Tuesday, 27 October 2015

मंगल का राशिगत स्वरुप

मेष राशि
यदि मंगल मेष राशि में हो तो जातक सत्य बोलने वाला, राजा से भूमि, धन, सम्मान पाने वाला, तेजस्वी, साहसी, शूरवीर, नेता अथवा शल्य-चिकित्सक, शीघ्र आवेश ( अथवा रोष) में आ जाने वाला, प्रगल्भ, सावधान, अपने कुल में अधिक प्रसिद्ध, समाज में प्रतिष्ठित, समाज सुधारक या गाम प्रधान होता है । वह बड़ा ही निर्भीक, निडर, आशावान, जिज्ञासु अनुभवी, अनवरत श्रमशील तथा खतरों में आंखें बंद करके बैठने वाला होता है । पुलिस या सेना में किसी उच्चपद पर आसीन हो जाने पर उसे कभी पराभव, पराजय और शैथिल्य का मुंह नहीं देखना पड़ता । वह सदैव विजयी होता है ।
वृष राशि
वृष राशिस्थ मंगल में जन्म लेने वाला जातक स्वभाव से उग्र, कठोर, जादूगरी एवं तांत्रिक क्रियाओं में रुचि रखने वाला, विवेकहीन,द्वेषी, प्रवासी, अल्प सुख पाने वाला, शत्रुओं से पीडित, पापी, लडाकू प्रवृति का, वंचक, कपटी, वाचाल, कल्पनाओं में खोया रहने वाला तथा स्त्री के वशीभूत रहता है । वह चरित्रहीन भी होता है और दूसरे की स्त्रियों पर आसक्ति रखता है । उसे धनवान पत्मी मिलती है । वह हर समय छैला बना रहता है । श्रृंगार और सज्जा में लगा रहता है । सुंदर चेहरा-मोहरा बनाकर चलता है । देखने में सीधा दिखाई देता है, किन्तु इसके विपरीत वह कठोर और क्रूर हदय का होता है ।
मिथुन राशि
मिथुन राशिस्थ मंगल में जन्म लेने वाले जातक बहुत कलाओं को जानने कला, अपने जनों से कलह करने वाला, अपने स्थान से दूसरे स्थान में वास करने वाला और पुत्रादि से सुखी होता है । जातक एक श्रेष्ठ शिल्पकार, कार्यदक्ष,जनहितैषी,गायनादि विद्या में निपुण, कृपण, बुद्धिमान, शोधक, वक्ता, शीघ्र निर्णय देने वाला, विधिवेत्ता, कुशल व्यापारी, निडर और अपनी चिकनी-चुपडी बातों से दूसरों का धन हड़पने वाला होता है ।
कर्क राशि
यदि मंगल कर्क राशि में हो तो जातक दुस्साहसी, चौर्य कर्म करने वाला, सुखाभिलाषी, दीनसेवक, कृषक, रोगी, दुष्ट,वाचाल, मुखर, बकवादी, हथेली पर सरसों जमाने वाला, झूठा, दुराग्रही तथा पापात्मा होता है । वह कहता बहुत और करता कम है । ऐसा जातक अपने मन के भावों को व्यक्त करने में अयोग्य और असमर्थ रहता है । उसका पारिवारिक जीवन अनसुलझा होता है, अर्थात्-समसयाओं का अखाड़ा बना रहता है । उस पर शत्रु हावी रहते हैं एवं पग-पग पर हानि पहुंचाते हैं । वह माता तथा गृहस्थी के सुख से अछूता रहता है । सब उससे असहयोग करते हैं । इस कारण वह आजन्म असंतोषपूर्ण जीवन यापन करता है ।
सिंह राशि
यदि मंगल सिह राशि में हो तो जातक शूरवीर, सदाचारी, परोपकारी, कार्य-निपुण और स्नेहशील होता है । उसे सदा धन का अभाव रहता है तथा वह अभाव में ही जीवन-यापन करता है । जातक काननचारी होता है । क्लेश विग्रह और चिता में निमग्न रहता है । स्त्री एवं पुत्र का सुख उसे अल्प ही मिल पता है ।जातक गणितशास्त्र का विशेषज्ञ, गूढ़ विद्या का ज्ञाता तथा अनेक शत्रु वाल होंन्ना है । जातक कुशलदायी, अत्यंत परिश्रमी, स्वतंत्र विचारों वाला, मननशील, विचारक, उद्दण्डी, उग्र प्रकृति वाला तथा अल्प संतान वाला होता है । ऐसा व्यक्ति विश्वसनीय और उदार भी होता है । उसकी आशापूर्ण नहीं होती । समाज में उसकी उपेक्षा होती है । वह निराश प्रेमी बनकर रह जाता है । पत्नी और बच्चे उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते बल्कि विरोध करते हैं और प्रतिकूल आचरण एवं व्यवहार करते हैं । इस कारण वह उपहास और परिहास का पात्र बनकर रह जाता है ।
कन्या राशि
यदि मंगल कन्या राशि में हो तो जातक शिल्पकार, लोकमान्य, पापभीरु, सुखी एवं व्यवहार कुशल होता है । उसके पुत्र तो अनेक होते हैं, किन्तु मित्र कोई नहीं होता । यदि होता भी है तो घातक, ढोंगी, उग और वंचक होता है । उसे संगीतविद्या का अनुराग होता है । वह रात…दिन उसी में रत रहता है । जातक के हृदय में शौर्य और साहस अति प्रबल रूप में भरा रहता है । वह युद्धविद्या में भी कुशल होता है । नविन योजनाओं से शत्रु को परास्त करता है । कठिन वातावरण में भी साहस और दिलेरी से काम लेता है । पीछे हट जाना तो जैसे जानता ही नहीं । देश की रक्षा हेतु प्राणों की बलि देने से भी नहीं चूकता । दुराग्रही भी अधिक होता है । जो व्यक्ति उसके साथ उपकार करता है या बुरे वक्त में उसके काम आता है, वह उसे कभी नहीं भूलता । उपकार का बदला उपकार से ही देना चाहता है और देता भी है । वह उचित समय आने को प्रतीक्षा करत्ता है ।
तुला राशि
यदि जातक का जन्म तुला राशि में हो और उसमें मंगल का निवास हो तो वह प्रवासी होगा अर्थात् घर या जन्मभूमि में जीवन-यापन नहीं करेगा) । दूसरों का धन प्राप्त करने का यत्न करता रहेगा | ऐसा व्यक्ति वहुत बोलने वाला होता है |उसके मन में काम-वासना धधकती रहती है । वह परस्त्री से प्रेम करता है । मित्रों से अनबन रखता है । इतना नीरस और हलका होता है कि मैत्री का निर्वाह नहीं कर पाता । वह मायावी, प्रवंचक और कुचक्री होता है । मन का कठोर होता है । कीमती और स्वच्छ वस्त्र धारण करता है ।
वृश्चिक राशि
यदि जन्मांग चक्र में मंगल वृश्चिक राशि में हो तो जातक पातकी, दुष्ट, शठ, दुराचारी, पापी, नेता, व्यापारी, चोरी करने में दक्ष तथा चोरों का मुखिया होता है । उसका स्वभाव भी मधुर और विनम्र नहीं होता, बल्कि. क्रूर एवं कठोर होता है । जातक कूटनीति से कार्य करने वाला, चालाक और स्वार्थी होता है । उसका मन कमी स्थिर नहीं रहता, बुद्धि सास्विक नहीं होती ।ऐसा जातक दंत चिकित्सक अथवा औषधि विक्रेता होता है । व्यवहार में कच्चा और अनाड़ी नहीं होता, कुशल खिलाडी होता है |
धनु राशि
यदि मंगल धनु राशि में हो तो जातक मक्कार, कपटी,मिथ्यावादी, निर्दयी,कठोर,दुष्ट, कदाचारी और पराधीन होता है । उसके बहुत से षात्रु होते हैं । उसे पुत्रपक्ष से कोई सुख नहीं मिलता। जातक राज्यसत्ता के निकट रहने वाला होता है । वह किसी से नहीं डरता एवं स्पष्ट वक्ता होता है । उनसे लाभ उठाने की योजनाएं बनाता रहता है तथा स्वयं भी राजनीति का पंडित बन जाता है । यदि मंगल धनु राशि में हो तो जातक दाता, बहुत धनी, कुल में श्रेष्ट, कलाओं में कुशल तथा सुंदर व हितकारिणी स्त्री का पति होता है । जातक विग्रह, उत्पात, संघर्ष और विवाद, को व्यर्थ ही अपना लेता है, जिसके कारण उसे भूख एवं विनोद नहीं मिलता । वह हर समय चिंतन-मनन में डूबा रहता है तथा उचित समाधान न होने से परेशान रहता है । पैतृक धन से मौज उड़ाता है । एक स्त्री (या केवल पत्नी) से उसकी वासना नहीं बुझती । वह अवसरवादी होता है । स्वयं परिश्रम करके अधिक धन नहीं संचय कर पाता है ।
मकर राशि
यदि मंगल मकर राशि में हो तो जातक ख्याति प्राप्त करने वाला, पराक्रमी, सफल नेता, धन- धान्य, यश, वैभव और संपन्नता से भरपूर होता है । छोटी-मोटी बातें उसके मस्तिष्क में नहीं घूमती । वह रहता धरती के ऊपर है, किन्तु उसकी कल्पनाएं आकाश को चूमती हैं । वह असंभव कार्यों के स्वप्न देखता है तथा एक तरह से स्वप्नों की दुनिया में ही जीता है ।ऐसै जातक के कई पुत्र होते हैं । वह एक राजा के समान प्रभावशाली बनना चाहता है, किन्तु बन नहीं पाता । उसकी बुद्धि और प्रतिभा अति प्रखर एवं उपजाऊ होती है । वह सामाजिक लाभ उठाने कला, स्वभाव का उग्र, शूरवीर,शास्त्र कला में प्रवीण और षड्यंत्रों की रचना करने में पारंगत एवं निपुण होता है ।
कुंभ राशि
कुंभ राशिस्थ मंगल का जातक घर में कलह करने वाला, दीन, पराक्रम और धन में रहित. बुद्धिहीन तथा शत्रु से पीडित होता है ।जातक आचार-भ्रष्ट होता है, टेढा-मेढा चलता है तथा वासना के पीछे सब कुछ भूल जाता है । मत्सरवृति इतनी अधिक होती है कि वह दूसरे की उन्नति और प्रगति देखकर इर्षा करने लगता है । सट्टे का चस्का इतना अजीब होता है कि वह उसमें अपनी अपरिमित पूंजी झोक देता है । लेकिन कोई बड़ी रकम कभी उसके हाथ नहीं आती और आशा में ही वह मिट जाता है ।
मीन राशि
यदि मंगल मीन राशि में हो तो जातक अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता है । रोग उसका पीछा नहीं छोड़ते । वह प्रवासी बन जाता है तथा परदेशों का भ्रमण करता फिरता है । तंत्रविद्या का चस्का उसे चक्कर में डाल देता है । वह इस विद्या से लाभ उठाना चाहता है, पर उसके स्वप्न चूर-चूर हो जाते हैं । उसके इस कृत्य से परिवारजन चिढ़ जाते हैं, उसकी निंदा और भत्सर्ना करते हैं । जातक का मन चंचल एवं प्रपंची हो जाता है । उसे न तो समाज का भय रहता है और न ही वह ईश्वर से डरता है । किसी के समझाने से नहीं समझता तथा नास्तिक बन जाता है । वह दुराग्रही बनकर आत्म-सम्मान भी नष्ट कर देता है । वह पाखंड और अनाचार को महत्व देता है । वह बकवादी हो जाता है, किसी की सुनना पसंद नहीं करता और वाचाल बनकर अपना लिब कुछ नष्ट कर लेता है । वह हर समय अज्ञात बहता है ।
Pt.P.S.Tripathi
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