दुर्गासप्तशती का पाठ दो प्रकार से होता है- एक साधारण व दूसरा सम्पुट। सप्तशती में कुल सात सौ मंत्र हैं। प्रत्येक मंत्र के आरंभ और अंत में इच्छित फल प्राप्ति के उद्देश्य से विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है। इस प्रकार से सप्तशती के सात सौ मंत्र सम्पुटित करके जपे जाते हैं। ऐसे पाठ को सम्पुट पाठ कहते हैं जिसे काम्य प्रयोगों में विशेष प्रभावशाली समझा जाता है। विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ती हेतु संपुट पाठ में विभिन्न मंत्रों का प्रयोग होता है। इस आलेख में प्रस्तुत है सप्तशती के सिद्ध सम्पुट मंत्रों का विवरण। जो लोग पाठ करने में असमर्थ हैं वे इन मंत्रों का स्फटिक माला पर नित्य जप करके वांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। मॉं दुर्गा के इन मंत्रों का जप करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परंतु नवरात्र में जप करने से शीघ्र ही फल प्राप्त होता है। कार्य विशेष अनुसार निम्न मंत्रों का मां दुर्गा के चित्र के सम्मुख धूप-दीपादि जलाकर व पुष्प-फलादि अर्पित कर, 3 या 5 माला जाप रोजाना स्फटिक की माला पर विधिपूर्वक करने से उचित लाभ लिया जा सकता है :- सर्व मंगल व कल्याण हेतु : सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ भावार्थ : हे नारायणी ! आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणकारी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रोंवाली गौरी आपको नमस्कार है। सामूहिक कल्याण हेतु : देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्श्ेषदेवगणशक्ति समूहमूर्त्या । तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ॥ भावार्थ : जिस देवी का स्वरुप ही सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय है तथा जिस देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं व महर्षियों की पूजनीय उस जगदम्बा देवी को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हम लोगों का कल्याण करें। सर्व बाधा मुक्ति हेतु : सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥ भावार्थ : मेरे प्रसाद से मनुष्य सब बाधाओं से मुक्त होगा तथा धन धान्य व पुत्र से सम्पन्न होगा - इसमें संदेह नहीं है। बाधा शांति हेतु : सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥ भावार्थ : हे सर्वेश्वरि ! तुम इसी प्रकार तीनो लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। विद्या प्राप्ति हेतु : विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः॥ भावार्थ : देवि ! विश्व की संपूर्ण विद्यायें तुम्हारे ही भिन्न भिन्न स्वरुप हैं। जगत में जितनी स्त्रियांॅ हैं वे सब तुम्हारी ही मूर्तियां हैं। जगदंबे ! एक मात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है ? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थों से परे हो। आरोग्य व सौभाग्य की प्राप्ति हेतु : देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परमं सुखम्। रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ भावार्थ : मुझे सौभाग्य व आरोग्य दो। परम सुख दो, रुप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि मेरे शत्रुओं का नाश करो। रोग नाश हेतु : रोगान्शेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रितां ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥ भावार्थ : देवी, तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपति तो आती ही नहीं है। तुम्हारी शरण में गये हुये मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं। भय नाश हेतु : सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ एतते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्। पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते। ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ भावार्थ : हे सर्वस्वरुपा ! हे सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से संपन्न दिव्यरुपा दुर्गे देवी ! सब प्रकार के भय से हमारी रक्षा करो। तुम्हें नमस्कार है। हे कात्यायनी ! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भय से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। हे भद्रकाली, ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होने वाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करने वाले अपने त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है। विपत्ति नाश हेतु : शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणी नमोऽस्तु ते॥ भावार्थ : शरण में आये हुये दीनों एवं पीडितों की रक्षा में सलंग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली हे नारायणी देवी ! तुम्हें नमस्कार हैं। विपत्तिनाश और शुभ प्राप्ति हेतु : करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः। भावार्थ : हे कल्याण की साधनभूता ईश्वरी ! हमारा कल्याण और मंगल करें तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डालें। दारिद्रय-दुख आदि नाश हेतु : दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्रयदुखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽर्द्रचिता॥ भावार्थ : मां दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हो और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हो। हे दुख दरिद्रता और भय हरने वाली देवी ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित सबका उपकार करने के लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो। शक्ति प्राप्ति हेतु : सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥ भावार्थ : आप सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार सर्वगुणमयी नारायणी ! तुम्हें नमस्कार है। सर्वविध अभ्युदय हेतु : ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः। धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥ भावार्थ : सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली, आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं। उनको धन व यश की प्राप्ति होती है। उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट पुष्ट देह, स्त्री, पुत्र व भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। सुलक्षणा पत्नि की प्राप्ति हेतु : पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ भावार्थ : हे मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली देवी ! मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।
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