प्राणीजगत में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो अपने अंतस के विचारो एवं भावों को शब्दों के माध्यम से प्रकट कर सकता है। मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणियों में यह क्षमता नहीं होती। मानव की उन्नति में शब्दों का बहुत महत्व है परंतु जो शक्ति जितना उपयोगी एवं कल्याणकारी होती है, दुरूपयोग करने पर वह उतना ही दुखप्रद एवं हानिकारक हो जाती है। शब्दों का गलत प्रयोग करने, समय-कुसमय का ध्यान ना रखने एवं परिस्थिति के अनुरूप कम या ज्यादा बोलने का हुनर ना हो तो व्यवहार खराब हो सकता है, मानसिक शांति भंग हो सकती है या दुख मिल सकता है। इस संबंध में कबीर की सीख है -‘बोल तो अमोल है, जो कोई बोले जान। हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आन।। अतः शब्द से अपने व्यवहार, रिष्तों एवं संस्कार को प्रदर्षित करने के लिए अपने ग्रहों को परखकर अपने व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है, इसके लिए किसी भी जातक की कुंडली का दूसरा स्थान उसकी वाणी का स्थान होता है, जिसका कालपुरूष की कुंडली में ग्रहस्वामी शुक्र है, जो मीठे बोल के लिए लिया गया है। किंतु प्रत्येक जातक की कुंडली में उसके दूसरे स्थान का स्वामी अलग हो सकता है अतः यदि आपकी कुंडली में दूसरा स्थान दूषित हो अथवा पाप ग्रहों से आक्रांत हो तो आपके बोल दुष्मन पैदा कर सकते हैं वहीं यदि अनुकूल हो तो बोल ही प्रसिद्ध बनाते हैं। अतः दूसरे स्थान के ग्रह को अनुकूल करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए शुक्र की शांति हेतु सुहाग की सामग्री का दान, दुर्गा कवच का पाठ तथा कुंवारी कन्याओं को भोज कराना चाहिए।
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