मनुष्य के लिए जितने महत्वपूर्ण उसके शरीर तथा परिवेश के परिवर्तन होंगे, उतनी ही गहन उसकी भावनाएं होंगी। संवेगों के साथ श्वास और नाड़ी की गति में परिवर्तन आते हैं (उदाहरण के लिए, उत्तेजना के मारे आदमी हांफ सकता है, उसकी सांस रुक सकती है, उसका दिल बैठ सकता है), शरीर के विभिन्न भागों में रक्त का संचार घट-बढ़ जाता है (मुंह का शर्म से लाल हो जाना या डर से पीला पड़ जाना), अंत:स्रावी ग्रंथियों की क्रिया प्रभावित होती है (दुख के मारे आंसू निकलना, उत्तेजना के मारे गला सूखना, डर के मारे पसीना छूटना)। आंतरिक अंगों की इन सभी प्रक्रियाओं को मनुष्य खुद आसानी से देख सकता है, महसूस कर सकता है और दर्ज कर सकता है। इसीलिए बहुत समय तक उन्हें ही संवेगों का कारण माना जाता था। हम आज भी ‘पत्थरदिल’. ‘दिल जलाना’, ‘दिल जीतना’, ‘दिल देना’ आदि मुहावरे इस्तेमाल करते हैं।
संवेदनशील चरित्र की विशेषताएं हैं भीरूता, मन की बात मन में रखना, शर्मीलापन। संवेदनशील किशोर अधिक, खास तौर पर नये संगी-साथियों से कतराते हैं, हमउम्रों की शरारतों के ऐसे साहसिक कार्यों में भाग नहींं लेते, जिनमें जोखिम उठाना पड़ता है, वे छोटे बच्चों के साथ खेलना पसंद करते हैं। वे परीक्षाओं से डरते हैं, बहुधा कक्षा में उत्तर देने से इसलिए डरते हैं कि कहीं उनसे गलती न हो जाए अथवा अपने उत्तर बहुत बढय़िा होने से वे अपने सहपाठियों की ईर्ष्या का पात्र न बन जाएं। किशोरों में अपनी त्रुटियों पर काबू पाने की सशक्त कामना का विशेष कारण होता है। वे उन क्षेत्रों में नहींं, जिनमें वे अपनी योग्यता प्रदर्शित कर सकते हैं, अपितु उन क्षेत्रों में अपने व्यक्तित्व की प्रतिष्ठापना करने का प्रयास करते हैं, जिनमें वे अपनी दुर्बलता अनुभव करते हैं। लड़कियां यह दिखाने का प्रयास करती हैं कि वे प्रफुल्लचित्त हैं। भीरू और शर्मीले बालक हेकड़ी और अकड़ की मुद्रा अपनाते हैं तथा अपनी स्फूर्ति और इच्छा-शक्ति का प्रदर्शन करने का प्रयत्न करते हैं। परंतु जब स्थिति उनसे साहसपूर्ण संकल्प की अपेक्षा करती है, तो उनका तुरंत दम सूख जाता है। अगर कोई उनका विश्वास पाने में सफल हो जाए और वे यह अनुभव करने लगें कि मिलनेवाले की उनसे सहानुभूति है और वह उनका समर्थन कर रहा है, तो वे ‘मैं किसी की परवाह नहींं करता’ का मुखौटा उतार फैकते हैं और उनका कोमल तथा संवेदनशील चित्त, अपने से हद से ज़्यादा कठोर अपेक्षाएं करने की उनकी भावना, आत्म-भर्त्सना तथा आत्म-ताडऩा से परिपूर्ण उनका जीवन, सब कुछ प्रकट हो जाता है। अप्रत्याशित रुचि तथा सद्भावना हेकड़ी और अक्खड़पन को सहसा अविरल अश्रुधारा में बदल सकती है।
Pt.P.S.Tripathi
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संवेदनशील चरित्र की विशेषताएं हैं भीरूता, मन की बात मन में रखना, शर्मीलापन। संवेदनशील किशोर अधिक, खास तौर पर नये संगी-साथियों से कतराते हैं, हमउम्रों की शरारतों के ऐसे साहसिक कार्यों में भाग नहींं लेते, जिनमें जोखिम उठाना पड़ता है, वे छोटे बच्चों के साथ खेलना पसंद करते हैं। वे परीक्षाओं से डरते हैं, बहुधा कक्षा में उत्तर देने से इसलिए डरते हैं कि कहीं उनसे गलती न हो जाए अथवा अपने उत्तर बहुत बढय़िा होने से वे अपने सहपाठियों की ईर्ष्या का पात्र न बन जाएं। किशोरों में अपनी त्रुटियों पर काबू पाने की सशक्त कामना का विशेष कारण होता है। वे उन क्षेत्रों में नहींं, जिनमें वे अपनी योग्यता प्रदर्शित कर सकते हैं, अपितु उन क्षेत्रों में अपने व्यक्तित्व की प्रतिष्ठापना करने का प्रयास करते हैं, जिनमें वे अपनी दुर्बलता अनुभव करते हैं। लड़कियां यह दिखाने का प्रयास करती हैं कि वे प्रफुल्लचित्त हैं। भीरू और शर्मीले बालक हेकड़ी और अकड़ की मुद्रा अपनाते हैं तथा अपनी स्फूर्ति और इच्छा-शक्ति का प्रदर्शन करने का प्रयत्न करते हैं। परंतु जब स्थिति उनसे साहसपूर्ण संकल्प की अपेक्षा करती है, तो उनका तुरंत दम सूख जाता है। अगर कोई उनका विश्वास पाने में सफल हो जाए और वे यह अनुभव करने लगें कि मिलनेवाले की उनसे सहानुभूति है और वह उनका समर्थन कर रहा है, तो वे ‘मैं किसी की परवाह नहींं करता’ का मुखौटा उतार फैकते हैं और उनका कोमल तथा संवेदनशील चित्त, अपने से हद से ज़्यादा कठोर अपेक्षाएं करने की उनकी भावना, आत्म-भर्त्सना तथा आत्म-ताडऩा से परिपूर्ण उनका जीवन, सब कुछ प्रकट हो जाता है। अप्रत्याशित रुचि तथा सद्भावना हेकड़ी और अक्खड़पन को सहसा अविरल अश्रुधारा में बदल सकती है।
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