Wednesday, 28 October 2015

कुंडली में मेष लग्न में मंगल का प्रभाव

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पर मंगल ग्रह का प्रभाव ज़न्मकालीन स्थिति एवं दैनिक गोचर गति के अनुसार पड़ता है । जातक के जन्म-समय के मंगल की स्थिति जन्मकुंडली में दी गई होती है ।
मेष लग्न
मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातकों को जन्मकुंडली के विभिन्न भावों में मंगल का प्रभाव
प्रथम (लग्न) भाव में बैठे मंगल के प्रभाव से जातक का शरीर पुष्ट होता है । उसमें आत्मबल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । उसे माता के सुख, घर, मकान आदि के संबंध तथा व्यवसाय एवं पत्नी के मामले में कुछ परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं । यदि जन्मकुंडली के द्वितीय ( धन) भाव में मंगल की स्थिति हो तो जातक को धन संचय में कमी तथा शरीर-स्थानों में कष्टों का सामना करना पड़ता है । विद्या-प्राप्ति के मार्ग में कठिनाइयों एबं संतानपक्ष में भी कुछ कष्ठों का सामना उसे करना पड़ेगा । भाग्य में रुकावटें आएंगी । यदि तृतीय (भ्राता) भाव में अपने मित्र बुध की राशि पर मंगल स्थित हो तो जातक बहुत हिम्मत वाला तथा पराक्रमी होता है । शत्रुओं पर उसका दबदबा रहता है । पिता का सुख मिलता है और राज्य की ओर से सम्मान की प्राप्ति होती है । यदि चतुर्थ (माता-सुख तथा भूमि) भाव में मंगल नीच का होकर अपने मित्र चंद्रमा की राशि में बैठा हो तो जातक की माता के सुख में कमी होती है । साथ ही भूमि, मकान एवं घरेलू सुखों में भी कमी आती है । स्त्री और व्यवसाय के संबंध में क्लेश उठाने पड़ सकते हैं । आर्थिक स्थिति सुधारने में उसे परिश्रम करना पड़ता है । यदि जन्मकुंडली के पंचम त्रिकोण एवं विद्या के स्थान में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि पर मंगल स्थित हो तो जातक को विद्या, बुद्धि तथा संतानपक्ष में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा । वह दीर्घायु होगा तथा उसे पुरातत्व का लाभ मिलेगा । व्यय की अधिकता रहेगी, किन्तु फिर भी आजीविका के साधन प्राप्त होते रहेंगे । यदि जन्मकुंडली के षष्ठ भाव एवं रोग स्थान में मंगल कन्या राशि में स्थित हो तो जातक अपने शत्रुओं पर प्रभाव बनाए रखने में सफल होगा । वह बहुत निडर और साहसी बना रहेगा । भाग्य के क्षेत्र में उसके समक्ष कुछ कठिनाइयां उत्पन्न होंगी । स्वाभिमान एवं प्रभाव प्रबल बना रहेगा । स्वास्थ्य अच्छा तथा व्यय अधिक होगा । यदि सप्तम केंद्र एवं स्त्री भवन में मंगल की स्थिति हो तो जातक को स्त्री-पक्ष से कुछ कष्ट रहेगा तथा व्यवसाय में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा । पिता और राज्य द्वारा उन्नति के साधन तथा यश की प्राप्ति होगी। शरीर स्वस्थ रहेगा । जातक यशस्वी व प्रभावशाली बना रहेगा । धन एवं कुटुम्ब की वृद्धि के लिए अधिक प्रयत्न करने पर भी अल्प सफलता ही प्राप्त होगी । यदि अष्टम (मृत्यु) भाव में मंगल स्वक्षेत्री होकर बैठा हो तो जातक की आयु में वृद्धि होगी तथा पुरातत्व का लाभ होगा । शरीर की सुन्दरता में कमी रहेगी और आय के क्षेत्र में कठिनाइयों के बाद सफलता मिलेगी । परिवार की ओर से थोडा असंतोष रहेगा,भाई-बहनों के सुख में कमी रहेगी तथा पराक्रम अधिक होगा । यदि नवम त्रिकोण एवं भाग्य (धर्म) स्थान में मंगल का प्रभाव हो तो जातक का भाग्य अच्छा बना रहेगा, किन्तु असंतोष के साथ-साथ व्यय भी अधिक होगा । माता के सुख, भूमि एवं मकान आदि के संबंध में भी कमी बनी रहेगी । यदि दशम भाव (राज्य और पिता के भवन) में मंगल अपने शत्रु शनि की मकर राशि पर उच्च का होकर स्थित हो तो जातक अपने पिता से वैमनस्य रखता हुआ भी उस स्थान तथा व्यवसाय की उन्नति करेगा । उसे राज्य द्वारा सम्मान की प्राप्ति और प्रभाव में वृद्धि होगी । माता एवं भूमि के सुख में कमी रहेगी । विद्या, बुद्धि व संतान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी । एकादश (लाभ) स्थान में सममित्र शनि की कुंभ राशि पर स्थित मंगल के से जातक को आय के साधनों में सफलता प्राप्त होती रहेगी, किन्तु कभी-कभी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ सकता है । परिवार की तरफ से असंतोष रहेगा । संतान तथा विद्या के क्षेत्र में भी कमी रहेगी । शत्रुपक्ष में उसका विशेष प्रभाव से जातक अधिक व्यय करने वाला, बाहरी स्थानों में भ्रमण करने वाला तथा शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी पाने वाला रहेगा । शत्रुपक्ष कुछ प्रबल रहेगा | व्यवसाय के क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है । उसे विशेष परिश्रम के बाद ही सफलता मिलेगी, जो जीवन पर्यन्त साथ देगी ।
Pt.P.S.Tripathi
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