कर्क लग्न में जन्म लेने वाले जातकों की जन्मकुंडली के विभिन्न भावों में मंगल का प्रभाव
लग्न (प्रथम भाव) में बैठे मंगल के प्रभाव से जातक के शारीरिक सौंदर्य एवं स्वास्थ्य में कमी रहती है । विद्या, संतान, राज्य एवं पिता के सुख में भी असंतोष बना रहता है । यहाँ से मंगल चौथी मित्र दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखता है, अत: जातक को माता, भूमि तथा मकानादि का सुख तो मिलता है, किन्तु स्त्री की तरफ से मानसिक संतोष नहीं मिलता । व्यवसाय में थोड़ी कठिनाइयों के बाद सफलता मिलती है, मगर दैनिक जीवन में छोटी-मोटी कठिनाइयां आती रहती हैं । द्वितीय भाव में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि पर मंगल के स्थित होने से जातक को धन और परिवार का पर्याप्त सुख मिलता है । समाज से सम्मान पाता है । संतान एवं विद्या की शक्ति प्राप्त होने पर भी अनेक परेशानियों का अनुभव होता है । आयु तथा धर्म की वृद्धि होती है । तृतीय भाव में मंगल की उपस्थिति से जातक का पराक्रम बढ़ता है तथा भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है । विद्या एवं संतान की शक्ति भी मिलती है । जातक अपने बुद्धि-बल से भाग्यशाली होता है तथा धर्म व यश प्राप्त करता है । पिता से सहयोग मिलता है, इसलिए नौकरी-व्यापार में सफल होता है । शत्रुपक्ष में प्रभाव एवं विजय की प्राप्ति होती है । चतुर्थ भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को माता, भूमि तथा भवनादि का स्नाप्त होता है । साथ ही उसे विद्या, बुद्धि और संतान के पक्ष में भी सफलता है । स्त्री एवं व्यवसाय के क्षेत्र में उन्नति तथा सुख का योग बनता है । धन- लाभ होता है । जातक सुखी, धनी और सफल जीवन व्यतीत करता है । पंचम भाव के होने पर जातक के मान-सम्मान एवं प्रभाव में वृद्धि होती है । लाभ प्राप्ति के लिए मानसिक परिश्रम अधिक करना पड़ता है । व्यय अधिक रहता है । बाहरी स्थानों के संपर्क से यश, धन तथा सफलता की प्राप्ति होती है । कर्क लग्न के अंतर्गत जन्मकुंडली के षष्ठ भाव में मंगल के होने पर जातक अपने शत्रुओं पर विजय पाता है । वह विद्या और बुद्धि का धनी होता है । संतान-सुख प्राप्त करता है । बुद्धियोग द्वारा भाग्य तथा धर्म की उन्नति होती है । शारीरिक सौंदर्य,स्वास्थ्य सुख एवं शांति में कुछ कमी बनी रहती है । सप्तम भाव में मंगल का प्रभाव होने से जातक को कईं सुंदर स्त्रियों का संयोग प्राप्त होता है । साथ ही उनसे कुछ मतभेद भी होता रहता है व्यावसायिक सफलता मिलती है और सम्मान भी । स्वास्थ्य में कमी तथा घरेलूसुख में असंतोष रहता है । जातक की शक्ति प्रबल रहती है । उसकी वाणी अति प्रभावशाली होती है । अष्टम भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को आयु,पिता, राज्य, नौकरी या व्यवसाय विद्या,बुद्धि तथा संतान के पक्ष में कुछ हानि उठानी पड़ती है, किन्तु धन भाव में मंगल के होने से जातक के भाग्य की बृद्धि होती है। परिश्रम द्वारा उसकी उन्नति संभव होती है । वह अति विशिष्ट व प्रभावशाली व्यक्ति होता है । सप्तम भाव में मंगल के होने पर जातक को कठिनाइयों के साथ भी एवं व्यवसाय से खुस-सफलता की प्राप्ति होती है । पिता से कुछ मतभेद रहते हैं । उसका व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक होता है तथा वह बहुत सौभाग्यशाली होता है । उसे जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं । यदि जन्मकुंडली के अष्टम भाव में मंगल हो तो जातक दीर्घायु होता है, किन्तु भाग्य का धनी नहीं होता । धर्म में भी उसकी कोई विशेष आस्था नहीं होती । वह जो भी कार्य करता है, उसमें खूब आमदनी होती है । परिवारिक सुख मिलता है । ऐसा जातक यशस्वी होता है । नवम भाव में मंगल के होने से जातक बड़ा भाग्यवान होता है । उसमें बहुत अधिक व्यय करने की आदत नहीं होती । उसे किसी चीज की कमी नहीं रहती । उन्नति के प्रति वह पूर्ण आशावान होता है । यहीं आशा उसे उच्च शिखर तक ले जाती है । यदि दशम आव में मंगल हो तो जातक निराशावादी नहीं होता, क्योंकि वह पूर्णतया आशावादी होता है । व्यवसाय के क्षेत्र में वह उन्नति, सफलता, सम्मान और लाभ-सभी कुछ प्राप्त करता है । जातक मधुरभाषी, धैर्यवान,विनम्र तथा सज्जन होता है । यदि एकादश भाव में मंगल स्थित हो तो जातक की आमदनी में वृद्धि होती है । मकानादि की प्राप्ति होती है । आजीविका साधन में कोई कमी नहीं रहती । परिवार का पूर्ण सुख मिलता है । रोगों और बेकार के झंझटों में उसे विजय मिलती है । जातक अत्यंत प्रभावशाली, शत्रुजयी, धनी तथा ननिहाल का भी सुख प्राप्त करने वाला होता है । द्वादश (व्यय ) भाव में अपने मित्र चंद्रमा को कर्क राशि पर स्थित नीच के मंगल जातक को खर्च के मामले में परेशानी उठानी पड़ती है । बाहरी संबधित से भी कष्ट होता है । भाग्य उसका साथ नहीं देता, फिर भी नौकरी या कारोबार से उसे लाभ होता है । धर्म में उसकी आस्था न के बराबर होती है ।
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लग्न (प्रथम भाव) में बैठे मंगल के प्रभाव से जातक के शारीरिक सौंदर्य एवं स्वास्थ्य में कमी रहती है । विद्या, संतान, राज्य एवं पिता के सुख में भी असंतोष बना रहता है । यहाँ से मंगल चौथी मित्र दृष्टि से चतुर्थ भाव को देखता है, अत: जातक को माता, भूमि तथा मकानादि का सुख तो मिलता है, किन्तु स्त्री की तरफ से मानसिक संतोष नहीं मिलता । व्यवसाय में थोड़ी कठिनाइयों के बाद सफलता मिलती है, मगर दैनिक जीवन में छोटी-मोटी कठिनाइयां आती रहती हैं । द्वितीय भाव में अपने मित्र सूर्य की सिंह राशि पर मंगल के स्थित होने से जातक को धन और परिवार का पर्याप्त सुख मिलता है । समाज से सम्मान पाता है । संतान एवं विद्या की शक्ति प्राप्त होने पर भी अनेक परेशानियों का अनुभव होता है । आयु तथा धर्म की वृद्धि होती है । तृतीय भाव में मंगल की उपस्थिति से जातक का पराक्रम बढ़ता है तथा भाई-बहनों का सुख प्राप्त होता है । विद्या एवं संतान की शक्ति भी मिलती है । जातक अपने बुद्धि-बल से भाग्यशाली होता है तथा धर्म व यश प्राप्त करता है । पिता से सहयोग मिलता है, इसलिए नौकरी-व्यापार में सफल होता है । शत्रुपक्ष में प्रभाव एवं विजय की प्राप्ति होती है । चतुर्थ भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को माता, भूमि तथा भवनादि का स्नाप्त होता है । साथ ही उसे विद्या, बुद्धि और संतान के पक्ष में भी सफलता है । स्त्री एवं व्यवसाय के क्षेत्र में उन्नति तथा सुख का योग बनता है । धन- लाभ होता है । जातक सुखी, धनी और सफल जीवन व्यतीत करता है । पंचम भाव के होने पर जातक के मान-सम्मान एवं प्रभाव में वृद्धि होती है । लाभ प्राप्ति के लिए मानसिक परिश्रम अधिक करना पड़ता है । व्यय अधिक रहता है । बाहरी स्थानों के संपर्क से यश, धन तथा सफलता की प्राप्ति होती है । कर्क लग्न के अंतर्गत जन्मकुंडली के षष्ठ भाव में मंगल के होने पर जातक अपने शत्रुओं पर विजय पाता है । वह विद्या और बुद्धि का धनी होता है । संतान-सुख प्राप्त करता है । बुद्धियोग द्वारा भाग्य तथा धर्म की उन्नति होती है । शारीरिक सौंदर्य,स्वास्थ्य सुख एवं शांति में कुछ कमी बनी रहती है । सप्तम भाव में मंगल का प्रभाव होने से जातक को कईं सुंदर स्त्रियों का संयोग प्राप्त होता है । साथ ही उनसे कुछ मतभेद भी होता रहता है व्यावसायिक सफलता मिलती है और सम्मान भी । स्वास्थ्य में कमी तथा घरेलूसुख में असंतोष रहता है । जातक की शक्ति प्रबल रहती है । उसकी वाणी अति प्रभावशाली होती है । अष्टम भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को आयु,पिता, राज्य, नौकरी या व्यवसाय विद्या,बुद्धि तथा संतान के पक्ष में कुछ हानि उठानी पड़ती है, किन्तु धन भाव में मंगल के होने से जातक के भाग्य की बृद्धि होती है। परिश्रम द्वारा उसकी उन्नति संभव होती है । वह अति विशिष्ट व प्रभावशाली व्यक्ति होता है । सप्तम भाव में मंगल के होने पर जातक को कठिनाइयों के साथ भी एवं व्यवसाय से खुस-सफलता की प्राप्ति होती है । पिता से कुछ मतभेद रहते हैं । उसका व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक होता है तथा वह बहुत सौभाग्यशाली होता है । उसे जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं । यदि जन्मकुंडली के अष्टम भाव में मंगल हो तो जातक दीर्घायु होता है, किन्तु भाग्य का धनी नहीं होता । धर्म में भी उसकी कोई विशेष आस्था नहीं होती । वह जो भी कार्य करता है, उसमें खूब आमदनी होती है । परिवारिक सुख मिलता है । ऐसा जातक यशस्वी होता है । नवम भाव में मंगल के होने से जातक बड़ा भाग्यवान होता है । उसमें बहुत अधिक व्यय करने की आदत नहीं होती । उसे किसी चीज की कमी नहीं रहती । उन्नति के प्रति वह पूर्ण आशावान होता है । यहीं आशा उसे उच्च शिखर तक ले जाती है । यदि दशम आव में मंगल हो तो जातक निराशावादी नहीं होता, क्योंकि वह पूर्णतया आशावादी होता है । व्यवसाय के क्षेत्र में वह उन्नति, सफलता, सम्मान और लाभ-सभी कुछ प्राप्त करता है । जातक मधुरभाषी, धैर्यवान,विनम्र तथा सज्जन होता है । यदि एकादश भाव में मंगल स्थित हो तो जातक की आमदनी में वृद्धि होती है । मकानादि की प्राप्ति होती है । आजीविका साधन में कोई कमी नहीं रहती । परिवार का पूर्ण सुख मिलता है । रोगों और बेकार के झंझटों में उसे विजय मिलती है । जातक अत्यंत प्रभावशाली, शत्रुजयी, धनी तथा ननिहाल का भी सुख प्राप्त करने वाला होता है । द्वादश (व्यय ) भाव में अपने मित्र चंद्रमा को कर्क राशि पर स्थित नीच के मंगल जातक को खर्च के मामले में परेशानी उठानी पड़ती है । बाहरी संबधित से भी कष्ट होता है । भाग्य उसका साथ नहीं देता, फिर भी नौकरी या कारोबार से उसे लाभ होता है । धर्म में उसकी आस्था न के बराबर होती है ।
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