Sunday, 1 May 2016

सूर्य दशा का नैसर्गिक फल

सूर्य की महादशा में विदेश यात्रा, विदेश वास, भूमि, राजद्वार, ब्राह्मण, अग्नि, शस्त्र तथा औषधि से धन हानि या प्राप्ति होती है। जातक की रुचि यन्त्र, मन्त्र में बढ़ती है। राज पुरुषों, राजनीतिज्ञों, अधिकारियों से मित्रता बढ़ती है। भाई-बन्धुओं से शत्रुता, स्त्री, पुत्र या पिता से वियोग या चिन्ता, व्यथा, नेत्र, दाँत तथा उदर में विकार, पीड़ा, गो धन, पशु धन एवं नौकरी में हानि होती है।
किन्तु लग्न, पंचम, दशम तथा व्यय भाव में स्थित रवि की दशा उत्तम होती है। अन्य स्थानों में अशुभ होती है। सूर्य की महादशा में शनि, मंगल तथा चंद्र की अन्तर्दशाएं अशुभ होती हैं। अग्नि तत्व राशियों में सूर्य का फल अत्यन्त अशुभ रहता है। मेष में अत्यन्त बुरा, सिंह में मध्यम व धनु में तुलानात्मक शुभ फल रहता है। वृष, कन्या और मकर (पृथ्वी तत्व) राशियों में स्थित सूर्य का फल मामूली मिलता है।
वायुतत्व राशियों (मिथुन, तुला एवं कुम्भ) में सूर्य का तुलनात्मक रूप से अच्छा फल मिलता है। जल तत्व राशियों (कर्क, वृश्चिक एवं मीन) में मामूली फल प्राप्त होेते हैं। हमें सूर्य के उच्च, नीच, स्वगृही, शत्रु गृही, मित्रगृही, वर्गों में स्थिति, युति, दृष्टि आदि का ध्यान रखकर सूर्य के बल का अनुमान लगा कर फल कहना चाहिए।
सूर्य/सूर्य (अवधि 0 वर्ष 3 मास 18 दिन)
राज सम्मान मिले। धन की प्राप्ति हो। वन पर्वतों पर वास हो। पित्त व ज्वर से पीड़ा, पिता का वियोग भी होना संभव है। सूर्य राजा, प्रशासन व सरकार के साथ पिता का भी कारक है। सूर्य शुभ होने पर (केन्द्र/त्रिकोण,उच्च, स्वक्षेत्री, मूलत्रिकोण, मित्र के साथ) शुभ फल देगा। सूर्य दुर्बल या दुःस्थान (षष्ठ, अष्ट, द्वादश भाव) में होने पर अनिष्ट फल देगा।
सूर्य/चंद्र (अवधि 06 मास)
शत्रु पर विजय मिले। कष्ट व परेशानियाँ मिट जाए। धन मिले। कृषि (बागवानी से लाभ। सुन्दर घर प्राप्त हो। मित्रों से समागम हो। यदि चंद्रमा पापी हो तो धन हानि, मानसिक क्लेश व जल तथा अग्नि से भय हो सकता है।
सूर्य/मंगल
रोग, पदच्युति (अवनति), शत्रु से भय व पीड़ा हो। अपने कुल के लोगों से वैर, विरोध तथा राजा से भय होता है। कभी चोट लगती है व धन हानि भी होती है। ध्यान रहे सूर्य व मंगल दोनों ही क्रूर ग्रह होने से कष्टकारी हो जाते हैं किन्तु यदि सूर्य व मंगल परस्पर (केन्द्र त्रिकोण) इष्ट राशि में हों तो निश्चय ही शुभ फल प्राप्त होगा-सर्वत्र विजय, सफलता व प्रतिष्ठा मिलेगी।
सूर्य/राहु
शत्रु सिर उठाएं, वैर विरोध बढ़े, घर में चोरी या धन की हानि हो। आपत्तियाँ/मुसीबत आये। नेत्र व सिर में पीड़ा। सांसारिक भोगों के प्रति आकर्षण व आसक्ति बढ़ेगी। सूर्य सतोगुणी ग्रह है, किंतु राहु म्लेच्छ होने के साथ सूर्य का प्रबल शत्रु व महान पापी है। जैसे राजपाट छिन जाने पर पापी शत्रु के चंगुल में फंसे एक राजा की दुर्दशा होती है कुछ वैसी ही परिस्थितियों की कल्पना विज्ञ जन कर लें।
सूर्य/गुरु
शत्रुओं का नाश हो, शत्रु दुम दबाकर भागे। बहुविध लाभ व धन की प्राप्ति होगी। देवता व ब्राह्मण की सेवा, सहायता से सुख समृद्धि मिले। गुरु व बन्धुओं से स्नेह, सत्कार मिले। गुरु पापी होने पर कान में पीड़ा अथवा कर्ण रोग तथा तपेदिक, दमा दे सकता है। गुरु श्रवण सुख है।
सूर्य/शनि
स्त्री को रोग, पुत्र वियोग, किसी गुरुजन (गुरु, पिता, चाचा, ताऊ) की मृत्यु हो सकती है। बहुत अधिक व्यय व धन की हानि होती है। शनि यों तो सूर्य का पुत्र हैं किंतु अपने पिता (सूर्य) का प्रबल शत्रु व विरोधी है। सूर्य राजा है तो शनि सेवक/दास है। वह सतोगुणी है तो शनि तमोगुणी व गंदगी पसंद है। जातक इस अवधि में मैला, कुचैला व गंदी बस्ती में रहना पसंद करता है। कभी वात पित्त जनित रोग व पीड़ा भी होती है।
सूर्य/बुध
बुध एक सौम्य ग्रह है, किंतु सूर्य क्रूर है। अतः इस अवधि में चर्म रोग, फोड़े, फुंसी, कुष्ठ, पीलिया की संभावना बढ़ती है। पेट व कमर में पीड़ा होती है। वात-पित्त-कफ जन्य रोग व पीड़ा हो सकती है।
सूर्य/केतु
मित्र से वियोग/बिछुड़ना हो। अपने सहयोगी व कुटुंबी जन से मतभेद, जन्म क्लेश हो। शत्रु से भय व धन नाश की संभावना बढ़े। सिर व पैर में दर्द या गुरु जन को रोग व पीड़ा हो। राहु सरीखा केतु भी पापी व सूर्य का प्रबल शत्रु है- इस कारण अशुभ फल अधिक मिलते हैं।
सूर्य/शुक्र
सिर में पीड़ा, पेट में रोग या बवासीर से कष्ट हो। कृषि कार्य, भूमि, भवन, अन्न, संतान सुख में कमी का अनुभव करे। स्त्री व संतान को रोग होना संभव है। शुक्र दैत्य, गुरु, रजोगुणी, भोग प्रदायक होने के साथ सूर्य का शत्रु भी है। शत्रु की अन्तर्दशा में धन नाश व स्वजन कष्ट सामान्य बात है।

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