Saturday, 14 November 2015

चन्द्रमा की महादशा में अंतर्दशा फल

चन्द्रमा-यदि चन्द्रमा कारक होकर उच्च राशि का, स्वराशि का, शुभ ग्रहों से युक्त और दुष्ट हो तो अपनी दशा-अंतर्दशा में जातक को पशुधन से, विशेषत: दूध देने वाले पशुओं से लाभान्वित कराता है। इस दशा में जातक यशोभागी होकर अपनी कीर्ति को अक्षुष्ण बना लेता है, कन्या-रत्न की प्राप्ति या कन्या के विवाह जैसा उत्सव और मंगल कार्य संपन्न होता है। मायन-वादन आदि ललित कलाओं में जातक की रुचि बाती है, स्वास्थ्य सुख, घन-घान्य की वृद्धि होती है। आप्तजनों द्वारा कल्याण होता है तथा राज्यस्तरीय सम्मान मिलता है । यदि चन्द्रमा नीच राशि का, पाप ग्रहों से युक्त अथवा प्राण योग में हो तथा त्रिक स्थानस्थ हो तो अपनी दशज्जा-अन्तर्दशा में जातक को देह में आलस्य, माता को कष्ट, चित्त में भ्रम और भय, परस्वीरमण से अपयश तथा प्रत्येक कार्य में विफलता जैसे कुफल देता है । जल में डूबने की आशंका रहती है, शीत ज्वर, नजला जुकाम अथवा थातुव्रिकार जैसी पीड़ाएं भोगनी पड़ती है।
मंगल-यदि मंगल कारक होकर उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि अथवा शुभ प्रभाव से युक्त हो तो चन्द्रमा की महादशा में अपनी दशाभुक्ति में जातक को परमोत्साही बना देता है 1 यदि जातक सेना या पुलिस में हो तो उसे उच्च पद मिलता है, इष्ट-मित्रों से लाभ मिलता है, कवि-व्यवसाय की उन्नति होती है । जातक क्रूर कर्मों से विशेष ख्याति अर्जित करता है । शत्रुओं को समूल नष्ट करने में सक्षम ही जाता है । यदि अशुभ क्षेत्री अथवा नीच राशि का मंगल हो तो अपने दशाकाल में अवस्था-भेद से अनेक अशुभ फल प्रदान करता है। धनधान्य व पैतृक सप्पत्ति का नाश हो जाता है, बलात्कार के केस से कारावास होता है, क्रोधावेग बढ़ जाता है । माता पिता व इष्ट मित्रों से वैचारिक वैमनस्य बाता है, दुर्घटना के योग बनते है, रक्तविकार, रक्तचाप, रक्तार्श, रक्तपित्त, बिजली से झटका लगने से देह कृशता, नकसीर फूटना जैसी व्याधियों की चिकिंत्सा पर धन का व्यय होता है।
राहु-चन्द्रमा की महादशा में राहु की अन्तर्दशा शुभ फलदायक नहीं रहती । हा, दशा के प्रारम्भ में कुछ शुभ फल अवश्य प्राप्त होते हैं । यदि राहु किसी कारक ग्रह से युक्त हो तो कार्य-सिद्धि होती है, जातक तीर्थाटन करता है क्या किसी उच्चवर्गीय व्यक्ति से उसे लाभ भी मिलता है। इस दशाकाल में जातक पश्चिम दिशा में यात्रा करने पर विशेष लाभान्वित होता है। अशुभ राहु की अंतर्दशा में जातक की बुद्धि मलिन हो जाती है, विद्यार्थी हो तो परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है और उत्तीर्ण भी हो तो तृतीय श्रेणी ही प्राप्त होती है, कार्य-व्यवसाय की हानि होती है, शत्रु पीडित करते हैं, परिजनों को कष्ट मिलता है । जातक अनेक आधि-व्याधियों और जीर्ण ज्वर, काला ज्वर, प्लेग, मन्दाग्नि व जिगर सम्बन्धी रोगों से घिर जाता है। इस दशाकाल में जातक को जो कष्ट न हों, वहीँ कम हैं ।
बृहस्पति- यदि बृहस्पति उच्च राशि का, स्वराशि का व शुभ प्रभाव से युक्त होकर चन्द्रमा से केन्द्र, वित्ति, द्वितीय व जाय स्थानगत हो तो चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा के समय जातक के ज्ञान में वृद्धि क्या घर्माघर्म के विवेचन में उसकी बुद्धि सक्षम हो जाती है । उसके मन में उपकार करने की भावना, दानशीलता व धर्मशीलता आदि का आयुदय होता है । स्वाध्याय और यज्ञादि कर्म करने की प्रवृति और मग्रेगलिक कयों में व्यय होता है । अविवाहित जातक का विवाहोत्सव या विवाहित को पुत्रोत्सव का हर्ष, उत्तम स्वास्थ्य, नौकरी में पद-वृद्धि, किए गए प्रयत्नों से सफलता और किसी मनोमिलाषित वस्तु की प्राप्ति होती है । यदि बृहस्पति नीच राशि का, शत्रु क्षेत्री, पाप प्रभावी और त्रिकस्थ हो तो इस दशाकाल में कार्य-व्यवसाय में हानि, मानसिक व्यथा, गृह-कलह, पुत्र-कलह, कष्ट, विदेश गमन, पदच्युति और धनहानिं होती है । जातक की जठराग्नि मन्द पड़ जाने से उसे वायु संबन्धी और यकृत रोग भी हो जाते है।
शनि-जब चन्द्रमा की महादशा में शनि की अन्तर्दशा व्यतीत हो रही हो.| तथा चन्द्रमा से केन्द्र, त्रिक्रोण, धन या आय स्थान में स्थित शनि उच्च राशि का, स्वराशि का या पाप प्रभाव से रहित व बली हो तो जातक को गुप्त धन की प्राप्ति होती है तथा उसे कृषि कार्यों, भूमि के कय-विक्रय, लोहा, तेल, कोयला व पत्थर के व्यवसाय से अच्छा लाभ मिलता है । निम्न वर्ग के लोरा प्राय लाभकारी रहते हैं । यदि शनि निचली, नीव राशि का व पाप प्रभावी होकर छठे, आठवें अथवा बारहवे भाव में हो तो जातक अस्थिर मति हो जाता है। तर्क, प्रतियोगिता आदि में असफल, इष्टजनों से अनबन, कामवासना की प्रबलता, नीच स्त्री से प्रेमालाप के कारण उसके अपयश, वातव्याधि, मन्दाग्नि, गैस्ट्रीक ट्रबल, उदरशूल व गठिया आदि रोगों से पीडित होने की आशंका बनती है ।
बुध-यदि चन्द्रमा की महादशा में बुध की अंतर्दशा चल रही हो और कुण्डली में बुध पूर्ण बली, शुभ ग्रहों से युक्त और दृष्ट होकर केन्द्र, त्रिकोण आदि शुभ स्थानगत हो तो जातक निर्मल और सात्विक बुद्धि का, पठन-पाठन में रुचि रखने वाला, कार्य-व्यवसाय में धन-मान अर्जित करने वाला, आप्तज़नों से सत्कार पाने वाला, विधत समाज में पूजित, ग्रन्थ लेखक, कन्या सन्तति का सुख पाने वाला व अनेक वाहनो का स्वामी होता है, लेकिन इच्छानुकूल फल प्राप्ति उसे फिर भी नहीं होती, अर्थात इतने पर भी उसके मन में तृष्णा बनी रहती है। यदि बुध नीच राशि का, नीच नवांश का व अशुभ ग्रहों से पुनीत या दुष्ट हो तथा अशुभ भाव में स्थित हो तो अपने दशाकाल के प्रारम्भ में शत्रु से पीडा, पुत्र से वैमनस्य, स्त्री सुख में कमी, पशुधन का नाश, कवि-व्यवसाय में हानि देता है तथा अन्त में त्वचा के रोगों से देह कृशता, ज्वर तथा किसी लांछन में कारावास आदि जैसे फ़ल प्रदान करता है ।
केतु-चन्द्रमा की महादशा से केतु की अन्तर्दशा भी विशेष शुभ नहीं रहती, लेकिन यदि केतु शुभ क्षेत्री क्या शुभ ग्रहों से युक्त व दृष्ट हो तो दशा के प्रारम्भ में अशुभ और मध्य में शुभ फल प्रदान करता है। अत्यन्त मामूली धनलाभ, देहसूख, देवाराधन में रुचि तथा अन्त में धन-हानि और कष्ट होता है। अशुभ केतु के दशाफल में जातक द्वारा किए गए प्रयत्नों से असफलता, नीच कर्मो में प्रवृति, परिजनों से कलह, धर्म-विरुद्ध आचरण से अपकीर्ति, पैतृक सम्पत्ति का नाश, माता की मृत्यु, पानी में डूबने की आशंका प्राय
केतु का दशाकाल सुखद न होकर पीड़ायुक्त ही व्यतीत होता है।
शुक्र-यदि चन्द्रमा की महादशा में शुभ एव बली शुक्र का अंतर व्यतीत हो रहा हो तो जातक की बृद्धि सात्विक होती है, पुत्रोत्सव होता है तथा इस उपलक्ष्य में ससुराल से प्रचुर मात्रा में दहेज मिलता है अथवा किसी अन्य व्यक्ति से उसे धन-प्राप्ति होती है क्या सुकोमल एव सुन्दर रित्रयों का संग ह्रदय में प्रसन्नता भर देता है । जातक को वाहन, वस्त्रालंकार, राज्य और समाज में प्रतिष्ठा, उच्च पद की प्राप्ति और भाग्य में वृद्धि होती है । यदि चन्द्रमा क्षीण तथा शुक्र पाप प्रभावी और अशुभ स्थानगत हो तो इससे विपरीत फल मिलते हैं । विषय-वासना की अधिकता, लांछन, बदनामी, देह दुख, रोग, पीडा, वाद-विवाद में पराजय, स्त्री सुख का नाश, मधुमेह, सूजाक आदि रोग और मन को सन्ताप निलता है।
सूर्य-बलवान और शुभ सूर्य की अन्तर्दशा जब चन्द्रमा की महादशा में चलती है तो राज्य कर्मचारियों को पदवृद्धि, वेतनघृछि अथवा अन्य प्रकार से लाभ मिलता है। इस समय जातक का शत्रुपक्ष निर्जल, वाद-विवाद में जय, उत्तम स्वास्थ्य, राजा के समान वैभव, ऐश्वर्य तथा स्वर्गोपम सुखों की प्राप्ति, स्त्री व पुत्र-सूख में वृद्धि तथा परिजनों से लाभ मिलता है। यदि चन्द्रमा क्षीणावट्यश का और सूर्य नीच, पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थानगत हो तो इस दशा में किसी विधवा स्त्री के द्वारा अपमान, दूसरों की उन्नति से ईष्यों द्वेष, पिता की मृत्यु अथवा संक्रामक रोगी होते की सम्भावना, पित्तज्वर, आमातिसार, सदीं-जुकाम आदि रोगों से देहपीड़ा, मन में व्यर्थ की विकलता, चोर व अग्नि से सम्पत्ति की हानि आदि फल मिलते है।
Pt.P.S.Tripathi
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