Thursday, 18 February 2016

बाधक दोष

’’बाधक’’ क्या है ? किसी कार्य में बाधा या रुकावट उत्पन्न करने वाला ग्रह ’’बाधक’’ कहलाता है। जन्म कुंडली के अध्ययन के समय यदि कोई ग्रह देखने में तो योगकारी, और लाभकारी प्रतीत होता है, परंतु वास्तव में जातक के जीवन में वह ग्रह अनिष्ट कर रहा होता है, तब ऐसे ग्रह की अवस्था ’’बाधक’’ कहलाती है और यह दोष ’’बाधक दोष’’ कहलाता है। जन्मलग्न में यदि चर स्वभाव की राशि (मेष, कर्क, तुला, या मकर) हो तो एकादश भाव को बाधक भाव कहते हैं और एकादशेश व एकादश भाव में स्थित ग्रहों को बाधक ग्रह कहते हैं। इसी प्रकार से जन्मलग्न में स्थिर स्वभाव की राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक या कंुभ) हो तो नवम स्थान, उसका स्वामी और उसमें स्थित ग्रह और जन्मलग्न में द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु या मीन) हो तो सप्तम स्थान, उसके स्वामी ग्रह और उसमें स्थित ग्रह बाधाकारी होते हैं। बाधक ग्रह अपनी दशा-अंतर्दशा में रोग, शोक, हानि, अपयश और दुःख देते हैं। इनकी दशा में विदेश भी जाना पड़ता है यानि परिवार से वियोग होता है। कुछ ज्योतिष विद्व ानों का एक विचार यह भी है कि बाधक ग्रह का दोष तब प्रकट होता है, जब वह षष्ठेश से युक्त हो। ऐसी अवस्था में जातक शत्रुओं के द्वारा आर्थिक, दैहिक, सामाजिक रूप से कष्ट भोगता है। क्या आप बाधक दोष से ग्रस्त हैं ? डाॅ. संजय बुद्धिराजा, फरीदाबाद बाधक दोष जन्म कुंडली में केवल जन्मलग्न के लिए ही नहीं होता है, बल्कि यह प्रत्येक भाव के लिए होता है। जैसे, मेष लग्न की कुंडली में लग्न में चर स्वभाव की मेषराशि के लिए बाधक स्थान एकादश भाव होता है। उसी प्रकार से इसी मेष लग्न की कुंडली में द्वि तीय भाव (यहां स्थिर स्वभाव की वृष राशि है) के लिए बाधक स्थान द्वितीय से नवम स्थान होगा यानि दशम भाव होगा और तृतीय भाव (यहां द्विस्वभाव की मिथुन राशि है) के बाधक स्थान तृतीय से सप्तम स्थान होता है यानि नवम भाव होता है। भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में बाधक दोष का विस्तृत वर्णन नहीं है, इसलिए यह एक शोध का विषय है। अब प्रश्न उठता है कि बाधक स्थान के स्वामी के लिए कुंडली में कौन सा स्थान उपयुक्त होता है ? जैसा कि हम जानते हैं कि कुंडली में केंद्र और त्रिकोण भाव शुभ स्थान हैं, मगर 3-6-8-12 भाव अशुभ स्थान हैं। इस कारण केंद्र और त्रिकोण के स्वामी की बलवान अवस्था और 3-6-8-12 भाव के स्वामी की निर्बल अवस्था अच्छी कही जाती है। अतः बाधक स्थान के स्वामी की अपने भाव से केंद्र या त्रिकोण स्थान में स्थिति उसे बलवान करेगी और ऐसी अवस्था में उसका बाधक दोष बढ़ जाएगा, किंतु अपने भाव से 3-6-8-12 भाव में स्थिति में वह कमजोर होकर बाधक दोष से मुक्त होगा और जातक अपने सुकर्मों से बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है।

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