अभी तक परिचर्चा हुआ करती थीं कि विज्ञान वरदान है, या अभिशाप ? लेकिन समय के बदलते परिवेश में आज परिचर्चा का विषय भी बदला है और आजकल परिचर्चा का सबसे ज्वलंत विषय है - ज्योतिष विज्ञान है, या महज एक अंधविश्वास। यह बात इससे और भी साबित होती है कि आजकल टी.वी. चैनलों द्वारा भी बहस के लिए ऐसे मुद्दों को उठाया जा रहा है। प्रायः ज्योतिष में विश्वास न रखने वाले लोगों का कहना होता है कि जब शादी की जाती है, तो प्रायः कुंडली मिलान कर के ही शादी की जाती है। क्या कारण है कि फिर भी शादी टूट जाती है ? शायद यह प्रश्न किसी के मन भी उठ सकता है। लेकिन जब इसका कारण ढूंढने की कोशिश की जाए, तो इसका कारण बिल्कुल साफ और सरल है। माना कि ज्योतिषी कुंडली मिलान कर के यह तो बता देता है कि अमुक व्यक्ति की कुंडली अमुक लड़की से मिलती है, या नहीं; साथ ही यह भी बता दिया जाता है कि कुंडली किस हद तक मिल रही है, अर्थात उन दोनों की कुंडली में कितने गुण मिल रहे हैं तथा मांगलिक दोष है, या नहीं। इसके बावजूद शादी असफल रहने के दो कारण मुख्य हैं। सर्वप्रथम केवल कुंडली मिलान ही शादी की सफलता, या असफलता का एक नहीं हैं; बल्कि इसके अतिरिक्त यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं कि वर-वधू की कुंडली में विवाह सफल होने का कितना प्रतिशत है। कहने का तात्पर्य यह है कि उनके सप्तम भाव कितने शक्तिशाली तथा दोषरहित हैं। इसके अलावा सप्तमेश कितना बलवान है तथा विवाह का कारक गुरु, या शुक्र की स्थिति क्या है? प्रायः जब कोई व्यक्ति किसी ज्योतिषी के पास कुंडली मिलवाने जाता है, तो वह गुण मिलान और कुडली मिलान की तो बात करता है, परंतु उसकी अन्य विधाओं को पूछने का कष्ट नहीं करता, क्योंकि आजकल मनचाहे विवाह संबंध मिलने पहले तो बड़े मुश्किल हो जाते हैं और जब मिलते हैं, तो कुंडली के कारण छोड़ने पड़ जाते हैं। फिर माता-पिता, या अन्य संबंधी परेशान हो कर सिर्फ कुंडली मिलान तक ही सीमित रह जाते हैं तथा अन्य तथ्यों को उतना महत्व नहीं देते। इस प्रकार यह एक अहम कारण है कि विवाह कुंडली मिलान के बाद भी असफल हो जाते हैं। दूसरा अहम् कारण यह भी है कि ज्योतिषी के पास जब व्यक्ति जाता है, तो कुंडली मिलान के पश्चात दूसरा काम यह करता है कि विवाह के लिए मुहूर्त निकलवाता है। अममून देखने में आता है कि ज्योतिषी से लोग मुहूत्र्त तो अच्छा से अच्छा निकलवाने की कोशिश करते हैं, परंतु जब विवाह संपन्न होने जा रहा होता है, तो इसके महत्व को नजरअंदाज करके अन्य कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। जैसे कि उधर तो पंडित जी विवाह के मुहूर्त को ध्यान में रख कर पूजा इत्यादि की तैयारी कर रहे होते हैं, तो दूसरी तरफ लड़के वाले या तो नाच-गाने में व्यस्त होते हैं, खाना खाने में व्यस्त होते हैं या लड़की वाले फोटो इत्यादि खिंचवाने में व्यस्त होते हैं। अंततः विवाह शुभ मुहूत्र्त में संपन्न हो ही नहीं पाता है। इस कारण अच्छा से अच्छा किया हुआ कुडली मिलान तथा शुभ मुहूत्र्त धरे के धरे रह जाते हैं तथा इस प्रकार ज्योतिष में विश्वास न रखने वालों को कहने का अवसर मिल जाता है कि कुंडली मिलान के पश्चात भी विवाह असफल हो जाता है, या शादी टूट जाती है। इस प्रकार यह सत्यापित होता हैै कि दोष ज्योतिष में नहीं शायद हम में ही कहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं कि ज्योतिष विज्ञान नहीं, सिर्फ कला है। इसका विज्ञान से कोई संबंध नहीं । ऐसा कथन शायद उन ही लोगोें का हो सकता है जिन लोगों ने न तो ज्योतिष को कभी पढ़ा है, न उसमें छिपे हुए तथ्यों को समझने का प्रयास किया है और न ही कभी इस विषय पर शोध किया है। वरना कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय का अध्ययन किये बिना कैसे कह सकता है कि उक्त विषय विज्ञान है, या कला। सिर्फ बहस और मुद्दों के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता है कि अमुक विषय विज्ञान का है, या नहीं। इसलिए किसी विषय के बारे में राय बनाने से पहले यह आवश्यक है कि उस विषय का गहनता से अध्ययन किया जाये, सर्वेक्षण कर के शोध किया जाए तथा इन सब तथ्यों के आधार पर ही यह निश्चय किया जाए कि ज्योतिष विज्ञान है, या नहीं। इस संबंध में अगला तर्क यह है कि जो विषय, या वस्तु सत्य है वही विषय, या वस्तु लंबे समय तक जीवित रह सकते हंै, अन्यथा वह या तो संशोधित हो जाते हैं, या उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। आज सभी जानते हैं कि यह विषय कोई सौ, या दो सौ साल पुराना विषय नहीं हैं। जबसे मनुष्य इस पृथ्वी पर आया तबसे मनुष्य ने सूर्य, चंद्रमा और मंगल ग्रह के बारे में जानने की कोशिश की और उसी समय से इन ग्रहों का मनुष्य पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता रहा है और आज भी वही अध्ययन ज्योतिष केे अंतर्गत कर रहे हैं। यदि यह अध्ययन और निष्कर्ष गलत होते, या औचित्यरहित होते, तो इन अध्ययनों और निष्कर्षों की समाप्ति हो चुकी होती, या संशोधित हो चुके होते। यदि उन्हीं निष्कर्षेां और अध्ययनों को आज भी सत्य माना जा रहा है, तो इसका यही तात्पर्य है कि वे निष्कर्ष और तथ्य सही हैं। यदि कोई ज्योतिषी फलित करने में असफल होता है तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ज्योतिष विज्ञान नहीं है और महज एक अंधविश्वास है, या ज्योतिष सिर्फ मनोरंजन का विषय है, या कला के समान है; बल्कि इसका तात्पर्य यह होता है कि या तो ज्योतिषी के अध्ययन, या विवेचन में कहीं कमी है, या इस ज्योतिष में और शोध की आवश्यकता है। यदि किसी ज्योतिषी के फलादेश में गलती के कारण ज्योतिष को गलत कहा जा सकता है, तो हमारे चिकित्सा विज्ञान को तो सदैव ही गलत कहा जा सकता है। क्यों एक डाॅक्टर अपने मरीज को मौत के मुंह में जाने से नहीं बचा पाता है? यदि नहीं बचा पाया, तो इसका मतलब तो यह हो जाना चाहिए था कि चिकित्सा विज्ञान गलत है, जबकि ऐसा नहीं है। इसका तात्पर्य यह होता है कि उस डाॅक्टर में कहीं कमी थी, जो वह उस व्यक्ति को नहीं बचा सका, न कि चिकित्सा विज्ञान में कमी थी, या दूसरा कारण यह कह सकते हैं कि ज्योतिष के अनुसार उस व्यक्ति की आयु ही उतनी थी, जिसको आज का विज्ञान बचा नहीं पाया। यदि विज्ञान से ही सब कुछ संभव है, तो क्यों विज्ञान मनुष्य को मृत्यु जैसे अटल सत्य से बचा सकता नहीं है? क्यों हमारा मौसम विभाग सही भविष्यवाणियां नहीं कर पाता है, जबकि उसके पास आज उपग्रह जैसे अत्याधुनिक उपकरण भी उपलब्ध हैं? क्यों विज्ञान नहीं बता पाता कि भूकंप कब आएगा और कहां, जबकि हमारे ज्योतिष शास्त्र की मेदिनीय शाखा में कहा गया है कि जब शनि रोहिणी नक्षत्र में आता है, तो भूकंप जैसी विनाशलीला होती है, पृथ्वी पर हड़कंप जैसी गतितिवधियां होती हैं, जैसे बाढ़ आना, तूफान आना आदि? इसके अतिरिक्त ज्योतिष में ही घाघ-भड्डरी की कहावतें भी वर्षा होने, या सूखा पड़ने की संभावनाओं को बताता है, जो आज हमारे मौसम विभाग की भविष्यवाणियों से कहीं अधिक सत्य साबित होती हैं। उदाहरणार्थ: आगे मंगल पीछे भान, वर्षा होत ओस समान अर्थात्, यदि सूर्य मंगल के साथ एक ही राशि में हो, परंतु मंगल के अंश सूर्य से कम हों, तो वर्षा ओस के समान, अर्थात बहुत कम होती है। अन्य जेहि मास पड़े दो ग्रहणा, राजा मरे, या सेना अर्थात् जिस मास में दो ग्रहण पड़ें, उस महीने में या तो राजा की मृत्यु होती है, या आम जनता की हानि होती है। यदि विज्ञान से ही सब कुछ संभव हो सकता है तो ज्योतिष में विश्वास न रखने वाले लोग क्यों अपने बच्चों की शादी के समय मुहूत्र्त निकलवाने के लिए ज्योतिषियों के पास ही जाते हैं? क्यों वे अपने बच्चों का विवाह पितृ पक्ष, या श्राद्ध के दिनों में नहीं कर देते? कुछ लोग कहते हैं कि यदि भाग्य ही सब कुछ है, तो कार्य करने की क्या आवश्यकता है? यह शायद उन लोगों का कहना है, जो बिना पुरुषार्थ के भाग्य के भरोसे रह कर ही सब कुछ अर्जित करना चाहते हैं। यहां एक बात स्पष्ट करने योग्य यह है कि भाग्य आपको बैठे-बिठाए कुछ नहीं देने वाला है। भाग्य सिर्फ आपको कुछ दिलाने में सहायता करता है। भाग्य आपको अपने पूर्वजन्मों के फलों के कारण मिलता है। क्या कारण है कि एम.बी.ए., एम.सी.ए. या सी. ए. जैसी उपाधियां तो ले लेते हैं, परंतु सफल जीवन तो कुछ लोग ही जी पाते हैं? अर्थात उन्होंने अपने पुरुषार्थ से डिग्री तो ले ली, परंतु भाग्य की कमी से, समान डिग्री होने के बावजूद, समान सुख तथा जीवन की सफलता प्राप्त नहीं कर सके। इस संबंध को यदि नीचे लिखे सूत्र से समझने की कोशिश की जाए, तो शायद अच्छी प्रकार समझा जा सकता है: परिणाम = कर्म ग भाग्य गणित के नियमानुसार यदि इन दोनों में से एक भी वस्तु शून्य है, तो उसका परिणाम शून्य ही होगा। यदि हमारा कर्म शून्य होगा, तो भाग्य भले ही कितना ही अच्छा तथा उच्च क्यों न हो, उपलब्धि शून्य ही होगी। इसी प्रकार यदि भाग्य शून्य होगा और कर्म कितने भी पुरुषार्थ भरे क्यों न हों, उपलब्धि शून्य ही होगी। अब हम यहां भाग्य तो पूर्व जन्म के कारण ले कर आये हैं, जिसको परिवर्तित नहीं किया जा सकता; अर्थात हम सिर्फ किये हुए कर्मों को ही परिवर्तित कर सकते हैं। अतः हमें अधिक से अधिक उपलब्धि के लिए ज्यादा से ज्यादा और सही दिशा में पुरुषार्थ करना चाहिए, न कि कर्महीन हो कर, भाग्य पर आश्रित हो कर, फल की इच्छा करनी चाहिए। आज ज्योतिष को अन्य विषयों के समान विज्ञान की उपाधि न मिलने का कारण और भी हैं, जैसे ज्योतिष जैसा विषय का अध्ययन सर्वप्रथम हमारे ऋषि और पूर्वजों के द्वारा किया गया और ये ऋषि-मुनि किसी स्कूल, काॅलेज, या विश्वविद्यालयों में न तो शिक्षा प्राप्त करते थे और न ही शिक्षा देते थे। यह अध्ययन सिर्फ गुरु-शिष्य परिपाटी से किया जाता रहा है। इस विषय का उद्भव एवं विकास हमारे भारत देश में ही हुआ है और इतिहास गवाह है कि हमारा देश काफी समय तक गुलामी में रहा है- पहले मुस्लिम राजाओं की गुलामी में और उसके पश्चात अग्रेज शासकों की गुलामी में। इसके उपरांत आज जब हम स्वतंत्र हैं, तो यह ज्ञान हमारे चारों ओर फैल पाया है और इस ज्ञान के प्रति जागरूक हो पायें हैं। आज जब लोग इस विषय को स्कूल, काॅलेजों, या विश्वविद्याालयों में पढ़ाये जाने की बात सार्वजनिक तौर पर करते हैं, तो तर्क-वितर्क द्वारा उसे पढ़ाये जाने का विरोध करने लगते हैं, क्योंकि उन लोगों ने इसको पढ़ा तथा समझा नहीं है, जबकि अमेरिका जैसे देशों में लोग ज्योतिष को जानने और समझने लगे हैं तथा इसके पूर्ण ज्ञान की आवश्यकता महसूस करते हैं। इंटरनेट पर बनने वाली अधिकतर साइटें ज्योतिष को ही अपना विषय बनाती हैं तथा सबसे अधिक ख्याति प्राप्त करती हैं। अंततः निष्कर्ष यही है कि आज इस ज्योतिष को महज कुछ चंद्र लोगों तक सीमित न छोड़ कर इस विषय को सार्वजनिक रूप से अध्ययन और शोध का विषय बनाया जाना चाहिए तथा इस विषय पर गंभीरतापूर्वक अध्ययन कर के नये शोध और परिणामों को प्राप्त करना चाहिए एवं इसके पश्चात ही निर्णय देना चाहिए कि ज्योतिष एक विज्ञान है, या महज अंध विश्वास।
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