एक मित्र को विदेष में सरकार से कुछ समस्या हो गई। वहां का सरकारी कर्मचारी उनके पक्ष में हो जाए उनके लिए दिल्ली में बगुलामुखी अनुश्ठान करवाया। जैसे ही अनुश्ठान पूर्ण हुआ, वह कर्मचारी मित्र के पक्ष में बोलने लगा और कुछ ही दिनों में समस्या पूर्ण रूप से हल हो गई। एक और मित्र के रिष्तेदार को गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो गई, उनके लिए महामृत्युंजय अनुश्ठान कराया और उनका असाध्य रोग छूमंतर हो गया। इस प्रकार की अनेक घटनाएं हैं जबकि अनुश्ठान का फल आश्चर्यजनक रूप में प्राप्त हुआ है। भारतीय वेद शास्त्रों में अनेक प्रकार के अनुष्ठान आदि बताए गए हैं, किसी को अपनी ओर आकर्शित करने से लेकर उसे स्तंभित करने या उसे अपने पक्ष में कर लेने तक। सभी मंत्र-तंत्र-यंत्र में षट्कर्मों की साधना बताई गई है।
यथा-
1.शांति कर्म- मंगल प्रदायक, कल्याणकारी कोई भी कार्य जैसे - शरीर व मन के रोगों की शांति, क्लेश की शांति, उपद्रवों की समाप्ति, ग्रह-बाधा के कुप्रभावों की समाप्ति, आपत्ति व कष्ट निवारण, पाप विमोचन, ऋद्धि, सिद्धि या सुख-शांति के उपाय व दरिद्रता निवारण इत्यादि की साधना को शांति कर्म कहते हैं।
2.मोहन,आकर्षण,वाशिकर्ण- किसी को अपनी तरफ मोहित कर लेना मोहन कर्म है। किसी को आकृष्ट कर अनुकूल बनाकर अपना काम करवा लेना आकर्षण कहा गया है। किसी को शुभ या अशुभ कार्य करने के लिए प्रयोजन पूर्वक वशीभूत कर देना वशीकरण है।
3.स्तंभन कर्म-किसी की चाल-ढाल को बंद कर देना। सजीव या निर्जीव को जहां का तहां रोक देना, बंधन में डाल देना, निष्क्रिय या स्थिर कर देना, शत्रु के अस्त्र-शस्त्र को रोक देना, अग्नि के तेज को रोक देना, विरोधी की जीभ, मुख आदि को रोक देना इत्यादि स्तम्भन कर्म कहलाता है।
4.उच्चाटन कर्म- किसी के मन में शंका पैदा कर भयभीत या भ्रमित बनाकर भगा देना या स्थानांतरित कर देना उच्चाटन होता है। साध्य व्यक्ति मारा-मारा फिरता है। पागल की तरह हो जाता है। घर-स्थान छोड़कर भाग जाता है।
5.विद्वेषण कर्म-किसी व्यक्ति को किसी व्यक्ति से अलग करना, किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच कलह-क्लेश उत्पन्न करवाकर एक दूसरे का शत्रु बना देना विद्वेषण कर्म कहलाता है।
6.मारण कर्म- किसी का प्राण हरण कर उसका जीवन समाप्त कर देना या करवा देना। मरण तुल्य कष्ट देना मारण कर्म कहलाता है।
प्रथम तिन कर्म समान्यत: अपने कष्ट निवारण हेतु किए जाते हैं। इनमें दूसरे के प्रति कोई विद्वेषण की भावना नहीं होती। लेकिन आखिरी तीन कर्म विद्वेषण की भावना से ही किए जाते हैं अतः उनका प्रयोग सर्वदा वर्जित ही है। उपरोक्त सभी साधनाएं अनुष्ठान रूप में किसी ब्राह्मण द्वारा कराई जानी चाहिए। इन प्रयोगों में आवष्यक है कि अनुश्ठान करने वाला ब्राह्मण सदाचारी रहे। जातक के प्रति उसकी सद्भावना हो। सभी साधनाएं निश्चित मात्रा में (प्रायः सवा लाख) मंत्र जप द्वारा उनके यंत्रों को प्रतिष्ठित कर की जाती है। तदुपरांत हवन, मार्जन व तर्पण कर अनुष्ठान पूर्ण किया जाता है। प्रतिष्ठित यंत्र को कार्य पूर्ण होने तक विशेष स्थान पर स्थापित किया जाता है। कार्य सिद्ध होने के बाद यंत्र को विसर्जित कर दिया जाता है।
विभिन्न कार्यों के लिए कौन सा मन्त्र एवं यंत्र उपयोग में लाना चाहिए
कार्य का आरम्भ करने हेतु- ऊँ गं गणपतये नमः।। यंत्र - गणेश यंत्र
सम्पूर्ण विद्याओं की प्राप्ति हेतु- विद्याः समस्तास्तव देवि ! भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।। यंत्र - सरस्वती यंत्र
रोग नाश के लिए महामृत्युंजय मन्त्र: सर्वबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।। यंत्र - बाधामुक्ति यंत्र ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। यंत्र - महामृत्युंजय यंत्र ऊँ
आराध्य रोग नाश हेतु -हौं जूं सः ऊँ भूर्भुवः स्वः ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयम्बकं यजामहे भर्गो देवस्य धीमहि सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। धियो यो नः प्रचोदयात् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। ऊँ स्वः भुवः भूः ऊँ सः जूं हौं ऊँ।। यंत्र - महामृत्युंजय यंत्र
पाप नाश/पितरों की शांति हेतु गायत्री मन्त्र - ऊँ भूर्भवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।। यंत्र - गायत्री यंत्र
बंगलामुखी मन्त्र- ऊँ हिम् बगुलामुखी सर्वदुष्टानां वाचम् मुखं पदम् स्तम्भय जीह्नाम् कीलय बुद्धिम् विनाशय हिम् ऊँ स्वाहा। यंत्र - बगलामुखी यंत्र
विशेष कष्ट निवारण हेतु दुर्गा मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं दुं उत्तिष्ठ पुरुषि किं स्वपिशि भयं मे समुपस्थितम्। यदि शक्यं अशक्यं वा तन्ये भगवति शमय स्वाहा।। यंत्र - वन दुर्गा यंत्र
रक्षा पाने के लिए: शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टा स्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च।। यंत्र - राम रक्षा यंत्र
समस्या निदान हेतु- शरणागतदीनार्तंपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि, नारायणि नमोस्तु ते।। यंत्र - दुर्गा बीसा यंत्र
भय निवारण हेतु -सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि ! दुर्गे देवि नमोस्तु ते।। यंत्र - काली यंत्र
बटुक भैरव मन्त्र: ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं। यंत्र - बटुक भैरव यंत्र
आकर्षण के लिए- ऊँ क्लीं ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।। यंत्र - आकर्षण यंत्र
वशीकरण के लिए- महामाया हरेश्चैषा तया सम्मोह्यते जगत्। ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।। यंत्र - वशीकरण यंत्र
कालसर्प शांति हेतु- ऊँ क्रौं नमो अस्तु सर्पेभ्यो कालसर्प शांति कुरु-कुरु स्वाहा। यंत्र - कालसर्प यंत्र
शनि दोष निवारण हेतु- नीला जन समाभासं रविपुत्रां यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।। यंत्र - शनि यंत्र
धन प्राप्ति के लिए- श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।। यंत्र - श्रीयंत्र:
वर प्राप्ति के लिए- कात्यायनि महाभाये महायोगिन्य धीश्वरि! नन्दगोपसुतं देवं पतिं मे कुरु ते नमः।। यंत्र - कात्यायनि यंत्र
मनोवांछित पत्नी प्राप्ति हेतु- पत्नीं मनोरमां देहि, मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।। यंत्र - मातंगी यंत्र
पुत्र प्राप्ति हेतु- ऊँ देवकीसुतगोविंद वासुदेवजगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। यंत्र - संतान गोपाल यंत्र
हनुमान यंत्र- ततो निशुम्भः सम्प्राप्य चेतनामात्तकार्मुकः। आजघान शरैर्देवीं कालीं केसरिणं तथा।। यंत्र - हनुमान यंत्र, काली यंत्र विद्वान का परामर्श लेकर मंत्र चयन कर विधिवत रूप से अनुष्ठान करवाना चाहिए। निष्ठापूर्वक कर्म करने पर फल अवश्य प्राप्त होगा।
यथा-
1.शांति कर्म- मंगल प्रदायक, कल्याणकारी कोई भी कार्य जैसे - शरीर व मन के रोगों की शांति, क्लेश की शांति, उपद्रवों की समाप्ति, ग्रह-बाधा के कुप्रभावों की समाप्ति, आपत्ति व कष्ट निवारण, पाप विमोचन, ऋद्धि, सिद्धि या सुख-शांति के उपाय व दरिद्रता निवारण इत्यादि की साधना को शांति कर्म कहते हैं।
2.मोहन,आकर्षण,वाशिकर्ण- किसी को अपनी तरफ मोहित कर लेना मोहन कर्म है। किसी को आकृष्ट कर अनुकूल बनाकर अपना काम करवा लेना आकर्षण कहा गया है। किसी को शुभ या अशुभ कार्य करने के लिए प्रयोजन पूर्वक वशीभूत कर देना वशीकरण है।
3.स्तंभन कर्म-किसी की चाल-ढाल को बंद कर देना। सजीव या निर्जीव को जहां का तहां रोक देना, बंधन में डाल देना, निष्क्रिय या स्थिर कर देना, शत्रु के अस्त्र-शस्त्र को रोक देना, अग्नि के तेज को रोक देना, विरोधी की जीभ, मुख आदि को रोक देना इत्यादि स्तम्भन कर्म कहलाता है।
4.उच्चाटन कर्म- किसी के मन में शंका पैदा कर भयभीत या भ्रमित बनाकर भगा देना या स्थानांतरित कर देना उच्चाटन होता है। साध्य व्यक्ति मारा-मारा फिरता है। पागल की तरह हो जाता है। घर-स्थान छोड़कर भाग जाता है।
5.विद्वेषण कर्म-किसी व्यक्ति को किसी व्यक्ति से अलग करना, किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच कलह-क्लेश उत्पन्न करवाकर एक दूसरे का शत्रु बना देना विद्वेषण कर्म कहलाता है।
6.मारण कर्म- किसी का प्राण हरण कर उसका जीवन समाप्त कर देना या करवा देना। मरण तुल्य कष्ट देना मारण कर्म कहलाता है।
प्रथम तिन कर्म समान्यत: अपने कष्ट निवारण हेतु किए जाते हैं। इनमें दूसरे के प्रति कोई विद्वेषण की भावना नहीं होती। लेकिन आखिरी तीन कर्म विद्वेषण की भावना से ही किए जाते हैं अतः उनका प्रयोग सर्वदा वर्जित ही है। उपरोक्त सभी साधनाएं अनुष्ठान रूप में किसी ब्राह्मण द्वारा कराई जानी चाहिए। इन प्रयोगों में आवष्यक है कि अनुश्ठान करने वाला ब्राह्मण सदाचारी रहे। जातक के प्रति उसकी सद्भावना हो। सभी साधनाएं निश्चित मात्रा में (प्रायः सवा लाख) मंत्र जप द्वारा उनके यंत्रों को प्रतिष्ठित कर की जाती है। तदुपरांत हवन, मार्जन व तर्पण कर अनुष्ठान पूर्ण किया जाता है। प्रतिष्ठित यंत्र को कार्य पूर्ण होने तक विशेष स्थान पर स्थापित किया जाता है। कार्य सिद्ध होने के बाद यंत्र को विसर्जित कर दिया जाता है।
विभिन्न कार्यों के लिए कौन सा मन्त्र एवं यंत्र उपयोग में लाना चाहिए
कार्य का आरम्भ करने हेतु- ऊँ गं गणपतये नमः।। यंत्र - गणेश यंत्र
सम्पूर्ण विद्याओं की प्राप्ति हेतु- विद्याः समस्तास्तव देवि ! भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।। यंत्र - सरस्वती यंत्र
रोग नाश के लिए महामृत्युंजय मन्त्र: सर्वबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।। यंत्र - बाधामुक्ति यंत्र ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। यंत्र - महामृत्युंजय यंत्र ऊँ
आराध्य रोग नाश हेतु -हौं जूं सः ऊँ भूर्भुवः स्वः ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयम्बकं यजामहे भर्गो देवस्य धीमहि सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। धियो यो नः प्रचोदयात् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।। ऊँ स्वः भुवः भूः ऊँ सः जूं हौं ऊँ।। यंत्र - महामृत्युंजय यंत्र
पाप नाश/पितरों की शांति हेतु गायत्री मन्त्र - ऊँ भूर्भवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।। यंत्र - गायत्री यंत्र
बंगलामुखी मन्त्र- ऊँ हिम् बगुलामुखी सर्वदुष्टानां वाचम् मुखं पदम् स्तम्भय जीह्नाम् कीलय बुद्धिम् विनाशय हिम् ऊँ स्वाहा। यंत्र - बगलामुखी यंत्र
विशेष कष्ट निवारण हेतु दुर्गा मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं दुं उत्तिष्ठ पुरुषि किं स्वपिशि भयं मे समुपस्थितम्। यदि शक्यं अशक्यं वा तन्ये भगवति शमय स्वाहा।। यंत्र - वन दुर्गा यंत्र
रक्षा पाने के लिए: शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टा स्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च।। यंत्र - राम रक्षा यंत्र
समस्या निदान हेतु- शरणागतदीनार्तंपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि, नारायणि नमोस्तु ते।। यंत्र - दुर्गा बीसा यंत्र
भय निवारण हेतु -सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि ! दुर्गे देवि नमोस्तु ते।। यंत्र - काली यंत्र
बटुक भैरव मन्त्र: ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं। यंत्र - बटुक भैरव यंत्र
आकर्षण के लिए- ऊँ क्लीं ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।। यंत्र - आकर्षण यंत्र
वशीकरण के लिए- महामाया हरेश्चैषा तया सम्मोह्यते जगत्। ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।। यंत्र - वशीकरण यंत्र
कालसर्प शांति हेतु- ऊँ क्रौं नमो अस्तु सर्पेभ्यो कालसर्प शांति कुरु-कुरु स्वाहा। यंत्र - कालसर्प यंत्र
शनि दोष निवारण हेतु- नीला जन समाभासं रविपुत्रां यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।। यंत्र - शनि यंत्र
धन प्राप्ति के लिए- श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।। यंत्र - श्रीयंत्र:
वर प्राप्ति के लिए- कात्यायनि महाभाये महायोगिन्य धीश्वरि! नन्दगोपसुतं देवं पतिं मे कुरु ते नमः।। यंत्र - कात्यायनि यंत्र
मनोवांछित पत्नी प्राप्ति हेतु- पत्नीं मनोरमां देहि, मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।। यंत्र - मातंगी यंत्र
पुत्र प्राप्ति हेतु- ऊँ देवकीसुतगोविंद वासुदेवजगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। यंत्र - संतान गोपाल यंत्र
हनुमान यंत्र- ततो निशुम्भः सम्प्राप्य चेतनामात्तकार्मुकः। आजघान शरैर्देवीं कालीं केसरिणं तथा।। यंत्र - हनुमान यंत्र, काली यंत्र विद्वान का परामर्श लेकर मंत्र चयन कर विधिवत रूप से अनुष्ठान करवाना चाहिए। निष्ठापूर्वक कर्म करने पर फल अवश्य प्राप्त होगा।
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