केतु एक छाया ग्रह है। हमेशा राहु से सप्तम भाव में रहता है। केतु का फल राहु फल के अनुसार होता है।
विभिन्न भावगत केतु की दशा का फल
लगन भाव- कृश, दुर्बल, उदास, भ्रमित, लोभी, कंजूस, बन्धुओं से विरोध, अशुद्धचित्त का होता है।
द्वितीय भाव -राजा से कष्ट, दुःखी एवं शत्रु जैसा बोलता है, बुद्धि भ्रम, स्त्री सुख से रहित होता है।
तीसरा भाव- शत्रु नाश, पराक्रमी, छोटे भाई-बहिन को कष्ट, कन्धे व कान में रोग, साझेदारी से लाभ होता है। यात्रा, बहुत खर्च, हृदय रोग एवं बहरापन होता है।
चतुर्थ भाव- माता रोगी रहती है। सौतेली माता से कष्ट, वाहन सुख एवं स्वभाव अस्थिर रहता है।
पंचम भाव- कपटी, दुर्बल, धैर्यहीन होता है। पुत्र कम, कन्याएं ज्यादा, पेट के रोग, तंत्र-मंत्र से भाइयों का घात करता है।
छटवा भाव- शत्रु नाश, मामा से वैर, स्त्री सुख कम, चैपायों से लाभ, अपने को सर्वज्ञ समझता है।
सप्तम भाव- स्त्री रहित, व्यभिचारी, अस्थिर, प्रवासी निवास स्थान बार-बार बदलने वाला, व्यसनी, राजा से भय होता है।
अष्टम भाव- पापकृत्य तत्काल प्रकट होता है। परस्त्री में आसक्त, नेत्ररोगी, दुराचारी, एवं दीर्घायु
नवम भाव- धर्म विरोधी, दुराचारी, झूठ बोलने वाला, क्रोधी, वक्ता, दूसरांे की निन्दा करने वाला, भाइयों से झगड़ने वाला, शूर, बलवान एवं अभिमानी होता है।
दशम भाव- बुद्धिमान, शास्त्रज्ञ, प्रवासी एवं विजयी होता है।
एकादश भाव- मीठा बोलता है, विनोदी, विद्वान, ऐश्वर्य सम्पन्न, तेजस्वी, वस्त्रों आभूषणों से युक्त, लाभ प्राप्त करता है।
द्वादश भाव- यात्राएं, चंचल, उदार, खर्चीला,ऋणग्रस्त रहता है। बुध युक्त होे तो व्यापार में सफलता प्राप्त होती है।
लगन भाव- कृश, दुर्बल, उदास, भ्रमित, लोभी, कंजूस, बन्धुओं से विरोध, अशुद्धचित्त का होता है।
द्वितीय भाव -राजा से कष्ट, दुःखी एवं शत्रु जैसा बोलता है, बुद्धि भ्रम, स्त्री सुख से रहित होता है।
तीसरा भाव- शत्रु नाश, पराक्रमी, छोटे भाई-बहिन को कष्ट, कन्धे व कान में रोग, साझेदारी से लाभ होता है। यात्रा, बहुत खर्च, हृदय रोग एवं बहरापन होता है।
चतुर्थ भाव- माता रोगी रहती है। सौतेली माता से कष्ट, वाहन सुख एवं स्वभाव अस्थिर रहता है।
पंचम भाव- कपटी, दुर्बल, धैर्यहीन होता है। पुत्र कम, कन्याएं ज्यादा, पेट के रोग, तंत्र-मंत्र से भाइयों का घात करता है।
छटवा भाव- शत्रु नाश, मामा से वैर, स्त्री सुख कम, चैपायों से लाभ, अपने को सर्वज्ञ समझता है।
सप्तम भाव- स्त्री रहित, व्यभिचारी, अस्थिर, प्रवासी निवास स्थान बार-बार बदलने वाला, व्यसनी, राजा से भय होता है।
अष्टम भाव- पापकृत्य तत्काल प्रकट होता है। परस्त्री में आसक्त, नेत्ररोगी, दुराचारी, एवं दीर्घायु
नवम भाव- धर्म विरोधी, दुराचारी, झूठ बोलने वाला, क्रोधी, वक्ता, दूसरांे की निन्दा करने वाला, भाइयों से झगड़ने वाला, शूर, बलवान एवं अभिमानी होता है।
दशम भाव- बुद्धिमान, शास्त्रज्ञ, प्रवासी एवं विजयी होता है।
एकादश भाव- मीठा बोलता है, विनोदी, विद्वान, ऐश्वर्य सम्पन्न, तेजस्वी, वस्त्रों आभूषणों से युक्त, लाभ प्राप्त करता है।
द्वादश भाव- यात्राएं, चंचल, उदार, खर्चीला,ऋणग्रस्त रहता है। बुध युक्त होे तो व्यापार में सफलता प्राप्त होती है।
केतु/केतु- मित्रों से विरोध, शत्रुओं से कलह, देह ताप, अशुभ वचन से मनःसंताप, दूसरे के घर में रहना पड़े एवं धन की हानि हो।
केतु/शुक्र- पत्नी, ब्राह्मण व कुटुंबी जन से वैर एवं विरोध जनित क्लेश हो। कन्या जन्मे। मान हानि, अपमान हो। लोगों से कष्ट पहुँचे।
केतु/सूर्गु- रुजन का मरण, निज जन से विरोध व ज्वर से कष्ट हो। सरकार की ओर से कलह उपस्थित हो। वात, कफ जनित रोग किन्तु विदेश जाने से लाभ मिले।
केतु/चन्द्रमा- अनायास धन का लाभ व हानि भी हो। पुत्र से वियोग जन्य कष्ट हो। घर में शिशु का जन्म हो। नौकर व कन्या संतान का लाभ हो। कभी संतान के कारण दुःख उठाना पड़े।
केतु/मंगल- घर के वृद्धजन से कलह, बंधुओं से वियोग अथवा अनिष्ट, सर्प, चोर, अग्नि, शत्रु से भय एवं पीड़ा हो।
केतु/राहु- शत्रु निर्मित कलह से कष्ट हो। राजा, अग्नि व चोर से भय हो। जातक दूसरों को हानि पहुँचाने का प्रयत्न करे। उसकी निन्दा, भत्र्सना एवं गालियाँ खाए।
केतु/गुरु- श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति, देवोपासना, धन, भूमि लाभ, आय वृद्धि, उपहार व भेंट मिले, राज सम्मान व सुख मिले।
केतु/शनि- नौकरों से हानि, दूसरों से कष्ट, शत्रुओं से विवाद-झगड़ा, स्थान हानि, धन हानि, अंग भंग की संभावना बढ़े। नौकरी छूटना व स्थानान्तरण भी हो सकता है।
केतु/बुध- उत्तम पुत्र की प्राप्ति, उच्चाधिकारी/नियोक्ता से प्रशंसा मिले। भूमि व धन का लाभ हो। प्रबल वैरी द्वारा कष्ट, कृषि व पशु धन की क्षति हो।
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