महाशिवरात्रि के दिन अथवा नागपंचमी के दिन किसी सिद्ध शिव स्थल पर कालसर्प योग की शांति करा लेने का अति विशिष्ट महत्व माना जाता है। निरंतर महामृत्युंजय मंत्र के जप से, शिवोपासना से, हनुमान जी की आराधना से एवं भैरवोपासना से यह योग शिथिल पड़ जाता है। श्रावण मास में सोमवार का व्रत करते हुये भगवान शिव से कालसर्प योग के दुष्प्रभावों से बचाने के लिये प्रार्थना करने पर बहुत शांति मिलती है। महा शिवरात्रि की शुभ वेला में संपूर्ण कालसर्प दोष निवारण यंत्र की स्थापना कर, महामृत्युंजय मंत्र का विधि-विधान से पंडित के द्वारा जाप करवाना, हवन शांति कराना, स्वयं सर्पसूक्त का पाठ करना, नवनाग नाम स्तोत्र का रूद्राक्ष माला से जप करना, चांदी के बने नाग-नागिन के जोड़े को शिवजी को अर्पित करना कालसर्प दोष निवारण के सरल एवं अचूक उपाय हैं। इसी दिन किसी शिवालय में जाकर शिव चालीसा अथवा शिव सहस्रनाम स्तोत्र की पोथियां वितरित करनी चाहिए। 1- कालसर्प दोष निवारण के विभिन्न उपाय विद्वानों द्वारा परामर्शित हैं। इस दोष की शांति विधानानुसार किसी योग्य अनुभवी, निर्लोभी, विद्वान ब्राह्मण, कुलगुरु या पुरोहित से करवा लेने से दोष शांत हो जाता है। 2- भगवान गणेश केतु की पीड़ा शांत करते हैं एवं सरस्वती देवी उनका पूजन-अर्चन करने वालों की राहु के अनिष्ट से रक्षा करती हैं। 3- भैरवाष्टक का नित्य पाठ करने वाले लोगों को इस दोष से शांति मिलती है। उनके दुर्दिन समाप्त होने के लक्षण दिखलाई देने लगते हैं। 4- नित्य ऊन के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से नाग मंत्र गायत्री का जप करने से इस दोष के कष्टों से छुटकारा मिल सकता है बशर्ते सतत् 108 दिन जप करने का संकल्प लेकर प्रयास करें। जप के समय भोले नाथ के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलते रहना चाहिए। 5- इसी तरह से सतत् 108 दिनों तक संकल्प लेकर प्रतिदिन सर्पसूक्त का नित्य एक पाठ करने से दोष निवारण में सफलता मिलने लगती है। बिगड़े कार्य बनने लगते हैं और उन्नति के सुअवसर प्राप्त होने लगते हैं। अपने घर की पूजा स्थली में शिवजी के समीप ही सर्प पकड़े हुए गरुड़ासीन, श्री हरि विष्णु अथवा शेषशायी विष्णु की तस्वीर रखकर उनके दर्शन करते हुये लगातार 108 दिनों तक नवनाग नाम स्तोत्र के नित्य नौ बार पाठ करने से कालसर्प दोष निवारण में बहुत शांति मिलती है। उपरोक्त 108 दिनों के जप/पाठ का प्रारंभ महाशिवरात्रि के पावन पर्व के दिन से कर सकते हैं। ‘‘नमः शिवाय’’ मंत्र पंचाक्षर, जपत मिटत सब क्लेश भयंकर। नाग मंत्र ऊँ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि। तन्नः सर्पः प्रचोदयात्।। नव नाग नाम स्तोत्र अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलम्। शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।। 1 ।। एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।। 2 ।। तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।। 3 ।।
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