सर्वाधिक प्रचलित शुभ मुहूर्त्तो में रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग, शुभ योग मुहूर्त की श्रेणी में आते हैं तो भद्रा तिथि, पंचक, विषयोग, उत्पात योग, हुताशन योग, अशुभ मुहूर्त की श्रेणी में आते हैं मगर कुछ कार्यों के लिए इन मुहूर्तों का चयन कर सफलता प्राप्त की जा सकती है। किस कार्य हेतु कौन सा मुहूर्त सर्वार्थ सिद्धि योग : विशेषवार को यदि नक्षत्र-विशेष का संयोग बनता है तो सर्वार्थ सिद्धि का सृजन होता है जिसमें प्रायः सभी कार्य सफल होते हैं। रविवार : मूल, तीनों उत्तरा, अश्विनी, हस्त, पुष्य नक्षत्र। सोमवार : श्रवण, अनुराधा, रोहिणी, पुष्य व मृगशिरा नक्षत्र मंगलवार : उत्तराभाद्रपद, कृतिका अश्विनी, आश्लेषा। बुधवार : हस्त, अनुराधा, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा। शुक्रवार : पुनर्वसु अनुराधा, रेवती अश्विनी, श्रवण। शनिवार : रोहिणी, श्रवण स्वाती। पंचक नक्षत्रों में पांचगुना, त्रिपुष्कर योग में तीन गुना तथा द्विपुष्कर योग में दो गुना लाभ या हानि होती है। अतः आवश्यक है कि अपनी राशि क अनुसार चंद्रमा का बलाबल देखकर इन योगों के शुभ मुहूर्त्तों का लाभ उठायें। व्यापार, विवाह, यात्रा, क्रय-विक्रय, गृह प्रवेश, प्रसूति का स्नान, विद्यारंभ, कूप उत्खनन आदि मुहूर्तों में उत्पात योग पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। संक्रांति योग में भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। अभिजित मुहूर्त में दक्षिण दिशा की यात्रा भी वर्जित है। प्राचीन काल में अभिजित मुहूर्त की गणना सूर्य की रोशनी से पड़ने वाली छाया के आधार पर की जाती थी। अभिजित मुहूर्त के समय छाया पूर्व या पश्चिम दिशा में नहीं पड़ती है। अभिजित मुहूर्त से भी अधिक शुभ श्रेष्ठ और सरलता से प्राप्त होने वाले लाभ होरा मुहूर्त अत्यंत श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण है। प्रतिदिन वार के क्रम से चलने वाला होरा मुहूर्त एक घंटे का होता है। सूर्य की होरा का मुहूर्त राजकीय कार्य के संदर्भ में, चंद्र की होरा सर्वकार्य सिद्धि के लिए, मंगल मुकदमा दायर करने व वाद-विवाद के लिए तथा दवाई ग्रहण के लिए, बुध की होरा ज्ञान प्राप्ति, गुरु की होरा विवाह, सगाई बातचीत हेतु तथा शुक्र की होरा यात्रा के लिए शुभ, तो शनि की होरा द्रव्य, संचय विनियोग तथा स्थायी संपत्ति के क्रय हेतु प्रयोग में लानी चाहिए। अपनी राशि के स्वामी ग्रह के शत्रु ग्रहों की होरा मुहूर्त में यात्रा, विवाह आदि नहीं करना चाहिए।
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