकार का ज्योतिषय कारण और उसका ज्योतिषीय निदान क्या होगा। जब भी पति-पत्नी की कुंडली में दोनों का तीसरा, सप्तम व द्वादष स्थान एक दूसरे से षडाषटक, या द्वि-द्वादष हो तो ऐसे लोग एक दूसरे से अंहकार का भाव रखते हैं और यदि इनकी कुंडली में इस प्रकार के ग्रह योगो में कहीं भी सूर्य, मंगल अथवा शनि जैसे क्रूर ग्रहों का असर हो तो इनके रिष्तों में दूरी सिर्फ अंहकार के कारण ही आती है। इसी प्रकार यदि लग्न, पंचम, सप्तम या द्वादष स्थान पर शनि अथवा लग्न, चतुर्थ या द्वादष स्थान पर मंगल अथवा लग्न, छठवे या द्वादष स्थान पर सूर्य हो तो ऐसे पति-पत्नी के रिष्तों में भी एक दूसरे से प्रतियोगिता के कारण अंहकार का भाव आता है और इनके रिष्तों में प्रेम तथा आदर के स्थान पर अंहकार तथा प्रतियोगिता होती है। अतः यदि किसी के जीवन में इस प्रकार पति-पत्नी एक दूसरे से अहंकार अथवा प्रतियोगिता के कारण दूर हो रहे हों तो अपनी जन्मपत्रिका का विष्लेषण कराकर आवष्यक ग्रहों की शांति कराना चाहिए साथ ही मंगलागौरी का व्रत तथा गाय की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपस में प्रेम बढ़ेगा तथा जीवन में सुख साधन के साथ प्यार और अपनापन भी होगा।
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