बुध अधिकतर जिस ग्रह के साथ स्थित होता है उसके फल देता है। बुध विद्यार्थियों का प्रतिनिधि ग्रह है। शायद इन बातों को ध्यान में रखकर ही बुध को नपंुसक ग्रह माना है क्योंकि विद्यार्थी ब्रह्मचर्य का पालन करता है। यदि बुध बलवान, शुभ दृष्ट व उच्च का हो तो धन की प्राप्ति, सुख, सम्मान प्राप्त होता है। परोपकार, धन, भूमि, वस्त्रादि का सुख मिलता है। लेखन व प्रकाशन का कार्य करता है। यदि बुध निर्बल, पीडि़त व नीच हो तो परस्त्रीगामी, स्वजनों से विरोध, पदच्युति, माता व भ्रातृ पक्ष की हानि, विदेश यात्रा, मस्तिष्क के रोग होते हैं। जातक विद्याहीन होता है। व्यवसाय में हानि होती है। यदि बुध सूर्य के साथ हो तथा अस्त नहीं तो बुधादित्य योग बनता है। जातक विद्वान व खगोलशास्त्री होता है। यदि बुध अस्त हो जाए तो जातक मानसिक दुःख, अपने परिवार जनों से वैमनस्य, वाचाल, निन्दा करने वाला होता है। यदि बुध शुभ ग्रह युक्त हो तो शुभ कर्म, कीर्ति, सम्मान, स्त्री सुख, धन की प्राप्ति होती है। पाप युक्त बुध की दशा में पाप कर्म, पर-निन्दा, व्यर्थ में ज्यादा बोलना, भूमि, स्त्री, पुत्र सुख की हानि होती है। बन्धुजनों से वियोग, अपने पद सौच्युति, विदेश यात्रा एवं छोटी नौकरी पर भी कलह होता है।
विभिन्न भावगत बुध की दशा का फल
केंद्र भाव- अधिकारियों से मित्रता, धन-धान्य, स्त्री, पुत्रादि का सुख, धार्मिक कर्म, उत्तम भोजन एवं वस्त्राभूषण की प्राप्ति होती है।
लग्न भाव- अधिकार, यश, सम्मान प्राप्त होता है। धार्मिक कार्य, गंगा स्नान होता है।
द्वितीय भाव- विद्या की प्राप्ति, कीर्ति वृद्धि, अधिकारियों से मित्रता, मधुर वाणी प्राप्त होती है।
तृतीय भाव- आलस्य, उदर रोग, वमन, मन्दाग्नि, भाई-बहनों से वैमनस्य होता है।
चतुर्थ भाव- मकान, सन्तति-सुख, रोजगार व नौकरी में हानि, स्थान परिवर्तन, मातृपक्ष को कष्ट
पंचम भाव- नीच वृति बौद्धिक क्रूरता एवं धन प्राप्ति में कठिनाई होती है।
छटवा भाव -वात, पित्त एवं कफ जनित नाना प्रकार के रोग, राज्य, अग्नि, चोर से भय होता है।
सप्तम भाव- विद्या, स्त्री, पुत्र और उत्तम वस्त्र की प्राप्ति होती है। राज्य सम्मान व अधिकारियों से मित्रता होती है।
अष्टम भाव- वात-पित्त-कफ जनित नाना प्रकार के रोग होते हैं। राज्य, अग्नि, चोर से भय होता है।
नवम भाव- स्त्री, पुत्र एवं धन की प्राप्ति होती है।
दशम भाव- अधिकार, सम्मान, यश प्राप्त होता है। पुस्तक का प्रकाशन, शुभ कर्म, पुत्र एवं स्त्री से सुख प्राप्त होता है।
एकादश भाव- किसी से धन की प्राप्ति होती है।
द्वादश भाव- शरीर के किसी अंग का भंग, पुत्र एवं स्त्री से मतभेद, आकस्मिक घटना से मृत्यु का भय होता है।
विभिन्न भावगत बुध की दशा का फल
केंद्र भाव- अधिकारियों से मित्रता, धन-धान्य, स्त्री, पुत्रादि का सुख, धार्मिक कर्म, उत्तम भोजन एवं वस्त्राभूषण की प्राप्ति होती है।
लग्न भाव- अधिकार, यश, सम्मान प्राप्त होता है। धार्मिक कार्य, गंगा स्नान होता है।
द्वितीय भाव- विद्या की प्राप्ति, कीर्ति वृद्धि, अधिकारियों से मित्रता, मधुर वाणी प्राप्त होती है।
तृतीय भाव- आलस्य, उदर रोग, वमन, मन्दाग्नि, भाई-बहनों से वैमनस्य होता है।
चतुर्थ भाव- मकान, सन्तति-सुख, रोजगार व नौकरी में हानि, स्थान परिवर्तन, मातृपक्ष को कष्ट
पंचम भाव- नीच वृति बौद्धिक क्रूरता एवं धन प्राप्ति में कठिनाई होती है।
छटवा भाव -वात, पित्त एवं कफ जनित नाना प्रकार के रोग, राज्य, अग्नि, चोर से भय होता है।
सप्तम भाव- विद्या, स्त्री, पुत्र और उत्तम वस्त्र की प्राप्ति होती है। राज्य सम्मान व अधिकारियों से मित्रता होती है।
अष्टम भाव- वात-पित्त-कफ जनित नाना प्रकार के रोग होते हैं। राज्य, अग्नि, चोर से भय होता है।
नवम भाव- स्त्री, पुत्र एवं धन की प्राप्ति होती है।
दशम भाव- अधिकार, सम्मान, यश प्राप्त होता है। पुस्तक का प्रकाशन, शुभ कर्म, पुत्र एवं स्त्री से सुख प्राप्त होता है।
एकादश भाव- किसी से धन की प्राप्ति होती है।
द्वादश भाव- शरीर के किसी अंग का भंग, पुत्र एवं स्त्री से मतभेद, आकस्मिक घटना से मृत्यु का भय होता है।
बुध/बुध -जातक धर्म मार्ग पर चले, विद्वानों व ब्राह्मणों के संग से निर्मल बुद्धि प्राप्त कर सभी बाधाओं को दूर कर, धन, यश व सुख पाए।
बुध/केतु- दुःख, शोक व क्लेश से मन अधीर व व्याकुल हो। शत्रुओं से भय व हानि हो। खेती व वाहन की क्षति हो।
बुध/शुक्र- देवता, ब्राह्मण व गुरु के प्रति श्रद्धा हो। जातक दान व धर्म में लगे। मित्र समागम तथा वस्त्राभूषण प्राप्त कर सुखी हो (बुध व शुक्र परस्पर मित्र हैं। बुध से बुद्धि व व्यवहार कुशलता तथा शुक्र द्वारा जातक राजसी भोग पाता है)।
बुध/केतु- दुःख, शोक व क्लेश से मन अधीर व व्याकुल हो। शत्रुओं से भय व हानि हो। खेती व वाहन की क्षति हो।
बुध/शुक्र- देवता, ब्राह्मण व गुरु के प्रति श्रद्धा हो। जातक दान व धर्म में लगे। मित्र समागम तथा वस्त्राभूषण प्राप्त कर सुखी हो (बुध व शुक्र परस्पर मित्र हैं। बुध से बुद्धि व व्यवहार कुशलता तथा शुक्र द्वारा जातक राजसी भोग पाता है)।
बुध/सूर्य- राजसम्मान, उत्तम भोजन व पेय, भव्य भवन, वाहन व उत्कृष्ट धन-संपदा मिले। बुध के लिये सूर्य मित्र ग्रह है जो सूर्य की सिंह राशि से द्वितीय भाव कन्या में स्थित होकर धन व खान-पान का सुख देता है। यों भी सूर्य राजा है व बुध राजकुमार; अतः राजा सूर्य का लाड़ प्यार बुध को सहज प्राप्त है।
बुध/ चन्द्रमा- सिर में दर्द, (कंठ) गले में दर्द एवं नेत्र में कष्ट/विकार हो। जातक को चर्मरोग, दाद, खाज, खुजली व सफेद दाग की बीमारी हो। कभी प्राणों को संकट या भय हो। चंद्रमा देह की सुंदरता व स्वास्थ्य है, मन की सुख शांति भी है। बुध के लिए चंद्रमा शत्रु ही है। अतः बुध स्वास्थ्य संबंधी चिन्ता परेशानी देगा।
बुध/मंगल- आग या चोरी से धन हानि। नेत्र पीड़ा, मन में दुःख व चिन्ता। पदच्युति व मकान छूटे। वात रोग से कष्ट हो। मंगल, चन्द्रमा को मित्र व बुध को शत्रु मानता है। बुध धन व प्रसन्नता का प्रतीक है। अतः मंगल अपनी अन्तर्दशा में बुद्धि को भ्रमित कर चिन्तातुर बनाता है। किसी भी तरह से धन हानि करता है। बदले में बुध भी भूमि, भवन व अधिकार पद की हानि दिया करता है।
बुध/राहु- उदर, मस्तक व नेत्र में पीड़ा, स्वास्थ्य की हानि हो। अग्नि, विष व जल से भय हो। जातक के धन, मान व पद (प्रतिष्ठा/अधिकार) की क्षति हो। बुध भले ही पापी न हो किन्तु राहु तो प्रबल पापी व अशुभ माना गया है। अतः धन, मान प्रतिष्ठा व स्वास्थ्य की हानि करने में पीछे नहीं हटता।
बुध/गुरु- शत्रु व रोग से छुटकारा, धार्मिक कार्यों में सफलता व राजसम्मान मिले। धर्म व तपस्या में विशेष रुचि हो। (गुरु वेदनिष्ठ, शास्त्रमर्मज्ञ ब्राह्मण है) तो बुध है- बुद्धि चातुर्य व व्यवहार कुशलता का प्रतीक। अतः ज्ञान व बुद्धि के मिलन से शुभ कार्य संपन्न होंगे। जिनके कारण मान, सम्मान, यश कीर्ति का विस्तार होगा व मन में हर्ष उल्लास, उत्साह, उमंग, आस्था, विश्वास जनित सुख उपजेगा।
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