Sunday, 17 January 2016

आत्मघात और ज्योतिष

आत्मघात के बारे में प्रायः नित्य ही समाचार मिल जाता है। फांसी लगाकर, जल कर, विष खाकर, ऊंचे स्थान से गिरकर, रेल से कट कर, नस काटकर आदि। शास्त्रों में आत्मघात करना पाप माना गया है, क्योंकि शरीर परमात्मा का दिया हुआ है, उसका वास स्थान है, अतः इसे नष्ट करना उचित नहीं है। आत्महत्या या आत्मघात का अर्थ है स्वयं इस शरीर को नष्ट करना या समाप्त कर देना। जिस वातावरण में मनुष्य निराशा की चरम सीमा पर होता है, स्वयं को समाप्त कर उस वातावरण से छुटकारा पाना चाहता है। यदि थोड़ी सी भी समझदारी, बुद्धिमानी उस समय आ जाये तो वह स्वयं को उस वातावरण से दूर ले जा सकता है और उन परिस्थितियों से तथा जन-बंधुओं से पूर्णतया अलग हो सकता है। अब यह प्रश्न उठता है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा कठिन कदम क्यों उठाता है। नैराश्य के घोर अंधकार में जब कहीं से भी कोई आस की किरण नहीं आती तब व्यक्ति स्वयं को गहन अवसाद से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं को ही समाप्त कर देता है। मानव का जीवन के प्रति उत्साह समाप्त हो गया हो, निराशा में मन डूब गया हो, कहीं से कोई सहानुभूति न मिल रहे हो तब जीवन के प्रति अनासक्ति होने लगती है। ऐसी स्थिति का कारण कुछ भी हो सकता है। शरीर रोग अथवा पीड़ा से ग्रस्त हो, मन को स्वजनों तथा अन्य व्यक्तियों से अत्यधिक मानसिक पीड़ा मिल रही हो, व्यवसाय में इतनी हानि हो गई हो कि भरपाई करना कठिन हो गया हो, समाज में अथवा अपने कार्य स्थान में असम्मान, निरादर, अपराधारोपण, मानहानि आदि हो, प्रेम में असफलता हो, परीक्षा में असफलता मिली हो, मन की इच्छाएं-आकांक्षाएं पूरी न हो पा रही हों आदि। इन सब परिस्थितियों में मन में निराशा भर जाती है और मन में निराशा भर जाने से जीवन व्यर्थ सा लगने लगता है। तब धैर्य साथ छोड़ देता है और मन इतना दुर्बल हो उठता है कि जीवन समाप्त करना ही एकमात्र उपाय लगता है। ऐसे में अच्छे-बुरे की परख नहीं रह जाती और सोचने-विचारने की क्षमता समाप्त हो जाती है। मन का कारक चंद्र है। मन की दुर्बलता को चंद्र की दुर्बलता से आंकंे। जब चंद्र पर पाप प्रभाव हो या चंद्र क्षीण हो या उस पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो, षष्ठेश, सप्तमेश और अष्टमेश का चंद्र से संबंध हो तब मन की निराशा गंभीर हो उठती है। लग्न से संबंध हो, द्वितीयेश, तृतीयेश अथवा द्वादशेश के प्रभाव में चंद्र हो तो मानसिक दुर्बलता बढ़ जाती है। बुध तथा गुरु दुष्प्रभाव में हों तो बुद्धि के भ्रष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है। सूर्य आत्माकारक ग्रह है। यदि यह मारक स्थान में हो अथवा मारकेश के प्रभाव में हो तो व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है। विशेष रूप से यदि यह स्थिति गोचर में बन रही हो तो आत्महत्या की संभावना बनती है। आत्महत्या के प्रयास में व्यक्ति बचेगा या उसे शारीरिक कष्ट होगा या शरीर और जीवन दोनों ही सलामत रहेंगे, यह सब ग्रहों व उनके प्रभाव पर निर्भर करेगा। यहां कुछ कुंडलियों का विश्लेषण प्रस्तुत है। क्योंकि आत्महत्या का प्रयास एक क्षणिक उन्माद में किया गया तात्कालिक कर्म है, अतः उस समय के गोचर का अध्ययन महत्वपूर्ण है।

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