मंगल-यदि मंगल उच्च राशि, स्वक्षेत्री, शुभ यहीं से दुष्ट होकर केन्द्र, त्रिकोण, आय और सहज भावस्थ हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में शुभा-शुभ फल प्रदान करता है। बलवान मंगल, बली आयेश या धनेश से सम्बन्ध करता हो तो जातक इसकी दशा में राज्यानुग्रह प्राप्त कर लेता है । सेना अथवा अर्द्धसैनिक बल में नौकरी मिल जाती है, कमाण्डर जैसे पद प्राप्त होते हैं, सैन्य या पुलिस पदक मिलता है, व्यवसायी हो तो व्यवसाय खूब चमकता है क्या लश्मी की कूपा बनी रहती है। व्यक्ति परमोत्साही, पर क्रूरकमाँ बन जाता है, खून में गरमी बढ जाती है।अशुभ मंगल एव अशुभ स्थानस्थ मंगल की दशा में, व्यक्ति को क्रोध अधिक आ जाता है, बुद्धि भ्रमित हो जाती है, निम्न पदों पर नौकरी करनी पड़ती है, इष्टजनों से कलह, व्यवसायियों का ग्राहकों से झगडा, रक्तचाप, रक्तविकार, शिरोवेदना, नेत्र रोग, खुजली, देह में चकते जैसे रोग व अन्य व्याधिया हो जाती है क्या इनकी चिकित्सा कराने में धन व्यय होता है। व्यवसाय स्थिर हो जाता है।
राहु-मंगल और राहु दोनों ही नैसर्गिक पापी ग्रह है। मंगल की महादशा में राहु की अन्तर्दशा में शुभाशुभ, अर्थात मिश्रित फल मिलते है। शुभ मंगल की महादशा में शुभ राहु का अंतर चल रहा हो तो जातक मकान, भूमि, धन, माल आकस्मिक रूप से पा लेता है, शत्रुओँ का मनमर्दन कर विशेष बाहुबल का परिचय देता है। कृषि में लाभ, वाद-विवाद में विजय मिलती है। प्रवास अधिक करने पड़ते हैं, दुर्घटना का भय रहता है । अशुभ राहु के दशाकाल में जातक मन में बहम, अपने-परायों से झगडा,व्यर्थ के लाछन और अपवाद, शत्रुआँ से कष्ट, स्थानान्तरण, उदर शूल, वायुबिकार, मन्दाग्नि, रक्तक्षय, श्यास-कास से पीडित रहता है, बनते कार्यों में विघ्न आते हैं और प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है ।
बृहस्पति-शुभ मंगल की दशा में यदि शुभ और बलवान ब्रिहस्पती की अन्तर्दशा चले तो जातक की सल्कीर्ति फैलती है, कई अच्छे ग्रन्धों का निर्माण होता है, अकर्मण्य को कर्म मिलता है, पूर्वार्जित सम्पत्ति मिलती है, नौकरी में पदवृद्धि, वेतनवृछि होती है, सत्कर्म, परोपकार, तीर्थाटन में रुचि बढती है, आरोग्यता वनी रहती है, कार्य-व्यवसाय में वृद्धि होती है । पुत्रोत्सव से मन में हर्ष, सन्तान के कारण यश मिलता है तथा समाज में मान-सम्मान बहता है। अशुभ और निर्बल बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तो पदावनति, राजम, सन्तान से कष्ट, स्वी सुख में कमी, इष्ट-मित्रों से अनबन, कार्य-व्यवसाय में हानि, ज्वर, कर्ण पीडा, कफ-पित्तादि रोगों से पीडा तथा अपवृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।
शनि-मंगल महादशा में राहु अन्तर्दशा के जैसे मिश्रित मंगल शनि अन्तर्दशा के भी मिलते है। बलवान शनि शुभ अवस्था आदि में हो तो अपनी अन्तर्दशा से जातक को स्लेछ वर्ग से लाभ, स्वग्राम में व अपने समाज में यश-प्रतिष्ठा, घन-घान्य की वृद्धि, काले पशुधन से लाभ एव ग्रामसभा का सदस्य आदि जैसे पाल प्रदान करता है। किसी पराक्रमपूर्ण कार्य के लिए स्वल्प पारितोषिक मिलता है । यदि पापी और अशुभ स्थानस्थ शनि हो तो जातक इस दशाकाल में अस्थिर-धि, एक कार्य को छोड़कर दूसरा कार्य प्रारम्भ करने वाला, स्वजनों का नाश देखने वाला, चोर-लुटेरों-शत्रुओँ व शस्त्राघात से पीडित होने वाला, पुत्र सुख से हीन, अपकीर्ति पाने वाला होता है । नौबत यहा तक आ पहुंचती है कि जातक सभी ओर से निराश होकर ईंश्वरभक्ति करता है अथवा आत्महनन करने की चेष्टा कर कारागृह की शोभा बढा देता है ।
बुध-बली बुध शुभ होकर केन्द्र, त्रिकोण या आय स्थान में हो तथा मंगल में बुध का अन्तर चल रहा हो तो जातक स्थिर मति, पश्चिम से कार्य करने वाला होता है । उसके यहा संख्या, कीर्तन, प्रवचन आदि होते रहते है ।वैश्य वर्ग से लाभ मिलता है। सेना में पदृवृद्धि, विद्या-विनोद, बहुमूल्य सम्पत्ति का स्वामित्व प्राप्त होता है। कन्या रत्न उत्पत्ति के उपलक्ष्य से उत्सव मनाता है। निर्बल और अशुभ बुध की अन्तर्दशा हो तो जातक की अपकीर्ति फैलती है, कठिन श्रम का फल शून्य मिलता है, लेखन कार्य से अपयश, कार्य-व्यवसाय में हानि, दुष्टजनों से मनस्ताप, ग्रहक्लह से मानसिक वेदना मिलती है । अनुभव से ऐसा आता है कि जिन्हें दशा के प्रारम्भ में हानि होती है, उन्हें दशा के अन्त में लाभ मिल जाता है और जिन्हें दशा के अन्त में हानि रहती है, उन्हें दशा के प्रारम्भ में लाभ मिलता है ।
केतु-शुभ केतु की अन्तर्दशा में जातक को सुख और शान्ति मिलती है, पद व उत्साह में वृद्धि और साकार होता है। अशुभ केतु की दशा में जातक के मन में भय, पाप कर्म में रुचि, निराशा, इष्टजनों को कष्ट, नीव तीनों की संगति से अपयश, शत्रुओ से पराजय, व्यर्थ में इधर-उधर भटकना, बिजली, बादल से अपपृत्यु, अग्नि भय, आवास का नाश, राज्यदण्ड जिने की आशंका बनती है । उदर शूल, पेड़ शूल, पत्यरी, कार्बक्ल, नासूर, भगन्दर जैसे दुष्ट रोग पीडित करते है । केतु अन्तर्दशा विशेष कष्टदायक होती है
शुक्र-ज़ब मंगल की महादशा में शुभ और बलवान शुक्र की अंतर्दशा व्यतीत हो रही हो तो जातक के मन में चंचलता, कामावेग में वृद्धि, चित्त में ईष्यएँ व द्वेष भर जाते हैं ।परीक्षार्थी येन-केन-प्रकारेण उतीर्ण हो जाते हैं, पुत्र उत्पत्ति का हर्ष, श्वसुर पक्ष से दान-दहेज मिलता है, सुन्दर स्त्रियों से प्रेमालाप एव उपहारों की प्राप्ति होती है । राज्य कृपा से भूमि की प्राप्ति, नाटक, संगीत, सिनेमा, नाच-गाने में रुचि बढती है । पापी और अशुभ क्षेत्री शुक्र की अन्तर्दशा से जातक विदेश गंमन करता है,|
सूर्य-मंगल की महादशा में जब उच्च, स्वक्षेत्री, शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट सूर्य की अन्तर्दशा चलती है तो व्यक्ति राज्य से विशेष लाभ प्राप्त करता है । नौकर हो तो आनरेरी पद से वृद्धि, अग्रिम वेतन वृद्धि होती है । उच्चधिकांरेयों का कृपापात्र बनता है । सेना व पुलिस सेवा के कर्मचारी इस दशा में विशेष लाभान्वित होते है। युद्ध व वादविवाद में विजय मिलती है। दूर-दराज के जंगलों, पहाडों मेँ निवास होता है। पापक्षेत्री, पापप्रभाबी, निर्बल सूर्य की दशा हो तो जातक गुरु-ब्राहम्ण से द्वेष करता है, माता-पिता को कष्ट मिलता है, मन को परिताप पहुँचता है, धनहानि व पशुओ का नाश होता है। विष्य-वासना बढ़ती है और जातक समलैंगिक संसर्ग करता है।
चन्द्रमा-शुभ पाल की महादशा में जब शुभ और बली चन्द्रमा की अन्तर्दशा चलती है तो जातक का मन शान्त, लेकिन देह में आलस्य बढ़ जाता है। जातक अधिक सोता है, दूध, खोये के पदार्थ खाने को मिलते हैं, प्रवास अधिक होते हैं, प्राकृतिक दृश्यों की छटा के अवलोकन की विशेष रुचि बनती है, श्वेत वस्तुओं व घातुओँ के व्यवसाय से विशेष लाभ मिलता है। बाग-बगीचे लगवाने पर धन व्यय, विवाहोत्सव एव मांगलिक कार्य सप्पन्न होते है। इष्ट-मित्रों से बहुमूल्य उपहार मिलते है। अशुभ और पाप प्रभावी चन्द्रमा की अन्तर्दशा से जातक को नजला, जुकाम, स्वप्नदोष, जिगर-तिल्ली में शोथ,| जातक अविवाहित और पराई रित्रयों से रमण करता है, मन में उद्धिग्नत्ता बनी रहती है, कल्पनालोक से विचरण कर अमूल्य समय को नष्ट करता है। यदि चन्द्रमा मारकेश से सम्बन्थ करता हो तो अपमृत्यु का भय बनता है।
राहु-मंगल और राहु दोनों ही नैसर्गिक पापी ग्रह है। मंगल की महादशा में राहु की अन्तर्दशा में शुभाशुभ, अर्थात मिश्रित फल मिलते है। शुभ मंगल की महादशा में शुभ राहु का अंतर चल रहा हो तो जातक मकान, भूमि, धन, माल आकस्मिक रूप से पा लेता है, शत्रुओँ का मनमर्दन कर विशेष बाहुबल का परिचय देता है। कृषि में लाभ, वाद-विवाद में विजय मिलती है। प्रवास अधिक करने पड़ते हैं, दुर्घटना का भय रहता है । अशुभ राहु के दशाकाल में जातक मन में बहम, अपने-परायों से झगडा,व्यर्थ के लाछन और अपवाद, शत्रुआँ से कष्ट, स्थानान्तरण, उदर शूल, वायुबिकार, मन्दाग्नि, रक्तक्षय, श्यास-कास से पीडित रहता है, बनते कार्यों में विघ्न आते हैं और प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है ।
बृहस्पति-शुभ मंगल की दशा में यदि शुभ और बलवान ब्रिहस्पती की अन्तर्दशा चले तो जातक की सल्कीर्ति फैलती है, कई अच्छे ग्रन्धों का निर्माण होता है, अकर्मण्य को कर्म मिलता है, पूर्वार्जित सम्पत्ति मिलती है, नौकरी में पदवृद्धि, वेतनवृछि होती है, सत्कर्म, परोपकार, तीर्थाटन में रुचि बढती है, आरोग्यता वनी रहती है, कार्य-व्यवसाय में वृद्धि होती है । पुत्रोत्सव से मन में हर्ष, सन्तान के कारण यश मिलता है तथा समाज में मान-सम्मान बहता है। अशुभ और निर्बल बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तो पदावनति, राजम, सन्तान से कष्ट, स्वी सुख में कमी, इष्ट-मित्रों से अनबन, कार्य-व्यवसाय में हानि, ज्वर, कर्ण पीडा, कफ-पित्तादि रोगों से पीडा तथा अपवृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।
शनि-मंगल महादशा में राहु अन्तर्दशा के जैसे मिश्रित मंगल शनि अन्तर्दशा के भी मिलते है। बलवान शनि शुभ अवस्था आदि में हो तो अपनी अन्तर्दशा से जातक को स्लेछ वर्ग से लाभ, स्वग्राम में व अपने समाज में यश-प्रतिष्ठा, घन-घान्य की वृद्धि, काले पशुधन से लाभ एव ग्रामसभा का सदस्य आदि जैसे पाल प्रदान करता है। किसी पराक्रमपूर्ण कार्य के लिए स्वल्प पारितोषिक मिलता है । यदि पापी और अशुभ स्थानस्थ शनि हो तो जातक इस दशाकाल में अस्थिर-धि, एक कार्य को छोड़कर दूसरा कार्य प्रारम्भ करने वाला, स्वजनों का नाश देखने वाला, चोर-लुटेरों-शत्रुओँ व शस्त्राघात से पीडित होने वाला, पुत्र सुख से हीन, अपकीर्ति पाने वाला होता है । नौबत यहा तक आ पहुंचती है कि जातक सभी ओर से निराश होकर ईंश्वरभक्ति करता है अथवा आत्महनन करने की चेष्टा कर कारागृह की शोभा बढा देता है ।
बुध-बली बुध शुभ होकर केन्द्र, त्रिकोण या आय स्थान में हो तथा मंगल में बुध का अन्तर चल रहा हो तो जातक स्थिर मति, पश्चिम से कार्य करने वाला होता है । उसके यहा संख्या, कीर्तन, प्रवचन आदि होते रहते है ।वैश्य वर्ग से लाभ मिलता है। सेना में पदृवृद्धि, विद्या-विनोद, बहुमूल्य सम्पत्ति का स्वामित्व प्राप्त होता है। कन्या रत्न उत्पत्ति के उपलक्ष्य से उत्सव मनाता है। निर्बल और अशुभ बुध की अन्तर्दशा हो तो जातक की अपकीर्ति फैलती है, कठिन श्रम का फल शून्य मिलता है, लेखन कार्य से अपयश, कार्य-व्यवसाय में हानि, दुष्टजनों से मनस्ताप, ग्रहक्लह से मानसिक वेदना मिलती है । अनुभव से ऐसा आता है कि जिन्हें दशा के प्रारम्भ में हानि होती है, उन्हें दशा के अन्त में लाभ मिल जाता है और जिन्हें दशा के अन्त में हानि रहती है, उन्हें दशा के प्रारम्भ में लाभ मिलता है ।
केतु-शुभ केतु की अन्तर्दशा में जातक को सुख और शान्ति मिलती है, पद व उत्साह में वृद्धि और साकार होता है। अशुभ केतु की दशा में जातक के मन में भय, पाप कर्म में रुचि, निराशा, इष्टजनों को कष्ट, नीव तीनों की संगति से अपयश, शत्रुओ से पराजय, व्यर्थ में इधर-उधर भटकना, बिजली, बादल से अपपृत्यु, अग्नि भय, आवास का नाश, राज्यदण्ड जिने की आशंका बनती है । उदर शूल, पेड़ शूल, पत्यरी, कार्बक्ल, नासूर, भगन्दर जैसे दुष्ट रोग पीडित करते है । केतु अन्तर्दशा विशेष कष्टदायक होती है
शुक्र-ज़ब मंगल की महादशा में शुभ और बलवान शुक्र की अंतर्दशा व्यतीत हो रही हो तो जातक के मन में चंचलता, कामावेग में वृद्धि, चित्त में ईष्यएँ व द्वेष भर जाते हैं ।परीक्षार्थी येन-केन-प्रकारेण उतीर्ण हो जाते हैं, पुत्र उत्पत्ति का हर्ष, श्वसुर पक्ष से दान-दहेज मिलता है, सुन्दर स्त्रियों से प्रेमालाप एव उपहारों की प्राप्ति होती है । राज्य कृपा से भूमि की प्राप्ति, नाटक, संगीत, सिनेमा, नाच-गाने में रुचि बढती है । पापी और अशुभ क्षेत्री शुक्र की अन्तर्दशा से जातक विदेश गंमन करता है,|
सूर्य-मंगल की महादशा में जब उच्च, स्वक्षेत्री, शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट सूर्य की अन्तर्दशा चलती है तो व्यक्ति राज्य से विशेष लाभ प्राप्त करता है । नौकर हो तो आनरेरी पद से वृद्धि, अग्रिम वेतन वृद्धि होती है । उच्चधिकांरेयों का कृपापात्र बनता है । सेना व पुलिस सेवा के कर्मचारी इस दशा में विशेष लाभान्वित होते है। युद्ध व वादविवाद में विजय मिलती है। दूर-दराज के जंगलों, पहाडों मेँ निवास होता है। पापक्षेत्री, पापप्रभाबी, निर्बल सूर्य की दशा हो तो जातक गुरु-ब्राहम्ण से द्वेष करता है, माता-पिता को कष्ट मिलता है, मन को परिताप पहुँचता है, धनहानि व पशुओ का नाश होता है। विष्य-वासना बढ़ती है और जातक समलैंगिक संसर्ग करता है।
चन्द्रमा-शुभ पाल की महादशा में जब शुभ और बली चन्द्रमा की अन्तर्दशा चलती है तो जातक का मन शान्त, लेकिन देह में आलस्य बढ़ जाता है। जातक अधिक सोता है, दूध, खोये के पदार्थ खाने को मिलते हैं, प्रवास अधिक होते हैं, प्राकृतिक दृश्यों की छटा के अवलोकन की विशेष रुचि बनती है, श्वेत वस्तुओं व घातुओँ के व्यवसाय से विशेष लाभ मिलता है। बाग-बगीचे लगवाने पर धन व्यय, विवाहोत्सव एव मांगलिक कार्य सप्पन्न होते है। इष्ट-मित्रों से बहुमूल्य उपहार मिलते है। अशुभ और पाप प्रभावी चन्द्रमा की अन्तर्दशा से जातक को नजला, जुकाम, स्वप्नदोष, जिगर-तिल्ली में शोथ,| जातक अविवाहित और पराई रित्रयों से रमण करता है, मन में उद्धिग्नत्ता बनी रहती है, कल्पनालोक से विचरण कर अमूल्य समय को नष्ट करता है। यदि चन्द्रमा मारकेश से सम्बन्थ करता हो तो अपमृत्यु का भय बनता है।
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