Sunday, 15 November 2015

राहु की अंतर्दशा का फल

राहु-जन्मकुंडली में राहु उच्च राशि, मित्रक्षेत्री और शुभ ग्रहों से युक्त हो तो राहु शुभ ग्रहों की अपेक्षा अतीव शुभ फल प्रदाता होता है। शुभ राहु की दशा-अन्तर्दशा से जातक आकस्मिक रूप से उन्नति के शिखर पर पहुच जाता है । बुद्धिमता और विद्वता आती है, अधिकार मिलते हैं । राजनीति में प्रवेश करता है, क्रोध एव उत्साह में वृद्धि, कार्य व्यवसाय का फैलाव एव अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । वृषभ,मिथुन, कर्क व वृश्चिक राशि में राहु होने पर भी शुभ फ़ल निलते हैं । अशुभ राहु की दशा में जातक को अग्नि, विष, साप आदि से भय रहता है जातक अभक्ष्य-भक्षी बनता है, मित्र वर्ग से धोखा मिलता है, स्थानच्युति, धननाश, परिवार को कष्ट और वात रोग तथा मन्दाग्नि से पीडित होता है ।
बृहस्पति-राहु शुभ हो और इसकी महादशा में शुभ और बलवान बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तो जातक की चित्तवृति सात्विक और बुद्धि प्रखर हो जाती है,उच्चधिकारियों से प्रीति, स्वास्थ्य सुख, पद में उन्नति मिलती है । कार्य-व्यवसाय में प्रचुर लाभ मिलता है, दर्शन शास्त्र पढने में रुचि बनती है, जातक दार्शनिक विचारधारापूर्ण लेखन कर मान-सम्मान पाता है, तन्त्र-मन्त्र जैसे गूढ़ विषय का पण्डित बन समाज को दिशा-निर्देश करता है | जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कलाएं बढती हैं, वैसे ही इस दशा से जातक के यश, धन-धान्य और कीर्ति की बढ़ोतरी होती है । अशुभ बृहस्पति की दशा में ज्येष्ठ भ्राता का नाश, राजकीय दण्ड मिलने की सम्भावना रहती है, गैसट्रिक ट्रबल, हृदय रोग, मन्दाग्नि आदि से पीडा और धनहानि होती है ।
शनि-शुभ राहु की दशा में शुभ व बलवान शनि की अन्तर्दशा व्यतीत हो तो जातक को काले पशुधन व काली वस्तुओं के व्यापार से लाभ, पशुवाहन की प्राप्ति होती है । समाज में और अपने वर्ग में सम्मान मिलता है । पश्चिम दिशा और ग्लेच्छ वर्ग विशेष लाभदायक रहता है | जातक राजनीतिक कार्यों में पदु होता है तथा ग्रामसभा व पालिक का अध्यक्ष बनता है । अशुभ शनि की अन्तर्दशा में जातक अस्थिर मति, किसी अज्ञात पीडा से विकल, मलिन वस्त्र धारण कर इधर-उधर भटकता है | किसी परिजन की मृत्यु से मन को सन्ताप पहुंचता है 1 जातक आत्महनन करने की कुचेष्टा करता है । सर्प-विष, शाश्त्रघात का भय तथा गठिया, वात रोग से शूल, उदर व्याधि, अर्श, भगन्दर आदि रोग हो जाते हैं ।
बुध-शुभ राहु की महादशा में उच्च या शुभ प्रभावी बुध की महादशा चले तो जातक उत्तम विद्या प्राप्त कर लेता है । प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलती है । जातक की चित्तवृत्ति स्थिर और बुद्धि सात्विक हो जाती है । अपने मित्रों, परिजनों से सहानुभूति बढ़ती है, आय के कई स्तोत्र बनते है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है ।उच्च राशि का बुध हो तो राजकीय सेवा में उच्च पद मिलता है । लेखन तथा उच्चवगाय लोगों से धनलाभ होता है। अशुभ बुध की अन्तर्दशा में जातक घोर कष्ट पाता है, प्रत्येक कार्य में विफलता मिलती है, नौकरी से न उन्नति होती है, न अवनति । राजकोष का भागी होना पड़ता है । अश्लील साहित्य के रचना से अपयश मिलता है । जातक असत्य भाषण करता है, देव-गुरू का निन्दक, दुष्टबुद्धि, अपने कुकृत्यों से भाग्य हानि कर लेता है। चर्म रोग, वातरोग, फोड़ा-फुन्सी इत्यादि से पीडा होती है ।
केतु-राहु के महादशा में केतु की अन्तर्दशा का समय अशुभ ही होता है । कुछ एक शुभ फल जो मिलते भी हैं, वे गौण हो जाते हैं । जातक की बुद्धि अष्ट हो जाती है । नीच जनों की संगति कर दुष्कर्म करने को प्रवृति होती है । आजीविका का साधन नैतिक-अनैतिक कैसा भी हो सकता है । जातक पूर्वार्जित धन को मदिरापान, वेश्यागमन और जुआ आदि व्यसनों में पाकर समाप्त कर देता है । समाज में अपना सामान खो देता है । घर में कलह या वातावरण बना रहता है । उदरपूर्ति के लिए भटकना पड़ता है, निर्धनता और रोगों के कारण मार्ग में और विदेश में कष्ट भोगने पड़ते हैं । स्वजनों से विछोह हो जाता है । यदि केतु लग्न के स्वामी से युक्त या दुष्ट हो तो धनलाभ होता है, पशुधन की वृद्धि होती है । वृश्चिक राशि का केतु केन्द्र अथवा त्रिकोण में हो तो शुभ फल देता है ।
शुक्र-शुक्र कारक ग्रह हो, बलवान और शुभ प्रभाव में हो तो राहु महादशा में जब शुक्र का अन्तर होता है तो जातक को अनेक भोपोपभोग प्राप्त होते है । जातक का मन चंचल और सात्विक दोनो ही प्रकार का बन जाता है । जहा वह विलासिता का जीवन जीने की चाह रखता है, वहीं धार्मिक ग्रन्धों का श्रवण, अध्ययन, स्वाध्याय तथा पूजा-अचंना भी करता है । कामवासना प्रबल होती है, लेकिन अपनी पत्नी तक ही सीमित रहता है | विलासिता की वस्तुओं का संग्रह करता है, खेल-तमाशे आदि को भी चाव से देखता है । अशुभ शुक्र के दशाकाल में जातक के सुख का नाश हो जाता है । स्वजनों से विरोध बनता है, सन्तान से सन्ताप पहुंचता है । पास-पड़ोस वालों से लडाई-झगडा, जिगर-तिल्ली में शोध, धातुक्षय, मदाग्नी आदि रोग हो जाते हैं । शुक्र अष्टमेश हो तो मृत्युसम कष्ट मिलता है ।
सूर्य-राहु भी शुभ हो तथा सूर्य उच्च राशि, मूल त्रिकोण व स्वराशि का तथा बलवान शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो इनकी दशा-अन्तर्दशा में जातक का कार्य-व्यवसाय बड़े क्षेत्र से फैलता है । राजकृपा से स्वल्प सूख, धन-धान्य में वृद्धि होती है । जातक राजनीति के क्षेत्र में मान पाता है तथा कई सभाओं का प्रधान या मुखिया बनता है । पैतृक सप्पत्ति मिलती है । दान-धर्म के प्रति भी रुचि रखता है, भले ही दिखावे के लिए करे । अशुभ सूर्य की दशा में जातक के रुधिर में उष्णता बढ़ जाती है, क्रोध अधिक आता है, अकारण किसी से भी झगड़ने की इच्छा होती है, पिता को कष्ट मिलता है, व्यापार में हानि, नौकरी में उच्चधिकारियों के कास्या अवनति, शिरोवेदना, नेत्रपीड़ा, वात रोग, गठिया,सर्वाग शूल, अर्श और रक्तातिसार जेसे रोग देह को पीडा देते हैं ।
चन्द्रमा-राहु शुभ राशि का शुभ प्रभावी होकर तृतीय, षष्ठ, एकादश, नवम व दशम में हो क्या चन्द्रमा पूर्ण बली, शुभ ग्रह युक्त व दुष्ट हो तो राहु की महादशा में जब चंद्रमा की अन्तर्दशा चलती है तो जातक ललित वला के क्षेत्र में उन्नति करता है क्या राज्यस्तरीय सम्मान पाता है । बुद्धि स्थिर व विचार घार्मिक होते है । श्वेत खाद्य पदार्थों को विशेष रूप से प्राप्त कर लेता है-जैसे दूध, दही, खोया आदि । आप्तज़नों के अम्भीवरेंद से सुखमय जीवन व्यतीत करता है । अशुभ और क्षीणबली चन्द्रमा की दशामें जातक वात्त के कुपित हो जाने से मानसिक एव शारीरिक कष्ट जाग है । भूत-पिशाच आदि से मन से भय उत्पन्न होता है । वायुजनित रोग एवं शीत ज्वर से पीड़। निलती है । देह में जल का संचय अधिक होने से मोटापा आता है।
मंगल-जब मंगल उच्च या स्वगृही होकर केन्द्र, त्रिकोण, लाभस्थान में शुभ ग्रहों से युक्त या दुष्ट होकर स्थित हो तो राहु महादशा अपनी अनास्था में बन्धुव्रर्ग का उत्यान क्या जातक को उनसे लाभ दिलवाती है । जातक परम उत्साही होकर शत्रु का मानमर्दन ऐसे ही कर देता है…जैसे बाज कबूतरों के झुण्ड का। दोनों ग्रहों में एक शुभ और एक अशुभ हो तो नाना प्रकार की अधि-व्याधि अज्ञान करती हैं, कार्य में विफलता क्या स्मृति का नाश हो जाता है। दोनों ही अशुभ स्थिति में हों तो बन्धुवर्ग का नाश, पुत्र सुख से कभी, छोर, सर्प, अग्नि का भय, दुर्घटना से देहपीडा व समाज से तिरस्कार पाता है। उदरपूर्ति के ताले पढ़ जाते हैं, भीख मांगने की नौबत आ जाती है, जीवन भार लगने लगता है, आत्मघात की इच्छा होती है । मंगल अष्टमेश से सम्बरिघत हो तो मृत्यु अथवा मृत्युसम कष्ट मिलता है ।
Pt.P.S.Tripathi
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