Saturday, 24 October 2015

भारत में भ्रष्टाचार के ज्योतिषीय कारण और निवारण

भ्रष्टाचार को सामान्य रूप में देखें तो किसी व्यक्ति या समाज द्वारा अपने भाग्य या पुरुषार्थ से ज्यादा पाने की चाह। स्वार्थ में लिप्त होकर कोई भी किया गया गलत कार्य भ्रष्टाचार होता है। भ्रष्टाचार का दायरा विशाल है। भ्रष्टाचार के कई रूप हैं- रिश्वत, कमीशन लेना, काला बाजारी, मुनाफाखोरी, मिलावट, कर्तव्य से भागना, चोर-अपराधियों को सहयोग करना, अतिरिक्त गलत कार्य में रुचि लेना आदि सभी अनुचित कार्यों को भ्रष्टाचार कहा जायेगा। दुर्भाग्य से भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वैसे देखा जाए तो सारे विश्व में भ्रष्टाचारी राक्षस का आतंक फैला हुआ है। भारत के सारे क्षेत्र प्रशासनिक से लेकर शैक्षिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का राज है।इसे ज्योतिष से देखा जाये तो लग्नस्थ राहू चारित्रिक पवित्रता का अभाव, भाग्येश और दशमेश शनि तीसरे स्थान में सूर्य के साथ होने से भाग्य और पुरुषार्थ की कमी तृतीयेश चंद्रमा अपने स्थान से बारहवे होने से स्वभाव में सुचिता की कमी है। जरूरी है कि समाज में लोगों को संयुक्त होकर सूर्य को प्रबल बनाने के लिए सामूहिक रूप भ्रष्टाचार का विरोध करने एवं भ्रष्ट आचरण का सामूहिक बहिस्कार करने के साथ यज्ञ एवं हवन करना चाहिए। सामूहिक रूप से आदित्य-हृदय स्त्रोत का पाठ करने से समाज में सुचिता आयेगी और इस तरह की समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। इसी प्रकार भारत की कुंडली में लग्रस्थ राहु कुंडली मारकर बैठा है, उसके लिए सभी को आगे बढ़कर भौतिकता से परे देशहित एवं समाजकल्याण के लिए सोचना होगा।
Pt.P.S.Tripathi
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