बुधवार व्रत: व्रत बुध ग्रह को प्रसन्न करने वाला महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत का पालन किसी भी बुधवार से किया जा सकता है। यह व्रत व्यापारियों को व्यापार में वृद्धि व लाभ प्रदाता, विद्यार्थियों को ज्ञान, बुद्धि व वाक्द्गाक्ति देने वाला, ग्रहस्थी महिलाओं को गृह कार्य में दक्षता प्रदान करने वाला, सेवाकार्य में स्थित देवियों को कार्य कुद्गालता का प्रतीक, वृद्धों को मनः स्थिति में संयम को देने वाला एवं जगत् के मानरूप में जन्मे प्रत्येक जीव को विवेक से संपन्न बनाने वाला है। मनुष्य के पास सबकुछ है, परंतु बुध की कृपा दृष्टि नहीं है, तो समझिए कुछ भी नहीं है। जीवन में बुध के द्वारा प्राप्त विवेक के द्वारा अंधा व्यक्ति मार्ग चलने में समर्थ, धनाढ्य व्यक्ति धन का सही प्रयोग करने में चतुर और बड़े-बड़े संकटों से भी पार जाने का मार्ग हर व्यक्ति को बुध की कृपा से ही प्राप्त होता है। भगवान् नारायण ने स्वयं ही जीवन मात्र पर कृपा करने के लिए नवग्रहों के स्वरूप बुध देवता को ''बुध'' अवतार के रूप में प्रकट होकर सर्वशक्तिमान स्वरूप प्रदान किया है। बुध की कृपा जिसे प्राप्त हो जाए, वह ऊंचाईयों की ओर निरंतर बढ़ता चला जाता है और जिस पर बुध क्रोधित हो जाए वह निश्चय ही पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। बुध की कृपा से विवेक (ज्ञान) जाग्रत होता है तथा विवेक के आने पर वाणी व कार्य की कुशलता समृद्ध होती है और यही कुशलता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभकारी व उन्नति प्रदायक बनकर मानव का कल्याण करती है। उसके जीवन में बुध की प्रसन्नता के कारण ही असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योमाऽमृतं गमय का श्री गणेश होकर पूर्णत्व आता है। अभाव, दैन्यता, रिक्तता, अपूर्णता का नष्ट होना व भाव व पूर्णता को प्राप्त कराना यह बुध की सेवा से ही संभव है। संपूर्ण शरीर क्रिया शक्ति से युक्त हो परंतु मस्तक ज्ञान शून्य हो तो सारे कार्य निष्फल हो जाते हैं इसके विपरीत मस्तक ज्ञान (चेतना) से युक्त हो व शरीर क्रिया शक्ति शून्य हो तो भी मानव बैठे-बैठे दिमाग की चेतना से कठिन से कठिन कार्यों को भी सिद्ध कर लेता है एवं केवल मात्र दिशा निर्देश के द्वारा ही प्रगति पथ पर अग्रसर होता हुआ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी पुरुषार्थों को भी सहज में प्राप्त कर जीवन को कृतार्थ कर लेता है। बुध ही ज्योतिष, गणित (हिसाब), नाच, वैद्य (डाक्टरी) हास्य (हंसी मजाक), लक्ष्मी, शिल्पकला, विद्या, बौद्धिक कार्य (लेखन, अध्यापक, कवित्व, चित्रकला आदि), संगीत, संपादक, वकील, पत्रकार, संवाददाता, न्याय संबंधी कार्य, औषधि, व्यावसायिक विभाग, सुगंधित द्रव्य, वस्त्र, दाल, अन्न, पक्षी, पन्ना, भूमि, नाटक, विज्ञान, धातु क्रिया (रसायनज्ञ), पूण्यव्रत (पुरोहित, पादरी), दूत, माया (ठग), असत्य कार्य, सेतु (पुल) जलमार्ग (जहाज नौकादि), जल संबंधी कार्य, यंत्र कार्य, प्रसाधन कर्ता (नाई, ब्यूटीसैलून स्वामी), जादूगर, रक्षाधिकारी, नट, घी, तेल, परिवहन, द्रव्य, खच्चर आदि का कारक ग्रह है। ज्योतिष में बुध चतुर्थ भाव व दशम भाव का कारक है। जूआ खेलना, युद्ध करना, कन्या के विवाहादि का निश्चय करना, शत्रु एवं रुठे हुए मित्रों से संधि करना आदि ऐसे अनेक कार्य बुधवार को शुभ होते हैं। बुध ग्रह बलवान होगा तो निश्चय ही उस व्यक्ति का पथ (मार्ग) सुख से युक्त व आनंद प्रदान करने वाला होगा। बुध को बलवान बनाने के लिए बुध मंत्र के जप, यज्ञ, कवच, बुध पंचविंशति नाम स्तोत्र का पाठ व बुध की वस्तुओं का दान तथा पन्नादि रत्नों का धारण करना लाभकारी रहेगा। बुध ग्रह की शांति व बल प्रदान करने के लिए मां दुर्गा की उपासना, मॉ सरस्वती की आराधना, गणेश पूजन, हनुमत उपासना, विष्णु पूजन एवं भगवान् श्रीकृष्ण का अभिषेक भी अद्भुत सफलता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। लौकिक परंपरा में तो बुध के दिन बहिन की विदाई भी नहीं करनी चाहिए। जब भी बुधवार का व्रत प्रारंभ करना हो तो दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर संकल्प के सहित बुध ग्रह व बुध भगवान् का गणेश गौरी नवग्रहादि ग्रहों सहित पूजन करना मंगलकारी है। इस संबंध में निम्न कथाओं का व विष्णु पुराण तथा श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ भी अवश्य ही करना चाहिए। सत्य भाषण व मौन रहें। आवश्यकता के समय ही समयानुकूल वार्तालाप करें तो हितकर होगा। षोऽशोपचार पूजन करें व बुध की या क्क जय जगदीश हरे की आरती करें। बुध का व्रत व उपासना-बुध की अशुभ दशाओं, अंतर्दशाओं, प्रत्यंतर दशाओं एवं बुध के वक्री, नीच, अस्त व मृतादि अवस्थाओं में भी अधिक लाभकारी है। बुध को मनाने वला बुद्धिमान बनता है व विजय श्री उसके कदम चूमती रहती है। बुध के व्रत में एक बार ही हरी वस्तुओं से निर्मित मीठा भोजन क रना चाहिए। हरे वस्त्र धारण करें व हरी वस्तुओं का दान भी यथायोग्य अवश्य करें। बुध जन्म की कथा : बुध एक सौम्य ग्रह है। सूर्य, चंद्र, मंगल एवं अन्य ग्रहों की भांति बुध के विषयों में भी अनेक पौराणिक आखयान प्राप्त होते हैं। बुध की उत्पत्ति के संबंध में एक रोचक कथा प्राप्त होती है। कहा जाता है कि अत्रि पुत्र चंद्रमा देव गुरु बृहस्पति का शिष्य था। विद्या अध्ययन की समाप्ति के पश्चात् जब उसने गुरु को दक्षिणा देनी चाहिए तो उन्होंने उससे कहा कि वह उस दक्षिणा को उनकी पत्नी तारा को दे आए। चंद्रमा जब गुरु पत्नी को अपनी दक्षिणा देने गया तो उसके रूप में आसक्त हो गया और उसे साथ ले जाने का हठ करने लगा। गुरु पत्नी ने उसे बहुत समझाया पर वह न माना। जब बृहस्पति को यह बात मालूम हुई तो उसे शिष्य जान उन्होंने बहुत समझाया पर चंद्रमा ने फिर भी दुराग्रह न छोड़ा। अंततः वह युद्ध के लिए तत्पर हुआ। बृहस्पति ने भी शस्त्र संभाले लेकिन युद्ध में वह अपने शिष्य चंद्रमा से परास्त हो गये। अब देवताओं ने चंद्रमा को समझाया लेकिन वह अपने हठ पर अड़ा रहा। जब शिवजी को चंद्रमा का यह अनाचार पता चला तो वे क्रोधित हो उठे और चंद्रमा को दंड देने चल पड़े। चंद्रमा फिर भी नहीं माना। उसने नक्षत्रों, दैत्यों, असुरों के साथ-साथ शनैश्चर और मंगल के सहयोग से शिव से युद्ध करने का निर्णय किया। अब घोर युद्ध शुरु हो गया। तीनों लोक भयभीत हो उठे। अंततः ब्रह्मा ने हस्तक्षेप का निर्णय किया। इस बार चंद्रमा झुक गया और उसने गुरु पत्नी तारा को लौटा दिया। एक वर्ष बाद तारा ने एक कांतिवान पुत्र को जन्म दिया। उसका पिता चंद्रमा ही था। चंद्रमा ने उस पुत्र को ग्रहण कर लिया और उसका नाम बुध रखा। बुध के विषय में और भी अनेक आखयान प्राप्त होते है। विदेशी पौराणिक आखयानों में भी बुध के संबंध में अनेक कथाएं प्राप्त होती हैं। यूरोपीय जन इसे 'मरकरी' के नाम से जानते हैं। बुधवार व्रत कथा : एक समय एक व्यक्ति अपनी पत्नी को विदा करवाने के लिए अपनी ससुराल गया। वहां पर कुछ दिन रहने के पश्चात् सास-ससुर से विदा करने के लिए कहा। किंतु सब ने कहा कि आज बुधवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करते हैं। वह व्यक्ति किसी प्रकार न माना और हठधर्मी करके बुधवार के दिन ही पत्नी को विदा कराकर अपने नगर को चल पड़ा। राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत जोर से प्यास लगी हो तब वह व्यक्ति लोटा लेकर रथ से उतरकर जल लेने चला गया। जैसे ही वह व्यक्ति पानी लेकर अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्य से चकित रह गया कि ठीक अपनी ही जैसी सूरत तथा वैसी ही वेश-भूषा में एक व्यक्ति उसकी पत्नी के साथ रथ में बैठा हुआ है। उसने क्रोध से कहा कि तू कौन है जो मेरी पत्नी के निकट बैठा हुआ है। दूसरा व्यक्ति बोला यह मेरी पत्नी है। मैं अभी-अभी ससुराल से विदा कराकर ला रहा हूं। वे दोनों व्यक्ति परस्पर झगड़ने लगे। तभी राज्य के सिपाही आकर लौटे वाले व्यक्ति को पकड़ने लगे। स्त्री से पूछा, तुम्हारा असली पति कौन-सा है? तब पत्नी शांत ही रही, क्योंकि दोनों एक जैसे थे, वह किसे अपना असली पति कहे। वह व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला-हे परमेश्वर, यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है। तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख आज बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था। तूने किसी की बात नहीं मानी। यह सब लीला बुधदेव भगवान् की है। उस व्यक्ति ने बुधदेव से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। तब बुधदेव जी प्रसन्न हो आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। वह अपनी स्त्री को लेकर घर आया तथा बुधवार का व्रत वे दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक करने लगे। जो व्यक्ति इस कथा को श्रवण करता तथा सुनता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता, उसको सर्व प्रकार से सुखों की प्राप्ति होती है। दान की वस्तुएं : स्वर्ण, कान्स्य, स्टेशनरी का सामान, हरे वस्त्र, हरी सब्जियां, मूंग, तोता, घी, हरे रंग का पत्थर, पन्ना, केला व हरी वस्तुएं। बुध मंत्र : ¬ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः। ¬ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जाग्रहि। त्वमिष्टापूर्ते सूं सृजेथामय च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युन्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्चय सदित। चंद्र पुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्। सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्। ¬ बुधाय नमः। ¬ नमो नारायणाम। ¬ चंद्र पुत्राय नमः। ¬ विश्व रूपाय नमः।
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