आंखे प्रकृति की ओर से मिला हुआ वह हसीन उपहार है, जिसकी सहायता से न सिर्फ सारी दुनिया को देख सकते हैं, बल्कि सभी प्रकार के अपने कार्यों को आसानी से पूरा कर सकते हैं। इसलिए आंखों की नियमित देखभाल आवश्यक है; अन्यथा आंखों की ज्योतिसमाप्त हो सकती है। ग्लोकोमा आंखों के भयंकर रोगों में से एक है, जिसमें प्रारंभिकअवस्था में पूर्णतया ध्यान न देने पर आंखों की रोशनी समाप्त हो जाती है। ग्लोकोमा क्या है? : आंखों में कॉर्निया और लेंस के बीच पानी जैसा एक द्रवपाया जाता है, जिसे जलरस कहतेहैं। इस द्रव का कार्य नेत्र गोलक केअंदर नियमित रूप से एक प्राकृतिक दबाव बनाए रखना है, ताकि नेत्र कीस्वाभाविक गोलाई बनी रहे। इसके अलावा इसका दूसरा कार्य आंखों के ऊतकों, लेंस और कॉर्निया आदि कोपोषक तत्व प्रदान करना भी है। प्रकृतिने ही इसके निर्माण, नियंत्रण औरनिकास की अपनी व्यवस्था कर रखी है। लेकिन जब किसी कारणवश इसकेनिर्माण और निकास का संतुलन बिगड़जाता है, तो आंखों के भीतर इस द्रवका दबाव सामान्य से अधिक बढ़नेलगता है। इससे दृष्टि नाड़ी परअनावश्यक और अनपेक्षित दबाव पड़ने लगता है। वास्तव में आंखों के इसी आंतरिक दबाव के बढ़ने की अवस्था को ही ग्लोकोमा कहते हैं।यदि यह अनपेक्षित दबाव लगातार बना रहा, तो इससे 'ऑप्टिक नर्व' की संवेदनशीलता समाप्त होने लगती है,जिसके परिणामस्वरूप आंखों की ज्योतिभी नष्ट होने लगती है। यदि रोग का प्रारंभिक अवस्था में उपचार न हो, तो'ऑप्टिक नर्व' पूरी तरह निष्क्रिय हो जाती है और आंखों की ज्योति स्थायीरूप से समाप्त हो जाती है।आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों नेग्लोकोमा की दो किस्में बतायी हैं।सादा ग्लोकोमा और तीव्र वेदना वालाग्लोकोमा। सादे ग्लोकोमा में द्रवनिकास नलियों का कोण संकुचितनहीं होता, बल्कि निकास नलियां हीसंकरी हो जाती हैं। यह अक्सर अधेड़ावस्था और स्त्रियों में अधिकहोता है। इसमें आंखों के भीतरी दबावमें एकाएक वृद्धि नहीं होती। इसलिएइसका उपचार भी सरलता से नहीं होपाता। इसमें पढ़ने-लिखने, या अन्यबारीक कार्य करने में परेशानी होनेलगती है। आंखों में कभी-कभी तनावऔर सामयिक सिर दर्द के लक्षण भीउभर सकते हैं। ऐसी स्थिति मेंलापरवाही न करें और तुरंत जांचऔर उपचार करवाएं।तीव्र वेदनायुक्त ग्लोकोमा : इस अवस्थामें निकास नलियों का कोण संकुचितहो जाता है। इस कारण निकासनलियों के संकुचित न रहने की स्थितिमें भी अवरुद्ध कोण की वजह से द्रवकी निकासी में बाधा पड़ जाती है,क्योंकि इसमें द्रव निकास नलियों का कोण प्राकृतिक रूप से ही थोड़ासंकुचित रहता है। इसका यह रूप26 वर्ष के बाद ही उभर कर सामनेआता है।सादा ग्लोकोमा एकाएक हमला करताहै। इसकी शुरुआत दौरे के रूप मेंहोती है। आंखों में एकाएक तनाव बढ़जाने से तेज दर्द होता है, मानों कोईआंखों को बाहर की ओर निकाल रहाहो। आंखें तीव्र रूप से सूज जाती हैं।दृष्टि का धूमिल पड़ जाना, सिर में भयंकर दर्द एवं उल्टी होना आदिइसके लक्षण हो सकते हैं। इसे 'एक्यूटकंजेस्टिव' ग्लोकोमा के नाम से भीजाना जाता है।सावधानियां : जैसे-जैसे आयु बढ़तीहै, शरीर में कई प्रकार के विकारउत्पन्न होने लगते हैं। नस नाड़ियोंमें कमजोरी आती है। इसलिए बढ़तीउम्र के इस दौर में पहुंचने के बाद सेआंखों की नियमित जांच करवाते रहनाआवश्यक है। इससे आंखों के आंतरिकदबाव में आये परिवर्तन समय पर ध्यानमें आ जाते हैं, जिससे ग्लोकोमा के शिकार होने से बचा जा सकता है।यदि पहले किसी को परिवार मेंग्लोकोमा हुआ है, उसे तो समय पर अवश्य ही जांच करवानी चाहिए।मधुमेह के रोगियों में ग्लोकोमा होनेकी संभावना सामान्य से आठ गुणाअधिक होती है। अतः मधुमेह के रोगीको इसका ध्यान करना चाहिए।मोतिया बिंद के रोगियों में अक्सर यहधारणा रहती है कि मोतियों के अधिकपकने पर शल्य क्रिया करवाना अच्छा रहता है। लेकिन यह धारणा गलतहै। इससे ग्लोकोमा हो जाता है।अत्यधिक मानसिक श्रम, उत्तेजना,क्रोध, रात्रि जागरण, मादक द्रव्यों कासेवन आदि से बचना चाहिए औरआंखों के स्वास्थ्य हेतु जो आवश्यकसामान्य नियम हैं, उनका पालन प्रारंभसे करना भी लाभदायक सिद्ध होताहै।याद रहे, ग्लोकोमा से नष्ट हुई रोशनीपुनः वापस नहीं आ सकती। अतःऐसा कोई भी लक्षण उभरे, तो अपनेचिकित्सक से संपर्क करें और उनकीसलाह मानें।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ग्लोकोमाःग्लोकोमा आंखों का रोग है, जिसमें आंखों की रोशनी समाप्त हो जाती है। इसका कारण नेत्र गोलक के अंदर के जलरस (द्रव) के दबाव का सामान्यसे अधिक होना है। ज्योतिष में आंखोंकी रोशनी के कारक सूर्य और चंद्र हैं। काल पुरुष की कुंडली में द्वितीयभाव और द्वादश भाव क्रमशः दायीं और बायीं आंखों के स्थान हैं। किसी भी कारण अगर सूर्य-चंद्र, द्वितीय और द्वादश भाव दुष्प्रभावों में आ जाएं और लग्न, या लग्नेश भी दुष्प्रभाव में रहे,तो जातक को ग्लोकोमा जैसा आंखोंका रोग हो सकता है। रोग संबंधितग्रह की दशा-अंतर्दशा और प्रतिकूलगोचर के कारण उत्पन्न होता है।
विभिन्न लग्नों में ग्लोकोमा : मेष लग्न : लग्नेश तृतीय भाव मेंसूर्य से अस्त हो, बुध द्वितीय भाव मेंहो, राहु केतु से युक्त, या दृष्ट हो,सूर्य और चंद्र दोनों पर शनि की पूर्णदृष्टि हो, तो ग्लोकोमा होता है। वृष लग्न : सूर्य द्वितीय भाव में लग्नेशसे युक्त और लग्नेश अस्त हो, गुरुचतुर्थ, या दशम भाव में चंद्र से युक्तहो, तो ग्लोकोमा जैसा आंखों का रोगहोता है। मिथुन लग्न : लग्नेश बुध सूर्य सेअस्त हो कर अष्टम भाव में हो, मंगलद्वितीय, या द्वादश भाव में पूर्ण दृष्टिसे देखे, या बैठे और चंद्र शनि सेयुक्त हो तथा उसपर मंगल की दृष्टिहो, तो ग्लोकोमा होता है। कर्क लग्न : लग्नेश चंद्र सूर्य से पूर्णअस्त हो कर षष्ठ, या अष्टम भाव मेंहो और बुध सप्तम भाव में हो, राहुऔर शनि लग्न, या लग्नेश को पूर्णदृष्टि से देखते हों, तो आंखों कीरोशनी ग्लोकोमा के कारण समाप्त होजाती है। सिंह लग्न : सूर्य षष्ठ भाव में शनिसे युक्त हो, चंद्र लग्न में राहु से युक्तहो, बुध सप्तम भाव में अस्त न हो,मंगल त्रिक भावों में रहे, तो ग्लोकोमारोग होता है। कन्या लग्न : चंद्र-मंगल द्वितीय भावमें हों और केतु से दृष्ट हों, शुक्र औरबुध सूर्य से अस्त हो कर त्रिक भावोंमें हों और गुरु से दृष्ट हों, तो आंखोंसे संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं। तुला लग्न : लग्नेश शुक्र सूर्य सेअस्त हो और द्वितीय, या द्वादश भावमें हो, गुरु द्वितीयेश मंगल से युक्त होकर द्वितीय भाव पर दृष्टि रखे, राहुषष्ठ भाव में अकेला हो, तो ग्लोकोमाजैसा रोग होता है। वृश्चिक लग्न : लग्नेश त्रिक भावोमें हो कर राहु, या शनि से युक्त, यादृष्ट हो, चंद्र बुध से युक्त हो और राहुकेतु से दृष्ट हो, तो ग्लोकोमा रोगहोता है। धनु लग्न : लग्नेश गुरु अष्टम भावमें हो और चंद्र द्वितीय, या द्वादश भावमें राहु, या केतु से दृष्ट हो, शुक्र औरबुध लग्न में हों, सूर्य द्वितीय भाव मेंहो, तो ग्लोकोमा होता है। मकर लग्न : गुरु लग्न में हो, लग्नेश त्रिक भावों में सूर्य से अस्त हो, चंद्रभी अस्त हो, मंगल द्वितीय, या द्वादशभाव को देखता हो, केतु द्वितीय, याद्वादश भाव में हो, तो ग्लोकोमा होताहै। कुंभ लग्न : शनि सूर्य से अस्त होकर द्वितीय भाव में हो, बुध लग्न मेंअस्त न हो, चंद्र राहु से युक्त हो करत्रिक भावों में हो, तो ग्लोकोमा होनेकी संभावना बढ़ जाती है। मीन लग्न : लग्नेश वृष, या तुला राशि में अस्त हो, बुध द्वितीय, यासप्तम भाव में अस्त न हो, द्वितीयेशशुक्र से युक्त हो कर षष्ठ भाव में, राहुया केतु द्वितीय और द्वादश भाव परदृष्टि रखे, तो ग्लोकोमा होता है।उपर्युक्त सभी योग चलित पर आधारितहैं। संबंधित ग्रह की दशांतर्दशा औरगोचर के प्रतिकूल होने पर ही रोगहोता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ग्लोकोमाःग्लोकोमा आंखों का रोग है, जिसमें आंखों की रोशनी समाप्त हो जाती है। इसका कारण नेत्र गोलक के अंदर के जलरस (द्रव) के दबाव का सामान्यसे अधिक होना है। ज्योतिष में आंखोंकी रोशनी के कारक सूर्य और चंद्र हैं। काल पुरुष की कुंडली में द्वितीयभाव और द्वादश भाव क्रमशः दायीं और बायीं आंखों के स्थान हैं। किसी भी कारण अगर सूर्य-चंद्र, द्वितीय और द्वादश भाव दुष्प्रभावों में आ जाएं और लग्न, या लग्नेश भी दुष्प्रभाव में रहे,तो जातक को ग्लोकोमा जैसा आंखोंका रोग हो सकता है। रोग संबंधितग्रह की दशा-अंतर्दशा और प्रतिकूलगोचर के कारण उत्पन्न होता है।
विभिन्न लग्नों में ग्लोकोमा : मेष लग्न : लग्नेश तृतीय भाव मेंसूर्य से अस्त हो, बुध द्वितीय भाव मेंहो, राहु केतु से युक्त, या दृष्ट हो,सूर्य और चंद्र दोनों पर शनि की पूर्णदृष्टि हो, तो ग्लोकोमा होता है। वृष लग्न : सूर्य द्वितीय भाव में लग्नेशसे युक्त और लग्नेश अस्त हो, गुरुचतुर्थ, या दशम भाव में चंद्र से युक्तहो, तो ग्लोकोमा जैसा आंखों का रोगहोता है। मिथुन लग्न : लग्नेश बुध सूर्य सेअस्त हो कर अष्टम भाव में हो, मंगलद्वितीय, या द्वादश भाव में पूर्ण दृष्टिसे देखे, या बैठे और चंद्र शनि सेयुक्त हो तथा उसपर मंगल की दृष्टिहो, तो ग्लोकोमा होता है। कर्क लग्न : लग्नेश चंद्र सूर्य से पूर्णअस्त हो कर षष्ठ, या अष्टम भाव मेंहो और बुध सप्तम भाव में हो, राहुऔर शनि लग्न, या लग्नेश को पूर्णदृष्टि से देखते हों, तो आंखों कीरोशनी ग्लोकोमा के कारण समाप्त होजाती है। सिंह लग्न : सूर्य षष्ठ भाव में शनिसे युक्त हो, चंद्र लग्न में राहु से युक्तहो, बुध सप्तम भाव में अस्त न हो,मंगल त्रिक भावों में रहे, तो ग्लोकोमारोग होता है। कन्या लग्न : चंद्र-मंगल द्वितीय भावमें हों और केतु से दृष्ट हों, शुक्र औरबुध सूर्य से अस्त हो कर त्रिक भावोंमें हों और गुरु से दृष्ट हों, तो आंखोंसे संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं। तुला लग्न : लग्नेश शुक्र सूर्य सेअस्त हो और द्वितीय, या द्वादश भावमें हो, गुरु द्वितीयेश मंगल से युक्त होकर द्वितीय भाव पर दृष्टि रखे, राहुषष्ठ भाव में अकेला हो, तो ग्लोकोमाजैसा रोग होता है। वृश्चिक लग्न : लग्नेश त्रिक भावोमें हो कर राहु, या शनि से युक्त, यादृष्ट हो, चंद्र बुध से युक्त हो और राहुकेतु से दृष्ट हो, तो ग्लोकोमा रोगहोता है। धनु लग्न : लग्नेश गुरु अष्टम भावमें हो और चंद्र द्वितीय, या द्वादश भावमें राहु, या केतु से दृष्ट हो, शुक्र औरबुध लग्न में हों, सूर्य द्वितीय भाव मेंहो, तो ग्लोकोमा होता है। मकर लग्न : गुरु लग्न में हो, लग्नेश त्रिक भावों में सूर्य से अस्त हो, चंद्रभी अस्त हो, मंगल द्वितीय, या द्वादशभाव को देखता हो, केतु द्वितीय, याद्वादश भाव में हो, तो ग्लोकोमा होताहै। कुंभ लग्न : शनि सूर्य से अस्त होकर द्वितीय भाव में हो, बुध लग्न मेंअस्त न हो, चंद्र राहु से युक्त हो करत्रिक भावों में हो, तो ग्लोकोमा होनेकी संभावना बढ़ जाती है। मीन लग्न : लग्नेश वृष, या तुला राशि में अस्त हो, बुध द्वितीय, यासप्तम भाव में अस्त न हो, द्वितीयेशशुक्र से युक्त हो कर षष्ठ भाव में, राहुया केतु द्वितीय और द्वादश भाव परदृष्टि रखे, तो ग्लोकोमा होता है।उपर्युक्त सभी योग चलित पर आधारितहैं। संबंधित ग्रह की दशांतर्दशा औरगोचर के प्रतिकूल होने पर ही रोगहोता है।
Pt.P.S.Tripathi
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