यदि कुंडली में बृहस्पति करक हो,उच्च राशी,मूल त्रिकोण राशी,स्वर राशी या मित्र राशी में स्थित हो,शुभ ग्रह से युक्त अथवा दुष्ट हो तथा केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो अपनी दशा में जातक को बहुत शुभ फल प्रदान करता है | यदि बृहस्पति नीच राशी का होकर उच्च नवांश में हो तो जातक राज्यकृपा प्राप्त करता है,पदोन्नति होती है, गुरुकृपा से विधोपार्जन होता है,देवाराधना में वित्त रमता है तथा जातक धन-कीर्ति पा लेता है बृहस्पति की शुभ दशा में जातक चुनाव में विजयी होकर ग्रामसभा का प्रधान, पालिकाप्रधान अथवा विधानसभा का सदस्य भी बन जाता है। केन्दीय मंत्रिमंडल की कृपा पाकर धन-धान्य में वृद्धि कर लेता है तथा यशोभागी होता है । दर्शन के प्रति उसकी रूचि बढती है,वेद-वेदांग का अध्ययन करने का अवसार मिलता है तथा जातक अनेक अच्छे ग्रंथो की रचना करता है, जिसके कारण देश-विदेश में उसकी ख्याति फैलती है | अनेक वरिष्ट अधिकारियों से उसके सम्पर्क बढ़ते हैं, विदेश यात्रा के योग बनते है तथा राज्याधिकार प्राप्त करने के अवसर भी मिलते हैं । जातक का बौद्धिक विकास होकर उसमें न्यायपरायाणता जाती है तथा जातक ऐसे कार्य करता है जिससे देश और समाज का कल्याण हो। वह घार्मिक कार्यों में विशेष रुचि लेता है तथा प्याऊ व घार्मिक स्थानों के निर्माण में धन का सद्व्यय करता है। कथा-कीर्तन में बढ़-चढ़कर भाग लेता है, ब्राह्मण, गुरु और साधुओं के उदर-साकार को संदेय तत्पर रहता है। बृहस्पति की शुभ दशा में जातक के घर में अनेक मंगल कार्य होते है । देह में निरोगता व् मन में प्रसन्नता बनी रहती है । पुत्रोत्सव से मन में हर्ष होता है, घर में सुख-शान्ति बनी रहती है और पत्नी का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है । शत्रु परास्त होते है वाद-विवाद में विजय मिलती है । परीक्षार्थी इन दिनों में सफल रहते है । प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता मिलती है क्या उच्च पद प्राप्त होता है । जातक की मन्त्रणाशक्ति का विकास होता है तथा उसकी सभी अभिलाषाएं पूर्ण हो जाती है। जातक इस दशाकाल में राज्य की ओर से उच्च सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त कर लेता है | यदि बृहस्पति उच्च राशि का हो, लेकिन नवांश में नीच का हो गया हो तो जातक घोर कष्ट भोगता है। उसका धन चोरों द्वारा हरण कर लिया जाता है, स्त्री से वियोग होता है, संतान के कारण उसे अपयश मिलता है । यदि बृहस्पति अकारक हो, नीच राशि, शत्रु राशि, अस्त, वक्री एव पाप मध्यत्व में होकर बुरे भावों में स्थित हो तथा पापी ग्रह से युक्त अथवा दुष्ट हो तो अनेकानेक अशुभ फलों का अनुभव कराता है । यदि बृहस्पति राहू से संबंध करता हो तो जातक को सर्पदंश का भय बनता है, विषपान से देह-पीड़ा भोगनी पाती है, शत्रु के द्वारा शस्त्रघात का भय भी बनता है ।यदि बृहस्पति मारक ग्रह के साथ हो तो मृत्युसम कष्ट अथवा मृत्यु भी हो सकती है, स्त्री पुत्रों द्वारा अपमानित होना पड़ता है तथा अनेक कष्ट झेलना पड़ते हैं । जातक में अधीरता आ जाती है, स्थिर मति से कोई भी कार्य न करने के कारण प्रत्येक कार्य में उसे असफलता ही मिलती है। वह ब्राह्मण, गुरु से द्वेष रखता है । अपने उच्चधिकारियों के विरोध का उसे सामना करना पड़ता है तथा जातक की पदोन्नति में बार-बार विघ्न उपस्थित होते हैं। परीक्षार्थियों को परीक्षा में कठिनता से ही सफलता मिलती है। परिजनों से मनोमालिन्य बढ़ता है, तीर्थ पर जाने का अवसर प्रथम तो मिलता ही नहीं, मिले भी तो कोई विघ्न उपस्थित होकर जाना स्थगित करा देता है । स्वयं को भी रोगों के कारण प्रताडित होना पड़ता है, सन्तान के स्वास्थ्य की चिन्ता बनती है । यदि अशुभ बृहस्पति शत्रु स्थान में हो तो जातक गुल्परोग, रक्तातिसार एवं कष्ट रोग से पीडित होता है। यदि बृहस्पति अष्टम भाव में हो तो अपनी दशा में जातक को वाहन, आवास व सन्तान की हानि कराता है । जातक को विदेशवास तक करना पड़ता है । व्यय स्थानगत होकर शय्या सुख में कमी, स्त्री की मृत्यु अथवा वियोग, राज्यदण्ड का भय, बान्धवो को कष्ट तथा विदेश यात्रा में स्वय को कष्ट जैसे फल प्रदान करता है ।
Pt.P.S.Tripathi
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