नक्षत्र तारा समूहों से बने हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मंडल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ये नक्षत्र एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य तथा तारे हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों की संख्या 27 मानी गई है, कहीं अभिजीत को लेकर 28 भी मानते हैं। 27 और 28 दोनों का उपयोग प्राचीन काल से आज तक हो रहा है। इनमें से प्रत्येक नक्षत्र का क्षेत्र 13 अंश 20 कला का है। इस प्रकार 27 नक्षत्रों में 360 अंश पूरे होते हैं। ‘अभिजित’ नक्षत्र का क्षेत्र इन्हीं के मध्य उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण और श्रवण के आरंभ के 1/15 भाग को मिला कर होता है। इसका कुल क्षेत्र 4 अंश 13 मिनट 20 सेकेंड है। नक्षत्रों का हमारे जीवन तथा हमारे व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे जातक शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक संख्या 85, 86, 87,88, 89, 90 तथा 91 में प्रत्येक नक्षत्र में जन्मे मनुष्य के स्वभाव तथा व्यक्तित्व के बारे में साफ-साफ लिखा है। श्लोक संख्या 85 अश्विन्यामतिबुद्ध वित्तविनयपज्ञ्र यशस्वी सुखी याम्यक्र्षे विकलोऽन्यदारनिरतः क्रूरः कृतघ्नो धनी। तेजस्वी बहुलोद्भवः प्रभुसमोऽमूर्खश्च विद्याधनी नक्षत्र तारा समूहों से बने हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मंडल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ये नक्षत्र एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य तथा तारे हैं। रोहिण्यां। पररन्ध्रवित् कृशतनुर्बोधी परस्त्रीरतः।। अर्थात्- अश्विनी नक्षत्र में जन्म हो तो मनुष्य बहुत बुद्धिमान, धनी, विनीत, यशस्वी, सुखी होता है। भरणी नक्षत्र में जन्म हो तो विकल, बेहाल, परस्त्रीरत, क्रूर, कृतघ्न व धनी होता है। कृत्तिका नक्षत्र में तेजस्वी, राजा के समान, बुद्धिमान, विद्यारूपी धनवाला होता है। रोहिणी नक्षत्र में दूसरों के दोषों को जानने वाला, पतला शरीर, बुद्धिमान, परस्त्रीरत होता है। श्लोक संख्या 86 चान्द्रे सौग्यमनोऽदनः कुटिलदृक् कामातुरो रोगवान् आद्र्रा यामध्नश्चला ऽ कबलः क्षुद्रक्रियाशीलवान्। मूढ़ात्मा च पुनर्वसौ धनबलख्यातः कविः कामुकः तिष्ये विप्रसुरप्रियः सधनधी राजप्रियो बन्धुमान्।। अर्थात - मृगशिरा नक्षत्र में सौम्य विचारों वाला,भ्रमणशील, तीव्र नजरों वाला अर्थात् नजर से ही दूसरों को प्रभावित करने वाला, कामातुर, रोगी होता है। आद्र्रा नक्षत्र में धनहीन, चंचल विचारों वाला, बहुत बलशाली, निन्दित कार्य करने वाला होता है। पुनर्वसु नक्षत्र में किसी-किसी बात में अनाड़ी, प्रसिद्ध धनी, कवि हृदय व कामुक होता है। पष्य मबा्र ह्मणा व दवे ताआ का सत्कार करन वाला, धनी व बु द्धमानराजपिय्र , बंधु-बांधवों से युक्त होता है। श्लोक संख्या 87 सार्पो मूढ़मतिः कृतघ्नवचनः कोपी दुराचारवान् गर्वी पष्यरतः कलत्रवशगा मानी मधायां धनी। फल्गुन्यां चपलः कुकर्मचरितस्त्यागी दृढ़ः कामुको भोगी चोत्तरफल्गुनीभजनितो मानी कृतज्ञः सुधीः। अर्थात् - आश्लेषा नक्षत्र में मूढ़बुद्धि, कृतघ्नतापूर्ण वचन बोलने वाला, क्रोधी, दुराचारी होता है। मघा नक्षत्र में घमंडी, पुण्यकर्मों में रत, स्त्री क वश म रहन वाला, स्वाभिमानी, धनी होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में चंचल बुद्धि, कुकर्मी, त्यागी, दृढ़ विचारों वाला व कामुक होता है। उत्तराफाल्गुनी में भोगवान्, मानी, कृतज्ञ व सद्बुद्धि वाला होता है। श्लोक संख्या 88 हस्तक्र्षे यदि कामधर्मनिरतः प्राज्ञोपकर्ता धनी चित्रायामतिगुप्तशीलनिरतो मानी परस्त्रीरतः। स्वात्यां देवमहीसुरप्रियकरो भोगी धनी मन्दधीः गर्वी दारवशो जितारिरधिकक्रोधी विशाखोद्भवः ।। अर्थात् - हस्त नक्षत्र में सांसारिक भोगों में रत, बुद्धिमान, जनों का उपकारी, धनी होता है। चित्रा नक्षत्र में बहुत गुप्त रूप से आचरण करने वाला, छुपा रूस्तम, स्वाभिमानी, परस्त्री में रत होता है। स्वाति नक्षत्र में देवों व ब्राह्मणों का हितकारी, भोगवान, मंदबुद्धि, धनी होता है। विशाखा नक्षत्र में घमंडी, स्त्री के वश में रहने वाला, शत्रुजेता, अधिक क्रोधी होता है। श्लोक संख्या 89 मैत्रे सुप्रियवाग् धनी सुखरतः पूज्यो यशस्वी विभुः ज्येष्ठायामतिकोपवान् परवधूसक्तो विभुर्धार्मिकः। मूलक्र्षे पटुवाग्विधूतकुशलो धूर्तः कृतघ्नो धनी पूर्वाषाढ़भवोऽविकारचरितो मानी सुखी शान्तधीः।। अर्थात् - अनुराधा नक्षत्र म प्रियभाषी, धनी, सुखभोगों वाला, पूज्य, यशस्वी, समर्थ होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में बहुत क्रोधी, परस्त्री में रत, समर्थ व धार्मिक होता है। मूल नक्षत्र में कुशल वक्ता, शुभहीन, धूर्त, कृतघ्न व धनी होता है। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में विकृत चरित्रवाला, मानी, सुखी व शांत मन होता है। श्लोक संख्या 90 मान्यः शान्तगुणः सुखी च धनवान् व श् व क्ष जः प डितः श्राण् या द्विजदेवभक्तिनिरतो राजा धनी धर्मवान्। आ श् लुर्वसुमान् वसूडुजनितः पीनोरूकंठः सुखी कालज्ञः शततारको द्भवनरःशान्तोऽल्पभुक्साहसी।। अर्थात्- उत्तराषाढा़ नक्षत्र म मान्यवर, शान्तचित्त, गुणवान्, सुखी, धनी व विद्व न होता है। श्रवण नक्षत्र में ब्राह्मणों व देवताओं की भक्ति से युक्त, राजा, धनी व धार्मिक होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में आशावान्, धनवान्, मोटी गर्दन वाला, सुखी होता है। शतभिषा नक्षत्र म उत्पन्न व्यक्ति समय की चाल को पहचानने वाला अथवा ज्योतिषी, शांत, कम खाने वाला, साहसी होता है। श्लोक संख्या 91 पूर्वप्रोष्ठपदि प्रगल्भवचनो धूर्तो भयार्तो मृदु श्चाहिर्बुध्न्यजमानवो मृदुगुणस्त्यागी धनी पंडितः। रेवत्यामुरूलांछनोपगतनुः कामातुर सुन्दरो। मंत्री पुत्रकलमित्रसहितो जातः स्थिरश्रीरतः।। अर्थात- पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में प्रगल्भ वचन बोलने वाला, धूर्त, भयभीत, कोमल स्वभाव वाला होता है। उत्तरभाद्रपद में कोमल स्वभाव वाला, त्यागशील, धनी व विद्वान होता है। रेवती नक्षत्र में जन्म होने पर जांघों में चिह्न वाला, कामातुर, सुंदर, मंत्री (मंत्र प्रयोक्ता या सलाहकार), स्त्री, पुत्र, मित्रों से युक्त, स्थिर स्वभाव, धन लालसा वाला होता है।
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