मानव का मस्तिष्क कम्प्यूटर के सी.पी.यू. की तरह कार्य करता है जिसे शरीर के सभी अंग अपने-अपने संदेश भेजते रहते हैं और मस्तिष्क उन्हें कार्य के निर्देश देता रहता है। जब भी शरीर के किसी भाग में दर्द होता है, तो हाथ अपने आप उस अंग को दबाने लगते हैं। यही एक्युप्रेशर है। एक्युप्रेशर की यह चिकित्सा पद्धति संसार की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है। भारत में लगभग 6 हजार वर्ष पूर्व इसका उद्भव हुआ, आयुर्वेद में इसके उल्लेख मिलते हंै। इसे मर्म चिकित्सा के नाम से भी जाना जाता है। चीन में एक्युप्रेशर तथा एक्युपंक्चर पद्धति पांच हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है। भारत में कान, नाक आदि का छेदन एक्युपंक्चर का ही उदाहरण है। हमारे पूर्वजों ने इसे धर्म से जोड़कर आम मनुष्य के जीवन में उतार दिया। कान छेदन अनिद्रा एवं याददाश्त को ठीक रखता है। चूडि़यां पहनने से मूत्राशय और प्रोस्टेट की बीमारी नहीं होती। पायजेब पहनने से कमर और गर्दन के दर्द से आराम मिलता है बिछुए से नाक तथा गले के रोग दूर होते हैं। सिर पर बोर पहनने से मासिक धर्म के विकार दूर होते हैं। पुरुषों में जनेऊ मूत्र संबंधी रोगों को दूर करता है। कमर में धागे से हरनिया से बचा जा सकता है। कलाई में धागा या कड़ा पहनने से रक्तचाप सामान्य होता है। एक्युप्रेशर कैसे काम करता है, इसे समझने के लिए पानी के पाइप का एक उदाहरण लेते हैं, जिसमें कुछ अवरोध हो। पाइप को यदि दबा दिया जाए, तो पानी जोर से चलने लगेगा। पाइप को छोड़ देने पर उसमें फंसा हुआ अवरोध झटके से बाहर निकल जाएगा और पानी का प्रवाह ठीक हो जाएगा। इसी प्रकार मनुष्य के शरीर में रक्त वाहिकाओं व नसों के अवरोध एक्युप्रेशर प्रक्रिया से खुल जाते हैं और रोगी के कष्ट दूर हो जाते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों के प्रतिबिंब केंद्र शरीर के कई भागों पर
होते हैं। उपचार के लिए पहले यह मालूम करना होता है कि शरीर के किस हिस्से व अंग में रोग है। जिस अंग में रोग हो उससे संबंधित प्रतिबिंब केंद्र पर दबाव देकर रोग दूर किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से पैर और हाथ की रिफ्लेक्सोलोजी अधिक प्रभावशाली व सुविधाजनक है। रक्त वाहिकाओं तथा स्नायु-संस्थानों के आखिरी छोर हाथों व पैरों में होते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों से संबंधित नाडि़यां हाथों व पैरों में स्थित हैं। यहां अंकित चित्र से यह सहज ही पता चल जाएगा कि कौन सा अंग हाथ व पांव में कहां स्थित है। एक्युप्रेशर के लिए आवश्यकतानुसार अनेक उपकरण उपलब्ध हैं जैसे पैरों के लिए मैट, बैठने के लिए सीट, गर्दन व कमर के लिए रोलर या मसाजर, उंगलियों के लिए रिंग आदि। लेकिन इन सभी उपकरणों से हम बिना किसी नियंत्रण के पूरे क्षेत्र पर दबाव डालते हैं। इनका विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि जहां जरूरी हो वहीं दबाव डाला जाए। इसके लिए जिम्मी का उपयोग बेहतरीन माना गया है। इस पत्रिका के साथ भी एक जिम्मी संलग्न है। जिम्मी द्वारा तलवों व हथेलियों पर उक्त दबाव डाला जा सकता है। इसके आगे के नुकीले पाॅइंट से बिंदु विशेष पर दबाव डालकर उससे संबद्ध रोग से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। हथेलियों में चलाकर उनके सभी बिंदुओं पर दबाव डालने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिल सकती है।
होते हैं। उपचार के लिए पहले यह मालूम करना होता है कि शरीर के किस हिस्से व अंग में रोग है। जिस अंग में रोग हो उससे संबंधित प्रतिबिंब केंद्र पर दबाव देकर रोग दूर किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से पैर और हाथ की रिफ्लेक्सोलोजी अधिक प्रभावशाली व सुविधाजनक है। रक्त वाहिकाओं तथा स्नायु-संस्थानों के आखिरी छोर हाथों व पैरों में होते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों से संबंधित नाडि़यां हाथों व पैरों में स्थित हैं। यहां अंकित चित्र से यह सहज ही पता चल जाएगा कि कौन सा अंग हाथ व पांव में कहां स्थित है। एक्युप्रेशर के लिए आवश्यकतानुसार अनेक उपकरण उपलब्ध हैं जैसे पैरों के लिए मैट, बैठने के लिए सीट, गर्दन व कमर के लिए रोलर या मसाजर, उंगलियों के लिए रिंग आदि। लेकिन इन सभी उपकरणों से हम बिना किसी नियंत्रण के पूरे क्षेत्र पर दबाव डालते हैं। इनका विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि जहां जरूरी हो वहीं दबाव डाला जाए। इसके लिए जिम्मी का उपयोग बेहतरीन माना गया है। इस पत्रिका के साथ भी एक जिम्मी संलग्न है। जिम्मी द्वारा तलवों व हथेलियों पर उक्त दबाव डाला जा सकता है। इसके आगे के नुकीले पाॅइंट से बिंदु विशेष पर दबाव डालकर उससे संबद्ध रोग से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। हथेलियों में चलाकर उनके सभी बिंदुओं पर दबाव डालने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिल सकती है।
No comments:
Post a Comment