Friday, 13 November 2015

शनि की महादशा का फल

शुक्र नैसर्गिक शुभ ग्रह होकर भी काम और सुख का कारक माना जाता है। यदि जातक की कुण्डली में शुक्र कारक होकर उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि या मित्र राशि का होकर केन्द्र अथवा त्रिक्रोण में स्थित हो तो अपनी दशा में सदैव,कामसुख, भोग एवं ऐश्वर्य प्रदान करता है। यदि जातक के बाल्यकाल में शुक्र महादशा प्रारम्भ हो तो जातक सात्विक एव निर्मल बुद्धि वाला होता है, पढने-लिखने में उसका चित्त रमता और वह बिना किसी विशेष प्रयत्न के ही परीक्षाएं पास कर लेता है। इस दशाकाल में जातक की रुचि श्रृंगार की ओर स्वाभाविक रूप से रहती है, वह अपने स्वय के रख-रखाव को अधिक महत्व देता है तथा सुगन्धित वस्तुओं एव वस्त्राभूषण पर धन व्यय करता है। ऐसे समय में जातक के चित्त में चंचलता वनी रहती है । चलचित्र, नाटक, नाच, गाने आदि देखने-सुनने में उसे विशेष आनन्द का अनुभव होता है । प्रेम कहानी, उपन्यास एव प्रेमरस प्रधान कविताए पढने में उसका मन लगता है । यदि जातक लेखक हो तो ऐसी ही रचनाएं रचता भी है । अभिनय क्षेत्र में रुचि लेकर उच्च स्थान प्राप्त करता है । युवकों के लिए यह दशा मिले-जुले फल प्रदान करती है । यदि जातक चन्द्र को छोडकर अन्य ग्रहों से प्रभावित हो तो उच्च शिक्षा प्राप्त कर वकील या जज बन जाता है अथवा स्वतन्त्र कारोबार करता है । लेखक अथवा सम्पादक भी बन जाता है । समीक्षक हो तो समालोचना में व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग नहीं करता, अपितु मधुर कटाक्ष ही करता है ।शिल्प कलाओं, ललित कलाओं और काव्य-सृजन से धन और मान अर्जित कर लेता है । नए-नए लोगों से उसकी मित्रता होती है तथा उनके द्वारा उसे आनन्ददायक पदार्थों के उपहार मिलते हैं । सुघड़ और सुन्दर स्त्रियों से रमण करने के अवसर प्राप्त होते है । उत्कृष्ट वाहन व् सुन्दर आवास उपलब्ध रहता है तथा आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनती है ।देश-विदेश में अपना व्यवसाय फैलाकर जातक अटूट लक्ष्मी का स्वामी बनता है । इस दशा में जातक सुन्दर भवनों का निर्माण करता है उधान, बाग़-बगीचे बनवाता है । उसके घर में मांगलिक कार्य होते है,कन्या रत्न की उत्पति पर उत्सव मनाता है और विवाहोत्सव पर अत्यधिक व्यय करता है । यदि जातक राजनीति में हो तो उसे मंत्री पद मिलता है, विश्व की प्रत्येक विलासिता की वस्तु उसे सहज ही सुलभ हो जाती है ।इस दशाकाल में कामवासना प्रबल हो जाती है और जातक घार्मिक कृत्यों को अधिक महत्व नहीं देता । उसकी आय के कई स्रोत होते है तो वह व्यय भी खुले हाथो करता है | यदि कुण्डली में शुक्र अकारक होकर नीच राशि या शत्रु राशि का हो अथवा पाप मध्यत्व में हो या पापी ग्रहों से दुष्ट या युक्त हो तो उपरोक्त सभी फलों का विरोधाभास होता है ।जातक दूसरों का उपकार करके भी घृणा का पात्र बनता है । उसकी कामवासना इतनी बढ़ जाती है कि वह अपनी वासनापूर्ति के लिए नैतिक-अनैतिक सभी तरीके अपनाने पर बाध्य हो जाता है । अपने वर्ग और समाज में बदनाम होता है । भ्रष्ट स्त्रियों के सम्पर्क में जाकर अपना धन गंवाता है । साथ ही स्वास्थ्य को भी क्षीणा कर लेता है तथा मधुमेह,स्वप्नदोष एव अन्य इन्दियजनित। यदि शुक उच्च राशि का होकर सप्तमस्थ हो, लेकिन नवांश में नीच का हो गया हो तो अपनी दशा में घनहानि, भाग्यहीनता,बन्धु-बांधवों से बैर,स्त्री से वियोग तथा कलह आदि प्रदान करता है । षष्ठ भाव से पापी शुक्र जातक को अनेक रोगों से पीडित करता है । जातक को प्रमेह, मूत्रकृच्छ, आतशक, सूजाक,पामा जैसे रोग घेर लेते हैं और इनकी चिकित्सा पर उसे भारी व्यय करना पड़ता है । स्त्री का स्वास्थ्य क्षीण हो जाता है अथवा पत्नी से वियोग हो जाता है । आयु स्थान में होकर भी अशुभ शुक्र के फल अशुभ ही होते हैं । व्यय स्थानगदा शुक्र की दशा में जातक प्रवास अधिक करता है उसकी स्थानच्युती होती है, पत्नी से वियोग, शय्या सूख में कमी एवं धनहानि जैसे अशुभ फल अनुभव में आते हैं।
Pt.P.S.Tripathi
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