हिंसा का प्रतिनिधि मंगल है, नीच एवं घृणित कार्यों का प्रतीक शनि है तथा आवेश व अप्रत्याशितता के उत्प्रेरक राहु केतु है। जब मंगल, शनि और राहु केतु की दृष्टि, युति या अन्य दृढ़ संबंध लग्न और अष्टम भाव या उनके अधिपतियों से होता है तो जातक का प्राणांत अस्वाभाविक रूप से हिंसा द्वारा अर्थात् हत्या से होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। जन्मकुंडली जन्म के समय सौर मंडल में स्थित ग्रहों के प्रभाव का चित्रांकन है। अस्तु यही ग्रह योग उस मनुष्य के जन्म मृत्यु एवं संपूर्ण जीवन चक्र को निरूपित करते हैं। जन्मकुंडली में प्रथम (लग्न) भाव जातक के शरीर का समग्र रूप से प्रतिनिधित्व करता है तो अष्टम भाव उसकी आयु का। शरीर के संवेदनशील तंत्र के ऊपर मन का अधिकार होता है जिसका प्रतिनिधित्व चंद्र करता है। हिंसा का प्रतिनिधि मंगल है, नीच एवं घृणित कार्यों का प्रतीक शनि है तथा आवेश व अप्रत्याशितता के उत्प्रेरक राहु केतु है। जब मंगल, शनि और राहु केतु की दृष्टि, युति या अन्य दृढ़ संबंध लग्न और अष्टम भाव या उनके अधिपतियों से होता है तो जातक का प्राणांत अस्वाभाविक रूप से हिंसा द्वारा अर्थात् हत्या से होने की स्थिति निर्मित हो जाती है। चूंकि ऐसी हिंसात्मक अस्वाभाविक मृत्यु (हत्या) के लिए जातक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति (हत्यारे) की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है अस्तु चतुर्थ भाव या उसके अधिपति का भी इस हेतु दूषित होना आवश्यक है द्वितीय एवं षष्टम भाव ऐसे अन्य व्यक्ति के हाथ होते हैं इसलिए इन मामलों में द्वितीय, चतुर्थ एवं षष्टम भावों या भावेशों का अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध होना भी आवश्यक है। वैसे भी षष्टम भाव शत्रु, दुर्घटना एवं हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। हिंसा के लिए राहु या केतु की मंगल पर दृष्टि, युति या अन्य संबंध होना और इनसे लग्न और अष्टम भाव या उनके अधिपतियों का दूषित होना भी आवश्यक है। अकेले मंगल या अकेले राहु केतु यह कार्य करने में असमर्थ रहते हैं। जीवन की कोई भी महत्वपूर्ण घटना में तीन बड़े ग्रह शनि, गुरु एवं मंगल की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। घटना घटित होने के लिए जातक की जीवन आयु, ग्रह स्थिति, महादशा एवं ग्रहों के गोचर की स्थितियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। हत्या की घटना के समय सामान्यतः गोचर के शनि की दृष्टि या उसका संबंध लग्न एवं अष्टम भाव या उनके अधिपतियों से रहता है।
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