यदि बुध कारक ग्रह होकर अपनी उच्च राशि, मूल त्रिक्रोण राशि, स्वराशि या मित्र राशि का होकर केन्द्र अथवा त्रिक्रोण में हो तो बुध की दशा जातक के लिए आनन्ददायक रहती है । उसे अनेक प्रकार की भोग सामग्री प्राप्त होती है । उच्च वाहन, सुन्दर आवास, मूल्यवान वस्त्राभूषण जातक क्रय कर लेता है । विद्या के क्षेत्र में भी जातक उन्नति करता है,उसके मन में नए नए विचारों का सूत्रपात होता है | वैज्ञानिक क्षेत्र में नए आविष्कार करने की क्षमता आती है तथा वह कई जटिल समस्याओं का हल खीज निकलता है |
यदि बुध शुक्र से प्रभावित हो तो जातक का ध्यान विलासिता की ओर अधिक रहता है तथा यह अनेक सुन्दर रमणियों से रमण कर आनन्द प्राप्त करता है । धनार्जन के एक से अधिक स्रोत होने से जातक की आर्थिक स्थिति सुदृढ हो जाती है । यदि बुध शनि से प्रभावित हो तो जातक कृषि-कार्यों में रुचि लेकर उन्नति को प्राप्त होता है। घर में धार्मिक कृत्य होते हैं, संतान के कारण यश मिलता है। विद्धत समाज में मान बढ़ता है और जातक समाज को दिशा-निर्देश दे सकते की स्थिति में पहुच जाता है ।
यदि बुध सूर्य से प्रभावित हो तो जातक को राज्य की ओर से सम्मान प्राप्त होता है | जातक देश-विदेश में अपना व्यवसाय फैला देता हैं नौकरी करता हो तो पदोन्नति निश्चित रूप से होती है ।परिजनों-सम्बन्धियों से प्यार मिलता है, जुआ-सट्टा-लाटरी आदि से धनवृद्धि होती है । जातक नए-नए सम्बन्ध जोड़कर नित्य का क्षेत्र बढा लेता है। इन लोगों के द्वारा भी धनार्जन के अवसर हिलते हैं । घर में शुभ समाचार आते हैं । स्वर्ण, रजत और रत्नों के व्यवसाय में लगे लोग अधिक लाभार्जन कर लेते हैं। इन दिनों जातक जो भी इच्छा करता है, वह पूरी हो जाती है । बेरोजगार जातक आजीविका पा लेते हैं । ऐसा अनुभव में आया है की जातक नैतिक-अनैतिक दोनों प्रकार के कर्म करता है तथा सफलता पा लेता है तथा आस्तिक-नास्तिक दोनों दोनों प्रकार के जीवन का यथा स्थिति जीता है | यदि बुध अकारक होकर नीच राशि, शत्रु राशि अथवा पाप मध्य्त्व में हो, वक्री हो या उच्च का होकर नीव नवांश में हो तो अतीव अशुभ फलप्रदाता बनता है । जातक के धन-धान्य होता है क्या उसे दरिद्रता में समय व्यतीत करना पड़ता है | यह अलग बात है कि द्रारिद्रय उसके कर्म-हास का फल होता है । मानसिक चिन्ताएं जातक को पीडित करती है । अपने उच्चधिकारियों से मतभेद बढ़ते है, राज्यकर्मचारियों से द्वेष के कारण उसे हानि उठानी पड़ती है । जातक छल-कपट व धोखेबाजी से येन-केन-प्रकारेण। धन-संचय करने का प्रयास करता है। धूतक्रीडा में धनहानि होती है, बूतकर्म के कारण जातक की बदनामी होती है और उसके सम्मान को ठेस पहुंचती है ।
यदि बुध अनिष्ट भाव से स्थित होकर वक्री हो तो जातक का मित्रों से वैमनस्य हो जाता है तथा नित्र भी शत्रुवत व्यवहार करते है, विदेशवास करना पड़ता है । परिवार से विलग रहकर जातक नीच स्त्रियों से सम्पर्क बनाता है, जिसके कारण धन मान-सम्मान एव प्रतिष्ठा का हास होता है । जीविकोपार्जन के लिए दूसरों की चापलूसी एव सेवा करनी पड़ती है | यदि बुध पापी ग्रह से पुल अथवा दुष्ट होकर निर्बल हो तो कृषि-कार्य में हानि क्या विद्या के क्षेत्र में अवनति होती है । पशुदृभुका नाश होने से आर्थिक स्थिति बिगड़ती है, कारावास का भय बस्ता है क्या चित्त को परिताप पहुँचता है |मन में अस्थिरता बढ़ती है, क्या करूं क्या न करू का निर्णय ले पाने की क्षमता नहीं रहती,मष्तिष्क विकार होने की समभावना बढ़ जाती है |तथा लोगों में व्यर्थ में अपवाद फैलते है | यद बुध अष्टमस्थ हो तो शत्रु प्रबल होते हैं, उनके द्वारा शस्वाघात का भय रहता है धनहानि होती है, राजकीय दण्ड मिल सकता है, परिजनों से वैमनस्य तथा घर से कलह का वातावरण बनता हैं |
यदि बुध शुक्र से प्रभावित हो तो जातक का ध्यान विलासिता की ओर अधिक रहता है तथा यह अनेक सुन्दर रमणियों से रमण कर आनन्द प्राप्त करता है । धनार्जन के एक से अधिक स्रोत होने से जातक की आर्थिक स्थिति सुदृढ हो जाती है । यदि बुध शनि से प्रभावित हो तो जातक कृषि-कार्यों में रुचि लेकर उन्नति को प्राप्त होता है। घर में धार्मिक कृत्य होते हैं, संतान के कारण यश मिलता है। विद्धत समाज में मान बढ़ता है और जातक समाज को दिशा-निर्देश दे सकते की स्थिति में पहुच जाता है ।
यदि बुध सूर्य से प्रभावित हो तो जातक को राज्य की ओर से सम्मान प्राप्त होता है | जातक देश-विदेश में अपना व्यवसाय फैला देता हैं नौकरी करता हो तो पदोन्नति निश्चित रूप से होती है ।परिजनों-सम्बन्धियों से प्यार मिलता है, जुआ-सट्टा-लाटरी आदि से धनवृद्धि होती है । जातक नए-नए सम्बन्ध जोड़कर नित्य का क्षेत्र बढा लेता है। इन लोगों के द्वारा भी धनार्जन के अवसर हिलते हैं । घर में शुभ समाचार आते हैं । स्वर्ण, रजत और रत्नों के व्यवसाय में लगे लोग अधिक लाभार्जन कर लेते हैं। इन दिनों जातक जो भी इच्छा करता है, वह पूरी हो जाती है । बेरोजगार जातक आजीविका पा लेते हैं । ऐसा अनुभव में आया है की जातक नैतिक-अनैतिक दोनों प्रकार के कर्म करता है तथा सफलता पा लेता है तथा आस्तिक-नास्तिक दोनों दोनों प्रकार के जीवन का यथा स्थिति जीता है | यदि बुध अकारक होकर नीच राशि, शत्रु राशि अथवा पाप मध्य्त्व में हो, वक्री हो या उच्च का होकर नीव नवांश में हो तो अतीव अशुभ फलप्रदाता बनता है । जातक के धन-धान्य होता है क्या उसे दरिद्रता में समय व्यतीत करना पड़ता है | यह अलग बात है कि द्रारिद्रय उसके कर्म-हास का फल होता है । मानसिक चिन्ताएं जातक को पीडित करती है । अपने उच्चधिकारियों से मतभेद बढ़ते है, राज्यकर्मचारियों से द्वेष के कारण उसे हानि उठानी पड़ती है । जातक छल-कपट व धोखेबाजी से येन-केन-प्रकारेण। धन-संचय करने का प्रयास करता है। धूतक्रीडा में धनहानि होती है, बूतकर्म के कारण जातक की बदनामी होती है और उसके सम्मान को ठेस पहुंचती है ।
यदि बुध अनिष्ट भाव से स्थित होकर वक्री हो तो जातक का मित्रों से वैमनस्य हो जाता है तथा नित्र भी शत्रुवत व्यवहार करते है, विदेशवास करना पड़ता है । परिवार से विलग रहकर जातक नीच स्त्रियों से सम्पर्क बनाता है, जिसके कारण धन मान-सम्मान एव प्रतिष्ठा का हास होता है । जीविकोपार्जन के लिए दूसरों की चापलूसी एव सेवा करनी पड़ती है | यदि बुध पापी ग्रह से पुल अथवा दुष्ट होकर निर्बल हो तो कृषि-कार्य में हानि क्या विद्या के क्षेत्र में अवनति होती है । पशुदृभुका नाश होने से आर्थिक स्थिति बिगड़ती है, कारावास का भय बस्ता है क्या चित्त को परिताप पहुँचता है |मन में अस्थिरता बढ़ती है, क्या करूं क्या न करू का निर्णय ले पाने की क्षमता नहीं रहती,मष्तिष्क विकार होने की समभावना बढ़ जाती है |तथा लोगों में व्यर्थ में अपवाद फैलते है | यद बुध अष्टमस्थ हो तो शत्रु प्रबल होते हैं, उनके द्वारा शस्वाघात का भय रहता है धनहानि होती है, राजकीय दण्ड मिल सकता है, परिजनों से वैमनस्य तथा घर से कलह का वातावरण बनता हैं |
Pt.P.S.Tripathi
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