Tuesday, 10 November 2015

दीपावली पूजन विधि


दीपावली:
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली शब्द 'दीप एवं 'आवली की संधि से बना है। आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपों की पंक्ति। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात् 'अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं। दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजऱ आते हैं।
इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाजिय़ों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझडिय़ाँ, आतिशबाजिय़ाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।
दीपावली यानी धन और समृद्धि का त्यौहार. इस त्यौहार में गणेश और माता लक्ष्मी के साथ ही साथ धनाधिपति भगवान कुबेर, सरस्वती और काली माता की भी पूजा की जाती है. सरस्वती और काली भी माता लक्ष्मी के ही सात्विक और तामसिक रूप हैं. जब सरस्वती, लक्ष्मी और काली एक होती हैं तब महालक्ष्मी बन जाती हैं.
दिपावली की रात गणेश जी की पूजा से समृद्धि और ज्ञान मिलता है जिससे व्यक्ति में धन कमाने की प्रेरणा आती है. व्यक्ति में इस बात की भी समझ बढ़ती है कि धन का सदुपयोग किस प्रकार करना चाहिए. माता लक्ष्मी अपनी पूजा से प्रसन्न होकर धन का वरदान देती हैं और धनपति कुबेर धन संग्रह में सहायक होते हैं. इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही दीपावली की रात गणेश लक्ष्मी के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है.
पूजन सामग्री:
कलावा, रोली, सिंदूर, 1 नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन.
पर्वोपचार:
पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर उस पर रंगोली बनाएं. चौकी के चारों कोने पर चार दीपक जलाएं. जिस स्थान पर गणेश एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करनी हो वहां कुछ चावल रखें. इस स्थान पर क्रमश: गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति को रखें. अगर कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की मूर्ति हो तो उसे भी रखें. लक्ष्मी माता की पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु की मूर्ति लक्ष्मी माता के बायीं ओर रखकर पूजा करनी चाहिए.
आसन बिछाकर गणपति एवं लक्ष्मी की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥ इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें। केशवाय नम: माधवाय नम:, नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें:-
पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्वम् विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें चन्दऔनस्यद महत्पुहण्यधम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यलम् लक्ष्मीा तिष्ठडतु सर्वदा।
दीपावली पूजन हेतु संकल्प:
पंचोपचार करने बाद संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें- विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो ऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते:, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमायाम तिथौ (जो वार हो) गुरूवासरे चित्रानक्षत्रे अमुक गोत्रोत्पन्नोऽहं (गोत्र का नाम लें), अमुकनामाहम् (अपना नाम लें), सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया श्रुतिस्मृत्योक्त फल प्राप्तर्थं महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पा-दयिष्ये.
गणपति पूजन:
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है. इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए. हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें. गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन- गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें. अर्घा में जल लेकर बोलें एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् गं गणपतये नम:. रक्त चंदन लगाएं- इदम रक्त चंदनम् लेपनम् गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् गं गणपतये नम:. दर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं. गणेश जी को वस्त्र पहनाएं. इदं रक्त वस्त्रं गं गणपतये समर्पयामि.
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें- इदं नानाविधि नैवेद्यानि गं गणपतये समर्पयामि:. मिष्ठान्न अर्पित करने के लिए मंत्र- इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं गं गणपतये समर्पयामि:. प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनयं गं गणपतये नम:. इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें -इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं गं गणपतये समर्पयामि:. अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि गं गणपतये नम:
इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें.
कलश पूजन:
घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें. कलश के गले में मोली लपेटें. नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें. हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें. ओ3म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ3म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)
इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें. इसके बाद देवराज इन्द्र फिर कुबेर की पूजा करें.
लक्ष्मी पूजन:
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें-
या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभि:, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रै:। मणि-गज-खचितै:, स्नापिता हेम-कुम्भै:।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें-
भूर्भुव: स्व: महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पादाद्याचमनीयं-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं। मन्दाकिन्या समानीतै:, हेमाम्भोरुह-वासितै: स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभि:।। लक्ष्म्यै नम:।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ' मन्दार-पारिजाताद्यै:, अनेकै: कुसुमै: शुभै:। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नम:।। लक्ष्म्यै नम:, पुष्पाणि समर्पयामि। इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं. अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं.
लक्ष्मी देवी की अंग पूजा:
बायें हाथ में अक्षत लेकर दायें हाथ से थोड़ा-थोड़ा छोड़ते जायें— चपलायै नम: पादौ पूजयामि चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, कमलायै नम: कटि पूजयामि, कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, कमल पत्राक्ष्यै नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।
अष्टसिद्धि पूजा:
अंग पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, प्राप्त्यै नम: प्राकाम्यै नम:, ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
अष्टलक्ष्मी पूजन:
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, लक्ष्म्यै नम:, सत्य लक्ष्म्यै नम:, भोगलक्ष्म्यै नम:, योग लक्ष्म्यै नम:।
नैवैद्य अर्पण:
पूजन के पश्चात देवी को ''इदं नानाविधि नैवेद्यानि महालक्ष्म्यै समर्पयामि मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें. मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं महालक्ष्म्यै समर्पयामि बालें. प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनयं महालक्ष्म्यै नम:. इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं महालक्ष्म्यै समर्पयामि. अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि महालक्ष्म्यै नम:।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें. पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें।
Pt.P.S.Tripathi
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